:रिश्ते के कोरोना
जानता हूँ तुम अपराधी हो
बहुरूपिये का वेष धर कर
सपने लूटने और
कुनबे के जीवन को
दलदल के विरान मे ढकेलने के
तुम अपराधी हो.........
आदमी के रूप मे नरपिशाच हो
तुमने अपने सुख के लिए
अपने खानदान की मर्यादा को
डंसा है
ना घर का छोड़ा ना घाट का
क्या कोई होगा... तुम जैसा अपराधी ?
मतलबवश तुमने विष घोल दिया
रिश्ते डोर मे
तुम अपराधी हो तुमने जो विष बोया है
रिश्ते की जमीं पर.....
ऐसा विष तुम्हारे सिवाय और
कौन बो सकता है
तुमने एक सरल सहज और आदमियत पसंद
आदमी की सपनों की दुनिया ठग लिया
अरे अमानुष तुमने अपनी ही खानदान की
इज्ज़त को सम्मान और पहचान देने वालों का
अपमान का किया बदनाम किया
अरे मतलब के विषधर
ये विष तुमने कहांं उगल दिया......
जानता हूँ
तुम मौत के मुंह मे ढकेलने वाले हो
खून के रिश्ते के बीच
दरार तैयार करने वाले हो
खून के रिश्ते को नफरत मे बदलने वाले
बहुरूपिये, डकैत, ठग हो
तुम्हारा गुनाह सात जन्म तक
माफी के काबिल नहीं है
तुम जैसे जघन्य अपराधी को माफ करता हूँ
हम और हमारा कुनबा आदमी है
आदमियत का सिपाही है
अपनो पर भी विश्वास करता हूँ
अपनत्व की बौझार से
तुम्हारी बोयी नफरत की धूल
एक दिन मिट जायेगी
हमारे कुनबे की खुशी लौट आयेगी
रिश्ते के कोरोना हमें अपनत्व की
आक्सीजन मिल जायेगी
मैं अपनी जहां पर विश्वास करता हूँ
ये रिश्ते के कोरोना तुम्हें माफ करता हूँ.....
डां नन्द लाल भारती
06/05/2021
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