रिटायरमेंट
बसुंधरा तुम्हें आराम करना तो चाहिए, परिवार की गद्दी सम्भालनी चाहिए तुम हांफती हुई चूल्ह चौका,झाडू-पोंछा मे लगी रहती हो।अब तो रिटायरमेंट ले लो,दो-दो शिक्षित बहुओं के बाद भी ये हाल,बीमारी की अवस्था मे ।
दिव्या आण्टी-अपना-अपना नसीब?
बसुंधरा नसीब आदमी खुद बनाता है दिव्या आण्टी बोली।
बात तो सही है पर आण्टी हमनें नसीब बनाने की बड़ी कोशिश की,बनी भी बेटे चांदी की डाल काट रहे हैं बहुयें लूट रही हैं बड़ी बहू मायका सजा रही है।हमारे हिस्से शून्य, बसुंधरा पल्लू से आंख मसलते हुए बोली ।
दिव्या आण्टी-हां बसुंधरा चीरे हुए पेट को गमछा से बांधकर रोटी थापती थी,बोरे जैसे सीले निशान आज भी तुम्हें जीने नहीं देते, तुम दोनों पति -पत्नी ने अपने बच्चों के साथ जेठ-देवर के बच्चों को पढाकर आगे बढाकर बड़े पुण्य का काम किया है।
आण्टीजी हमसे ना जाने कौन सा गुनाह हो गया,जिसकी सजा भोग रही हूँ बसुंधरा बोली।
बेटी कौन कहता है गुनाह तुमने किया है दिव्या आण्टी बोली।
गुनाह नहीं तो और क्या ? बड़ी ने निराश्रित कर बेटे को कब्जे मे कर लिया है, शादी के बाद बेटा घर नहीं आया सरकारें बदल गई। परिवार की मझली बहू तो आते ही सिर पर बदनामी का ताज जड़कर परिवार को बांटने लगी है । सकुनी की तरह अपने पराये की बिसात बिछाने लगी है। कैसे चैन की रोटी मिलेगी ।ये कौन से पुण्य का फल है आण्टी।
बसुंधरा बहू तुमने जो किया है, सचमुच सराहनीय और वंदनीय काम किया है, तुम्हें गृहस्थी से रिटायरमेंट मिले या न मिले तुमने अपने संयुक्त परिवार के लिए जो बलिदान दिया है, उसके लिए तुम्हें सलाम। खुद पर विश्वास रखो बसुंधरा अच्छे दिन आयेंगे कहते दिव्या आण्टी अपने घर की और बसुंधरा गृहस्थी से रिटायरमेंट के विचार त्याग कर नई उम्मीद के साथ गृह कार्यों मे जुट गई ।
डां नन्द लाल भारती
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