भारत की वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष्य में रिपब्लिकन संकल्पना,बहुसंख्यांकवाद साम्प्रदायिकता।
रिपब्लिकन अर्थात प्रजातन्त्र,भारतीय परिपेक्ष्य में प्रजातन्त्र का मुख्य उद्देष्य,समानजा का अधिकार,षोशण के खिलाफ अधिकार,धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार,सांस्कृतिक और षैक्षिक अधिकार और संवैधानिक अधिकार है। भारतीय संविधान की यही मूल भावना भी है,परन्तु वर्तमान राजनैतिक परिपेक्ष्य में प्रजातन्त्र के मुख्य उद्देष्यों पर कुठराघात होने लगा है। राजनैतिक पार्टियों ने रिपब्लिकन की परिभाशा ही दल कर रख दी है। चुनाव जीतने के लिये राजनैतिक पार्टियां सुभावने सपने तो दिखाती है परन्तु सत्ता हथियाते ही राश्ट्र और जनहित को दर किनार कर स्वहित में डूब जाती है। इसी सफेदपोष स्वहित की उपज है भ्रश्ट्राचार,घोटाला,महाघोटाला।
आज हर क्षेत्र में भ्रश्ट्राचार की घुसपैठ हो चुकी है,षिक्षा माफिया सक्रीय है,धन की लालच में षिक्षार्थियों के भविश्य से खिलवाड़ हो रहा है,षिक्षा माफिया पूरी तरह सक्रीय है। यह सब बिना राजनैतिक संरक्षण के सम्भव नही है। भ्रश्ट्राचार आज प्रजातन्त्र के मूल उद्देष्यों को लीलने लगा है। आम,हाषिये का आदमी मूलभूत सुविधाओं के लिये आज भी तरस रहा है, गरीबी भूखमरी,अषिक्षा,बेरोगारी,भूमिहीनता और जातिवाद के दहकते दर्द का बोझ छाती पर ढो रहा है।
भारतीय प्रजातन्त्र की परिकल्पना दुनिया की सर्वश्रेश्ठ परिकल्पना है,इसका भारतीय संविधान विष्वव्यापी उदाहरण है। वर्तमान राजनैतिक पैतरेबाजी ने प्रजातन्त्र के उद्देष्यों को भुला दिया है। सत्ताधीषों ने स्वहित को राश्ट्रहित और जनहित से उपर मान लिया है। हम सब अपनी जहां में आजाद तो है परन्तु असली आजादी से दूर है। आज भी हमारे गांव रूढ़िवादिता की चपेट में है,षोशित समाज की बस्तियों के हैण्डपाइप तक के पानी अपवित्र है।
आओ चलो हमारे गांव
आओ चलो हमारे गांव
सिसकता गांव दिखाता हूं
विकास की विरान,
तस्वीर दिखाता हूं
वंचित -मजदूरों की बस्ती में
चिथड़ों में सम्मानित,
लाज दिखाता हूं
पेट पीठ से कैसे लगता
पहचान कराता हूं
छुआछूत का कैसे,
पालथी मारा है कोढ़
मसीहाओं की,
खुल जायेगी पोल
भय-भूख दीनता में ए
सोता जागता है गांव
असली तरक्की के,
नही पड़े है पांव
झूठे है सारे आंकड़े,
धधक रहा है
तरस रहा है चैथा कुनबा
चलो तहकीकात कराता हूं
कैसा होता ?
मरते सपनों का दर्द,
कैसा होता ?
दर्द से उपजा नयन नीर
कैसे गरमाता चूल्हा ?
दृश्टिदान कराता हूं
चलो हमारे साथ,
जहां होती हरदम सांझ
ऐसे गांव दिखाता हूं.......
वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष्य में रिपब्लिकन संकल्पना,बहुसंख्यांकवाद साम्प्रदायिकता के मुद्दे नजर युवा पीढ़ी को देषहित और सभ्यसमाजहित में गम्भीरता से विचार करने का वक्त है। विकास में सहयोगी बनने का,समतावादी और सबल भारत के निर्माण के बारे में आगे आने का वक्त है।
रिपब्लिकन विचार मंच की संकल्पना को युवापीढ़ी पूरी कर सकती है। राजनीति के क्षेत्र में सक्रीय भूमिका निभाकर युवावर्ग असली आजादी से दूर पड़े हाषिये के आदमी को विकास के पथ पर ला सकता है। देष के स्वाभिमान में अभिवृद्धि कर सकता है। देष की अगुवाई करने की ताकत युवापीढ़ी में है।
अरे भारत के नवजवानो,
अपने फर्ज को पहचानो
देष आवाज दे रहा है तुम्हें
अब तो तुम
नब्ज पहचान लो
रिपब्लिकन संकल्पना को,
उबार लो
देष को जरूरत है तुम्हारी
तुमको देष और
समतावादी समाज की
बहुत देर हो चुकी है प्यारेे
और ना करो अब
कसम है तुम्हे,
तुम्हारे होष की जोष की
रिपब्लिकन कष्ती की
पतवार थाम लो...............
विचार करिये आजादी और प्रजातन्त्र के बारे में,कितनी कुर्बानियों के बाद आजादी मिली संविधान लागू हुआ ।दषकों बाद भी आजाद भारत में आज भी सुलगते सवाल है । प्रजातन्त्र लहूलुहान है। इसके बाद भी हम सभी अपनी-अपनी जहां में आजाद है होकर भी असली आजादी से दूर है।
देष में आज भी मंदिर प्रवेष को लेकर दण्डात्मक कार्रवाई होती है। षोशित वर्ग की बारात को निकलने नही दिया जाता है। षोशित वर्ग को हैण्डपाइप से पानी लेने पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है। हाषिये का आदमी तरक्की से दूर फेंका जा चुका है। तरक्की से दूर पड़ा हाषिये का आदमी जातिवाद का जहर पीने का मजबूर है। आदमी-आदमी के बीच जातीय नफरत की दीवारे आज भी खड़ी है, क्या हम इसे असली आजादी मान सकते है।
सत्ताधीष चाहे राजनैतिक हो या धार्मिक हो देष और आमजन के विकास को तो विसार ही बैठे है। कितने दुख की बात है, संविधान बदलने की बात इस देष में होती है, जिस संविधान से देष चलता है, देष से दुनिया जुड़ती है,दुनिया में पहचान बनती है। समता,सद्भावना और विष्वबन्धुत्व के सद्भाव में अभिवृद्धि होती है,उस संविधान की बदलने की बात होती है परन्तु उस धार्मिक संविधान को बदलने की बात नहीं उठती जिसमें लिखा है,
षूद्र गंवार ढोल पषु नारी,ये ताड़ना के अधिकारी।
आज देष को जरूरत है समताक्रान्ति की,सोच में बदलाव की, दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर विकास के राह हाषिये के आदमी को साथ लेकर चलने की। यह दायित्व युवावर्ग निभा सकता है। रिपब्लिकन ख्वाब को पूरा कर सकता है। बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के अधूरे सपने को पूरा कर सकता है बषर्ते वह प्रजातन्त्र की रक्षा के लिये आगे बढे़। युवाओ उठो आगे बढ़ो हाषिये के लोगों,देष और संविधान की उम्मीदे तुम पर टिकी है।
युवा प्यारे
हाषिये के लोगों की,
आंखों के तारे
तुम्ही बताओ,
ये कैसी आजादी है
खामोष है तराने,
सपने छाती में दबे है
जातिवाद,भ्रश्ट्राचार,भूमिहीनता,गरीबी,
अषिक्षा,नक्सवाद,आतंकवाद
यानि
दासता के हर जख्म हरे है।
अपना संविधान अपनों का षासन
अंग्रेजियत भारी है,
प्रजातन्त्र की नईया ना डूबे
थाम लो बागडोर,
तुमसे इन्तिजा हमारी है।
उठा लो खंजर,
ध्वस्त कर दो भयावह मंजर
कर दो नेस्तानाबूत
उच-नीच के आडम्बर
मिटा दो जातिवाद,
वंषवाद की लकीरे सारी
मानवतावाद का कर दो
बीजारोपण
भेदभाव की सरहदें,
तोड़ दो सारी
युवाओ आगे बढ़ो
प्रजातन्त्र को,
इंतजार है तुम्हारी।
वर्तमान स्वार्थनीति को देखते हुए लगने लगा है कि देष में सामन्तवाद और वंषवाद प्रजातन्त्र पर भीतरघात कर रहे हंै। ये दोनों ही प्रजातन्त्र के लिये खतरे हैं । यही कारण है कि आजादी के सरसठ साल के बाद भी सुलगते हुए सवाल मुखरित है। भारतीय व्यवस्था में चैथे दर्जे के आदमी के आर्थिक और सामाजिक स्तर में कुछ विषेश सुधार नही हुआ है। आज भी जातिवाद का दंष आहत करता रहता है।
सर्वविदित है कि भारतीय संविधान दुनिया का सर्वश्रेश्ठ संविधान है,इसके बाद भी हाषिये का आदमी विकास से दूर है,सामाजिक असमानता का षिकार है,जब तक बूढ़ी व्यवस्था से उत्प्रेरित लोगों के हाथ में सत्ता रहेगी षोशित समाज के सामाजिक समानता और आर्थिक विकास के सपने पूरे नही हो सकते। इसके लिये आवष्यक है कि सत्ता का हस्तान्तरण हो। युवावर्ग राजनीति के क्षेत्र में आये,जातिवाद की विशबेल को जड़ से उखाड़ फेंके। देष और मानवतावादी समाज को विकास के षिखर पर ले जाये,ऐसी उम्मीदे तो युवाषक्ति से तो की ही जा सकती है। मुखौटे बदल-बदलकर सत्ता हथियाने वाले प्रजातन्त्र के पहरेदारों को आज का युवा बेखौफ कह रहा है,
अरे प्रजातन्त्र के पहरेदारो जागो,
जातीय विश ना बोओ,
स्वार्थ की नीति को त्यागो
जनता जागने लगी है,
चैथा कुनबा भी,
खुली आंखो से
सपने देखने लगा है
युवापीढ़ी तुम्हारे सारे
चक्रव्यूह जान गयी है
देष,सभ्य समाज हित
युवाषक्ति को भाने लगा है
जाति-धर्म का भ्रम टूट चुका है
आजादी और प्रजातन्त्र का मतलब,
युवा जान चुकी है
प्रजातन्त्र के खलनायकों की,
षिनाख्त कर चुका है
फिर क्या देरी युवाओं
युवाषक्ति की कर दो ललकार
प्रजातन्त्र पा जाये असली आकार
रिपब्लिकन विचार मंच की
हो जाये जयजयकार.........
हमे गर्व है अपनी आजादी पर,परन्तु चिन्ता की बात है कमेरी दुनिया के लोगों,हाषिये के लोगों,आम आदमी तक आजादी पहुंचेगी कब और कैसे ? यह विचारणीय प्रष्न है आज युवावर्ग के लिये। असाध्य को साध्य करने के लिये उठ खड़े होने का भी ।
देष के लाखों लोग गरीबी भूखमरी के षिकार है,लाखों लोग फूटपाथ पर रात गुजारने को विवष है। हमारी बहन-बेटियां बलात्कार की षिकार हो रही है। लाखो बेरोजगार हैं। षोशितवर्ग को आज भी मानवीय आधिकारों और हकों के लिये धक्के खाने पड़ रहे है। षोशित वर्ग आर्थिक-सामाजिक विशमता से बुरी तरह प्रभावित है। कुछ चन्द लोगों की तरक्की से सम्पूर्ण षोशितवर्ग की तरक्की मान लेना उचित नही है। आजादी के इतने बरसों बाद भी हाषिये का आदमी महंगाई, भ्रट्राचार, गरीबी, अन्याय ,षोशण, जातिवाद, भेदभाव के चक्रव्यूह में आज भी बुरी तरह फंसा हुआ है।
बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा लिखित भारतीय संविधान की उ्द्देषिका में स्पश्ट रूप से लिखा है कि हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतन्त्रात्मक गण्राज्य बनाने के लिये तथा उसके समस्त नागरिको को सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक न्याय,विचार,अभिव्यक्ति,विष्वास,धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता,प्रतिश्ठा और अवसर की समानता प्राप्त करने के लिये तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राश्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिष्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिये दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्म-अर्पित करता है। इसके बाद भी संविधान के मूल उद्देष्य की पूर्ति आज भी अपेक्षित है जो सत्ताधीषों की स्वार्थपरता और इच्छाषक्ति में कमी का ही द्योतक है।
वर्तमान में राजनैतिक सत्ता हथियाने की इतनी भूख बढ़ गयी है कि देषवासियों को जाति,धर्म सम्प्रदाय,बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के रूप में विखण्डित कर दिया गया है,जबकि आजादी प्राप्ति के पूर्व देष के लोग भारतवासी थे । जनजागरण की भाशा और देष को एकता के सूत्र में जोड़ने की भाशा हिन्दी थी परन्तु आज राजनैतिक पैतरेबाजी ने सब कुछ विखण्डित करके रख दिया है।
हमारा देष जातिवाद की आग में सुलग रहा है,षोशित समाज विकास से अलग थलग पड़ा है। वर्तमान राजनीति ने बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक को हवा देना षुरू कर दिया है। धीरे-धीरे यह जहरीली हवा आंधी का रूप लेने लगी है। वर्तमान राजनीति में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक षब्द का उपयोग बढ़चढ़कर सिर्फ चुनाव जीतने के लिये किया जा रहा है। ऐसे षब्दों के उपयोग से समाज में असुरक्षा पैदा हो रही है जो राश्ट्र के लिये हितकर तो नही कहा जा सकता। बहुसंख्यकवाद के विरोध में अल्पसंख्यक भी मुखरित होगा। इससे नफरत की भावना बढ़ेगी,जो न तो समाज के लिये और नही तो देष के लिये हितकर है।
बहुसंख्यक समाज को नायक और अल्पसंख्यक को खलनायक साबित करना कहा तक उचित है ? जबकि दोनों ही देष के विकास की धुरी है। बहुसंख्यकवाद के षंखनाद से अल्पसंख्यक समाज में भय पैदा होगा,जिसके परिणाम विनाषकारी हो सकते है। नक्सलवाद और आतंक को बढ़ावा मिल सकता है।
देष वैसे ही नक्सवाल और आतंकवाद से जूझ रहा है। ऐसे षब्दों के उपयोग पर प्रतिबन्ध होना चाहिये परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि राजनैतिक संरक्षण मिल चुका है। राजनैतिक सत्तासुख के लिये देषवासियों को जाति-धर्म अल्पसंख्यक और बहुसंख्यकवाद की दृश्टि से बांटना कहां तक उचित है। ऐसा कोई भी बंटवारा आज की युवापीढ़ी को बर्दाष्त नहीं होना चाहिये। सच भी है,
अपनी जहां के युवाओं का
जातिवाद,बहुसंख्यकवाद से
उठ गया है अब विष्वास
प्रजातन्त्र में बसती है
उसकी सांस
कहता है युवा
अपनी रग में लहू बहता है
भारत का लहू ,
इतिहास रचता है
युवाषक्ति राश्ट्र भक्ति,
वह तो अपने,
वादे पर खरा है
उसे तो,
बहुजनहिताय बहुजनसुखाय,
स्वहित से बड़ा है
भाग्य विधाता,
युवा होगा आगे-आगे
जातिवाद,बहुसंख्यकवाद का
ना गूंजेगा कोई नारा
होगा प्रजातन्त्र का अगुवा युवा
बनेगा टूटी आसों का सहारा...........
प्राचीन काल से हमारा देष विष्वबन्धुत्व का पर्याय रहा है। दुर्भाग्यवष अब देष के लिये जातिवाद,साम्प्रदायवाद अभिषाप बन चुका है। साम्प्रदाय से तात्पर्य किसी एक साम्प्रदाय जाति,धर्म,क्षेत्र,रंग अथवा भाशा के प्रति रूढ़िवादी हो जाना है। मानव मन में जब नफरत की भावना घर कर जाती है तो मनुश्य एक दूसरे का विरोधी बन जाता है,एक दूसरे के खून का प्यासा तक बन जाता है। ऐसी साम्प्रदायिक नफरतें व्यक्ति विषेश के लिये ही नहीं राश्ट्र के लिये विनाषकारी बन जाती है।
जातिवाद,साम्प्रदायवाद से उपजी ऐसी नफरतें प्रजातन्त्र के लिये भी घातक होती है। साम्प्रदायिकता मानव ही नही राश्ट्र विरोधी भी होती है । साम्प्रदायिक ताकतों को प्रतिबन्धित किया जाना चाहिये था पर वाह रे सत्तामोह साम्प्रदायवाद,जातिवाद,अल्पसंख्यक,बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है।
साम्प्रदायिकता से ना तो देष का उत्थान हो सकता है ना समाज का इसके बाद भी राजनीतिज्ञो ने सत्ता तक पहुंचने का माध्यम बना लिया है।दूरसंचारक्रान्त्रि के इस युग में सुखद् अनुभूति का विशय है कि आज के षिक्षित युवावर्ग का विष्वास साम्प्रदायवाद, जातिवाद, अल्पसंख्यक, बहुसंख्यकवाद से उठने लगा है। यह सामाजिक उत्थान की दृश्टि से अच्छी पहल है। आज का युवा मानवीय समानता, सद्भावना,धर्मनिरपेक्षता और विष्वबन्धुत्व की राह चलने को दृढ़ संकल्पित है।
युवा सोच ही राश्ट्र और सभ्य समाज के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकती है। यही रिपब्लिकन का उद्देष्य भी है। इसी उद्देष्य को दृश्टि में रखते हुए रिपब्लिकन मंच युवाओं का आह्वाहन करता है।आज का युवा भी पीछे नही है।
युवाषक्ति की है,
ललकार
जाति,साम्प्रदायवाद है अभिषाप,
अरे अपनी जहां वालों
इंसान को
अमीरी,गरीबी,उंच-नीच के
बंटखरे से तौलना है पाप
ना करो दिग्भ्रमित अब
युवा सब ढकोसल,े
जान गया,पहचान गया
साम्प्रदायवाद,जातिवाद,
विनाष के है द्वार,
युवा षक्ति को अपने देष
अपनी मांटी से है प्यार
उठा लो युवाओ,
फर्ज पर फना होने की कसम
संविधान को राश्ट्रधर्मग्रन्थ बनाओ
प्रजातन्त्र को सफल बनाओ...........
हम सभी जानते है कि नैतिकता में आयी कमी की वजह से मानवता आहत है,जीवन भयभीत और असुरक्षित है। सिद्धान्त और आदर्ष आज विवष है। वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष्य में समस्याओं पर विचार मंथन जरूरी है परन्तु उसके पहले आत्मचिन्तन की अत्यन्त आवष्यकता है।
हम सभी को व्यक्तिगत् रूप से सिद्धान्तवादी एवं नैतिकतावादी बनकर आदर्ष स्थापित करने की आवष्यकता है,तभी हमारा विचार मंथन जीवन उपयोगी होगा,यह प्रजातन्त्र के लिये जरूरी भी है।
आत्मचिन्तन से कई समस्याओं के निदान सम्भव है, आत्मचिन्तन से मानव जीवन,समाज,देष कायनात में परिवर्तन लाया जा सकता है,आत्मचिन्तन सुखद और लोककल्याणकारी होता है। इसी उद्देष्य से रिपब्लिकन विचार मंच ने भारत की वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष्या में रिपब्लिकन संकल्पना, बहुसंख्यांकवाद, साम्प्रदायिकता के विशय पर विचार मंथन आयोजित किया है।
यकीनन इस रिपब्लिकन विचार मंथन से मानवीय समानता,धर्मनिरपेक्षता,राश्ट्रवाद के सद्भाव में अभिवृद्धि होगी,इसे स्थायित्व देने के लिये युवाषक्ति को दृढ़ संकल्पित होकर आगे आना ही चाहिये।
युवाषक्ति नयन ज्योति,
भाग्यविधाता
अपनी जहां की आषा
सृजनषक्ति
राश्ट्र की अभिलाशा
कब उठ खड़े होगे
ख्वाब ध्वस्त हो रहे
मरते सपनों के बोझ से
कंधे भी थक रहे
उठ खड़े हो जाओ
तान दो छाती
प्रजा और तन्त्र हित में
फहरा दो परचम
संविधान और लोकहित में
तू ही अब रक्षक,
तू ही स्वाभिमान
युवाषक्ति
अपनी जहां करती
तेरा आह्वाहन
अब तो जा मान.
...............डां.नन्दलाल भारती
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