काकी पाय लागूं।
दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी करो बेटा।
काकी तबियत ठीक है ।काका कहाँ हैं।
हां बेटा तबियत ठीक है ।तुम्हारे काका बूढ़ी हड्डी घिसने गए हैं और कहाँ जायेगे।
काकी आराम का समय हैं। काका है कि घर टिकते ही नही।
बेटा जब तक हाथ पांव चल रहे है,तब तक आराम कैसा ? बैठ जायेगे तो रोटी कैसे मिलेगी ?
क्या काकी तू क्यों झंख रही है। झंखे खरभान जेकर खाले खरिहान।बेटा इंजीनियर,काका भी अच्छा कमाएं हैं।
बेटा अभी हाथ पांव चल रहे हैं,जिस दिन खटिया पर पड़ जायेगे रोवन रोटी हो जाएगी।
काकी इतनी निराश क्यों हो रही हो ?
बेटा निराश होने की बात है। बेटा ने कह दिया है तुमने अपना घर बसा लिया । मेरा घर बसने नही दे रही हो ,तोड़ रही हो।बहू ने कहा दिया है कि सास ससुर की नौकरानी नहीं हूँ कि थाप थाप कर देती रहूंगी। कैसी उम्मीद ऐसे बेटे बहू से सुखवीर ?हम तो अपनी ही कमाई चैन से नहीं खा पा रहे, महीनों से नींद उड़ी हुई है, तुम्हारे काका कि आंखों में आंसू उतरे रहते हैं।
काकी हिम्मत न हार ।
बेटा हिम्मत नहीं हार रही, तुम्हारे काका तो और हिम्मती हैं बस दुःख से हार रहे हैं।
काकी हौशला रखो, एक बेटा- बहू ने ठुकराया है।अभी तो बेटा एक बेटी भी तुम्हारे जीने के सहारे हैं।
हां बेटा वो तो है।
काकी क़ानून भी तुम्हारे साथ है, जो तुम्हारी देख रेख सेवा सुश्रुषा करें, उसी को अपना उत्तराधिकारी बनाना। बेटा होने भर से ही उत्तराधिकारी नहीं हो जाता कोई बेटा।नालायक बेटा-बहू को चल-अचल संपत्ति से बेदखल करने का अधिकार तुम्हारे पास है काकी।
हाँ बेटा सुखवीर जानती हूँ पर वह भी तो घोर दुःख है।
काकी नालायक से बेहतर तो लायक है।
ठीक कह रहे हो सुखवीर बेटा,जिस बेटा कि ऊंची शिक्षा के लिए कर्ज के बोझ तले दबे रहे ।वही बेटा अपनी माँ को कहे तुमने अपना घर बसा लिया मेरा घर तोड़ रही हो,जिस बहू को बेटी का मान दिये,कलेजे से लगा कर रखी वही बहू कहे सास ससुर की नौकरानी नहीं हूँ कि उन्हें थाप थाप रोटी कर देती रहूंगी,
ऐसे नालायक बेटा- बहू घर से बेघर करें, उससे पहले उन्हें सबक सिखाना जरूरी है काकी।
डॉ नन्दलाल भारती
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