Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रिश्ता

 

दुनिया में सबसे बडा कोई रिश्ता है तो वह है दर्द का रिश्ता । जानते हुए भी आज का आदमी मतलब के पीछे भागने लगा है । आज के इस युग में परमार्थी लोग तो कम है पर आदमियत को जिन्दा रखे हुए है । सेवाराम को विचार मंथन में देखकर ध्यानबाबू उनकी तरफ मुड़ गये और उनके सामने खड़े हो गये पर सेवाराम बेखबर थे । सेवाराम को बेखबर देखकर वह जरा उुची आवाज में बोले क्या बात है सेवाराम क्यों नजरअंदाज कर रहे हो ।
सेवाराम हड़बड़ा कर बोले अरे ध्यानबाबू आप ?
ध्यानबाबू-हां मैं, कहां खो हुए थे ।
सेवाराम-कही नही बाबू । सोच रहा था आज का आदमी जिस तरह से रिश्ते को रौद रहा है । अगर ऐसा ही होता रहा तो आदमी आदमी का ही नही होगा । आदमियत का रिश्ता भी लहूलुहान हो रहा है ।
ध्यानबाबू- आज का आदमी तो बस अपने स्वार्थ में जी रहा है ।
सेवाराम-स्वार्थ की बाढ में कहीं रिश्ते न बह जाय ।
ध्यानबाबू-सच चिन्ता का मु्द्दा बन गया है रिश्ते का कत्ल ।
सेवाराम-ठीक कह रहे हो आज का आदमी एक दूसरे को टोपी पहनाने में लगा हुआ है । रिश्ता भी स्वार्थसिध्दि केे लिये बनाने लगे है ।
ध्यानबाबू-ऐसे रिश्तेदार तो आदमियत का कत्ल ही करेगे ।
सेवाराम-ऐसा ही हो रहा है । दो साल भर पहले टेकचन्द साहूकार गिड़गिड़ाते हुए बोले सेवाराम मेरी मदद कर दो पांच हजार रूपया दे दो बस हफ्ता भर के लिये । टेकचन्द की गिड़गिड़ाहट के आगे मैं मना नही कर पाया नेकचन्द से उधार लेकर दिया था । टेकचन्द ने दो साल में कभी सौ कभी पच्चास ऐसे रो रोकर दिया कि पता ही नही चला । जबकि मुझे नेकचन्द को एकमुश्त हफ्ते भर के अन्दर देना पड़ा था । टेकचन्द को एक अखबार वाले को पच्चास सौ रूपया देना है । एक विज्ञापन छपवा लिये हैे अपनी दुकान का । अखबार वाला मेरे साथी आज पांच साल से अधि हो गया पैसा नही दिये । जब मांगो तो टाल जाते हैं टेकचन्द आजकल की कहकर । अखबार वाले से मेरा रिश्ता पैसे की वजह से खराब कर दिये ।
ध्यानबाबू-टेकचन्द साहूकार तो इनकी टोपी उनको उनकी उनको पहनाने में माहिर है । उसे रिश्ते से क्या लेना । वो बस सौदागर है।सेवाराम क्यों झांसे में आ जाते है स्वार्थियों के ।
सेवाराम-बाबू हम तो रिश्ते के सोधेपन के भूख है । आदमी में आदमियत का भाव ढूढते रहते है । परमार्थ में असीम आनन्द है पर मतलबी लोग है कि घाव दे जाते है । सभी टेकचन्द साहूकार जैसे नही होते ध्यानबाबू।
ध्यानबाबू-वो समीर भी तो तुमको ठग गया । उसे तुम भाई मानते थे । कई सालों तक अपने घर में रखे । तुम्हारी वजह से कामयाब आदमी बना है पर तुम्हे एहसान के बदले क्या दिया बदनामी और रिश्ते को मुट्ठी भर आग का दहकता घाव ना ।
सेवाराम-समीर खुश है अपने कामयाबी पर । भले ही मुझे रिश्ता घाव दे गया पर आपको हकीकत मालूम है ना । आप मेरी नेकी को हवा दे रहे हो ना क्या यह कम है?दुनिया में अभी रिश्ते का मान रखने वाले लखन और बलदेव देवता किस्म के लोग है ध्यान बाबू ।
ध्यानबाबू- कहां ऐसे लोग मिल गये सेवाराम ?
सेवाराम- दिल्ली में जब साला कौशल जब डेगू की चपेट में था । मौत के मुंह में से निकला है लखन भईया की वजह से । पन्द्रह साल पहले मां कैंसर से जूझ कर मरी और पिता साल भर पहले फेफडा गल जाने की वजह से ।
ध्यानबाबू-ये लखन देव कौन है ?
सेवाराम- बलदेव इंजीनियर है पर तकदीर ठगी जा जुकी है किसी शाप पर काम करता है और लखन की नौकरी छूट गयी है जो अब चैकीदार की नौकर करके परिवार पाल रहे है । यही तो है वेेेे फरिश्ते जो झोपड़पट्टी में और तकलीफ के समन्दर में डूबकर भी रिश्ते पर मर मिटने को तैयार रहते है ।
ध्यानबाबू-वो कैसे ?
सेवाराम-बाबू कौशल की जान लखन भईया की वजह से बची है । जब पास के नर्सिगहोम वालो ने हाथ खड़ा कर लिये तो लखनभईया दिल्ली के एक बडे़ नर्सिगं होम में कौशल को मरणासन्न स्थिति में ले गये । वहां डाक्टर ने पच्चास हजार रूपये जमा करवाने को और दस बोतल खून तुरन्त देने को कहा गया।
लखन- डांक्टर साहब मैं पच्चास नही साठ हजार अभी जमा कर दूंगा भले मुझे बाद में अपना कच्चा घर बेचना पडे । खून भी दे दूंगा अपने तन को निचोड़कर पर गारण्टी दो कि मेरे भाई को कुछ नही होगा ।
डाक्टर- कोई गरण्टी नही । बचेगा तो अपनी किस्मत से या मरेगा तो अपनी मौत से ।
लखन- डाक्टर साहब आप कसाई है क्या ?
बलदेव-भईया सब धन्धा है । चलो अब सरकारी अस्पताल ले चले किस्मत पर ही भरोसा करना है ।
लखन और बलदेव कौशल को लोहिया अस्पताल में ले गये बड़ी नाजुक स्थिति थी पर डाक्टरों और स्टाफ ने बहुत सहानुभूति दिखायी कौशल को आपातकालीन कक्ष में रखा गया जबकि एक पलंग पर तीन तीन डेगू पीड़ित थे और दिल्ली डेगू महामारी बन हुआ था । लखन और बलदेव ने अपना-अपना खून दिया। रेडक्रास सोसाइटी से खून मैं खुद ले कर आया था ।
ध्यानबाबू- जब डेगू का आतंक था तब दिल्ली में थे क्या ?
सेवाराम-कौशल के लोहिया अस्पताल में भर्ती होने के बाद खबर लगी थी । पति-पत्नी तुरन्त निकल गये थे । दूसरे दिन दोपहर में अस्पताल पहुंचे थे। अस्पताल तो मरघट बना हुआ था । देखकर हम घबरा गये हमारी मैडम को तो रो रोकर वैसे ही बुरा हाल था ।
ध्यानबाबू-सच डेगूं ने तो दिल्ली पर कहर बरसा दिया । हम तो अखबार में पढकर रो पड़े थे । जिन लोगो ने यह हादशा देखा होगा तो उनका हाल सोच कर कंपकपी छूट जाती है।
सेवाराम- कौशल की जान बच गयी । लखन और बलदेव देवदूत साबित हुए कौशल के लिये ।
ध्यानबाबू- सच लखन और बलदेव ने आदमी होने का फर्ज बडी़ ईमानदारी से निभाया । इंसानियत के रिश्ते को अपने लहू से सींचा । बहुत बड़ा काम किये दोनो । एक परिवार बिखरने से बच गया ।
सेवाराम-छोटे छोटे दो बच्चे है बीबी है । कुछ हो जाता सब अनाथ हो जाते । आज के जमाने में तो सगे भी दूर होते जा रहे है । कौन किसका पेट -परदा चलायेगा ? कुछ लोग तो मीठी मीठी बाते करते है सिर्फ मतलब के लिये । जहां मतलब निकला खंजर कर मार कर मुट्ठी भर आग और डाल दिये ताकि तडपते रहो ।
ध्यानबाबू-लोग बहुत मतलबी हो गये है जबकि सब जानते है आदमी मुट्ठी बांधकर आया है हाथ फैलाये जायेगा ,इसके बाद भी छल,धोखा,जालसाजी,अत्याचार,शोरूण,दोहन यहां तक देह व्यासपार अंग व्यार तक करने लगा है आजका आदमी । आज आदमी स्वार्थ में गले तक डूब गया है ।
सेवाराम-अब तो मान मर्यादा पर भी स्वार्थ ने दहकता निशान छोड़ना ‘ाुरू कर दिया है । पति-पत्नी का चोंच लड़ी मामला कोर्ट में । तलाक तक हो जा रहे है ।दहेज दानव की फुफकार तो आज के युग में और डराने लगी है । कभी लोग रिश्ते पर मर मिटते थे आज स्वार्थ के लिये गला काटने के लिये तैयार है । अरे मां-बाप जिसे धरती का भगवान कहते है वे जीवन की सांध्य बेला में वृध्दाश्रम @ अनाथ आश्र्रम का पता पूछते सड़क पर भटक रहे है । रिश्ते की बगिया में जैसे पतझड आ गया है । रिश्ते की बगिया के फूल कब खिलखिलायेगे ?
ध्यानबाबू- पाश्चात्य संस्कृति का जहर हमारी संस्कृति को ले डूबेगा । हमारे देश में अतिथि देवो भव- मांता-पिता धरती के भगवान है आदि ऐसे अनेक रिश्ते के सोधेपन खिलखिलाते थे पर आज पाश्चात्य संस्कृति ने स्वार्थ की आग में झोक दिया है जैसे ।
सेवाराम-वैश्वीकरण के जमाने में आदमी सिर्फ अपने लिये जी रहा है। बिरले ही लखन,बलदेव,अनिल और उसकी घरवाली जैसे लोग है ।
ध्यानबाबू- अनिल और उसकी घरवाली बीच में कहां से आ गये ।
सेवाराम-अनिल और उसकी घरवली, बलदेवकी घरवाली और लखन भईया की घरवाली सभी ने कौशल की बीमारी में रात दिन एक कर दिया था ।ऐसे लोग इंसानियत को जिन्दा रख सकते है । इंसानियत का रिश्ता कभी नही मरेगा जब तक गिने चुने लोग बचे है आदमी के आसूं का मोल समझने वाले ।
ध्यानबाबू- धनी-गरीब का, मालिक-मजदूर का, अफसर- कर्मचारी का जाति-बिरादरी का आदि ऐसे बहुत कांटे आदमियत की छाती में छेद कर रहे है । सामाजिक बुराईयां तो और ही मानवीय रिश्ते को तार तार कर रही है ।
सेवाराम- सामाजिक बुराईयां मानवीय संवदेना का नाश कर रही है । आदमी-आदमी के बीच नफरत की खाई खोदती है ,जिससे अब आदमी आदमी को नही होता है । पद दौलत और जाति की श्रेष्ठता का खुलेआम प्रदर्शन होने लगा है । ये सब तो आदमियत के रिश्ते के लिये किसी घातक जहर से कम नही ।
ध्यानबाबू-ठीक कह रहे सेवाराम पर नाउम्मीद होने की जरूरत नही है । देखो दिल्ली में कुछ लोग पक्षी और आदमी के बीच रिश्ता जोड़ रहे है । दिल्ली का पक्षी अस्पताल दुनिया में मिशाल है ।
सेवाराम-बाबू ऐसी उूंची सोच हो जाये तो फिर ये लूटखसोट,रिश्वतखोरी,भदेभाव सब खत्म हो जाये । अमाुनष और स्वार्थी किस्म के लोग मुट्ठी भर आग बोते रहेगे। देखो तुम्हारे पड़ोसी मकान नम्बर चैदह में रहने वाला यू.एन.कुकूरकाटव पड़ोसियों के घर में ताकझाक करता फिरता है।दूसरों की बीन बेटियों को बुरी नजर से देखता है । बुरी नियति से पड़ोसी के घर तक में घुस रहा था । पड़ोसी की इज्जत बच गयी । राह चलती महिलाओं तक को छेड़ता है । कहते है पड़ोसी भगवान होता है । यू.एन.कुकूरकाटव परिवार तो शैतान से कम नही है । ऐसे लोग रिश्ते का खून ही करते है ।
ध्यानबाबू-ऐसे लोग मानवता के लिये कोढ की खाझ है । ऐसे लोग रिश्ता की गरिमा क्या समझेगे ? इनका सामूहिक-सामाजिक बहिप्कार होना चाहिये । रिश्ते की आन तो रामलखन,बलदेव,अनिल और ऐसे लोग होते है जो रिश्ते को सद्भावना,संवेदना का अमृतपान कराते है ।
सेेवाराम-ठीक कह रहे हो बाबू ऐसे लोगो ने इंसानियत को जिन्दा रखा है । यू.एन.कुकूरकाटव परिवार जैसे लोग तो मानवता और पड़ोसी के रिश्ते के लिये नासूर है।
ध्यानबाबू-हां सच है । सुना है तुम्हारे एक रिश्ते पर दैवीय पहाड़़ टूट गया है ।
सेवाराम-बाबूराम फूफाजी मर गये । बाबू रिश्ता टूटा नही है । मेरे फूफाजी मरे है । दुनिया भर के नही ।
ध्यानबाबू-ठीक कह रहे हो । ये रिश्ते तो अमर है जिस पर परिवार और समाज जीवन पाता है ।
सेवाराम-बाबू हमारे यहां तो फूफाजी का रिश्ता बहुत सम्मानित होता है ।
ध्यानबाबू- फूफा और मामा का रिश्ता बहुत नजदीकी का और पवित्र रिश्ता होता है । जीवन मरण तो प्रभु के हाथ में है । रिश्ते का सोधापन तो सदा हवा में समाया रहता है । अपनेपन और मानवता को जीवित रखता है । कुछ लोग तो बस खुद के लिये रिश्ते जोड़ते है । मतलब निकलते ही दिल के टुकड़े कर देते है ।कुछ लोग रिश्ते को उूंचाई देकर अमर हो जाते है । हम जिस की पूजा करते है । वे भी तो हमारे जैसे थे । जिनके साथ आज आदमी और भगवान अथवा देवता का रिश्ता कायम हो गया है क्योंकि वे आदमियत के रिश्ते का इतिहास रचा है ।
सेवाराम-ठीक कह रहे हो बाबू आदमियत का रिश्ता तो सर्वश्रेष्ठ और महान है ।
ध्यानबाबू-आदमी को मुर्दाखोर जातिवाद,छोटे-बडे़ के भेद,अमीर-गरीब की खाई को पाटकर ,आदमी के सुख-दुख में काम आकर आदमियत के रिश्ते को अधिक प्रगाढ बनाने का बीड़ा उठाना चाहिये । रिश्ते का सोधापन समय के आरपार प्रवाहित होता है सेवाराम ।
सेवाराम-आओ हम सब आदमियत के रिश्ते को धर्म बनाने की कसम खाये क्योंकि आदमियत ही सबसे बडा धर्म और सबसे बड़ा कोई रिशत जगत में है तो दर्द का। इस यथाशक्ति निर्वाह करने वाले लोग सच्चे आदमी कहलाने के हकदार होते है ।
सेवाराम की ललकार सुनते ही ध्यानबाबू सहित अनेक लोग हाथ से हाथ मिलाने लगे आदमियत के रिश्ते को सोंधापन देने के लिये ।

 

 

 

डां.नन्दलाल भारती

 

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