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Dr. Srimati Tara Singh
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रीता

 
लघुकथा-रीता/

रीता आज की सीता। रीता का राम किसी विषधर औरत के साथ दशकों से फरार हो चुका था। रीता,सीता माता की तरह आज के दुशासनों से बची मर्यादित पतिव्रता रीता तीन बच्चों में दो बच्चों को पाल-पोषकर,उचित शिक्षा देकर पहली भूख-प्यास की बीटिया के हाथ पीले  कर चुकी थी। दूसरा बेटा रोजी-रोटी की तलाश में श्रम की मण्डी में कूद चुका था पर असफल था। आखिरी तीसरे बेटे को भी अच्छे स्कूल में पढ़ा रही थी।

रीता का जीवन कष्टमय था उसका बिस्तर आंसू में नहाया कांटों की सेज हो चुका था, रीता  दुःख की गठरी छाती में दबाये काम में मस्त रहती, उसके चेहरे पर खुशी के बादल छाए रहते थे। घरों में बर्तन, झाड़ू-पोंछा कर  साहसी सीता की प्रतिलिपि रीता दायित्वों का पालन कर रही थी। किराए के पक्की दीवार वाले छत-रहित छोटे से कमरे में रहकर फर्ज पर फ़ना हो रही थी।

चार-छ: साल में उसका कंस यानि पति रात के अंधेरे में आता, रीता की मेहनत की कमाई  छिनकर भाग जाता। जिन घरों में काम रीता उन घरों में हंसी- खुशी जाती काम कर वापस चली जाती थी यही उसकी दिनचर्या थी। कठोर दिल वाली मेहनतकश रीता अपनी विपत्ति पर कभी नहीं रोती थी।

दर्द कहां छिपता है साहब चरम पर आते ही दिल छेदकर चेहरे पर उभर जाता है।  मेम साहब लोग राय देती रीता दुशासन को तलाक क्यों नहीं दे देती ?

रीता के चेहरे पर खुशी की बदरी छा जाती वह कहती मेम साहब,उसी दुशासन के दर्द की आड़ में रीता आज भी समाज में इज्जत से तो जी है ।

नन्दलाल भारती
१५/०६/२०२४



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