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सह और मात का खेल

 
सह और मात का खेल
            नन्दलाल भारती

सह और मात के खेल के माहिर शातिर दिमाग के लोग होते हैं।इस खेल में मात सहज-सरल,आदमियत के प्रति वफादार और कायनात के प्रति ईमानदार व्यक्ति की होती है। मात के खेल का खिलाड़ी कोई सरल आदमी नहीं होता। वह हैवान प्रवृत्ति वाला व्यक्ति होता है।यह आदमी आदमी के रूप में नरपिशाच होता है। यह अमानवीय प्रवृत्ति वाला आदमी रिश्ते को इस तरह अपमानित कर देता है जैसे व्यभिचारी एक इज्जतदार कन्या का चीरहरण चौराहे पर कर दे। ग्लानि के दलदल में घिरे दर्पणबाबू  नीम के पेड़ से झरती धूप मे बैठे जैसे किसी को बद्दुआएं दे रहे थे। दर्शनसिंह को दर्पणबाबू के दर्द को समझने मे देर ना लगी।

दर्शन  तनिक ठिठकते हुए बोले अरे दर्पण किसका तर्पण कर रहे हो ?
भैय्या क्या कह रहे हो। मां - बाप  का तर्पण तो कर चुका हूं। भैया तुम्हारे आशीर्वाद की जरूरत है। तुम तो जानते ही हो बिना गुनाह की सजा भुगत रहा हूं और अब भगवान ऐसी कोई सजा ना दें दर्पणबाबू बोले।
चैतन्य के बाबू क्यों अकेले बाहर बैठे बैठे बड़बड़ा रहे हो अन्दर आ जाओ चाय बन गयी है दर्पण बाबू की पत्नी अनसूया बोली।
भाग्यवान पागल नहीं हूं, अगर तुम ऐसे ही लांछन लगाती रही तो पागल भी हो जाऊंगा।
माफ कर दो चैतन्य के बाबू गलती हो गई का। अब कभी ऐसा नहीं बोलूंगा। किसी और से बात कर रहे थे क्या अनसूया पूछी।
दर्शन सिंह भैय्या है दर्पण बोला।
तुम्हारे दर्शन भैय्या लम्बे अन्तराल के बाद दर्शन दिए हैं कहीं सालों की लम्बी यात्रा पर चले गए थे क्या अनसूया बोली।
नहीं हो बेचारे कैसे यात्रा पर जायेंगे । घर में शान्ति हो तब ना बाहर भी शान्ति मिलेगी।घर ही कैकेयी का महल बन गया हो तो क्या कोई चैन से जी सकेगा । जब सपने लूट जाते हैं तो आदमी को पुनः सम्मान से जीने के लिए सपने सीने पड़ते हैं। बेचारे सपनों के तार जोड़ रहे हैं दर्पण बोला।
आत्मविश्वासी दर्शन भैय्या को बैठाते,चाय नाश्ता कराते। बाहर से बाहर विदा कर दिए क्या अनसूया बोली।
नहीं,पड़ोसी खज्जर से बतिया रहे हैं।चाय बना लो। मैं कुर्सी बरामदे में रखता हूं, दर्शन भैय्या दो मिनट में आ रहे हैं दर्पणबाबू बोले।
बरामदे में आसन जमा लो।अगर हो सके तो कंचन से आधा किलो जलेबी मंगा लो ।पोहा बना लेती हूं ।
वाह मजा आ जायेगा दर्पण बोला।
तुम तो ऐसे उछल रहे हो जैसे पहली बार पोहा जलेबी खाने वाले हो। इतना ही उछाह है तो समोसा भी मंगा लो अनसूया बोली।
जैसी देवीजी की इच्छा कहते हुए कुर्सी लेकर बरामदे में चला गया। इतने में दर्शनबाबू ने आवाज दिया, भैय्या दर्पण।
जी भैय्या,अन्दर आ जाओ, बरामदे में नीम के पेड़ से झरती  सुहानी  धूप का आनन्द चाय की चुस्की के साथ लेते हैं  दर्पण बोले।
 दर्शन बाबू के अंदर आने की आहट भाप कर अनसूया झट से फुल प्लेट पोहा और एक प्लेट में जलेबी रखते हुए बोली भइया प्रणाम।
दर्शन बाबू हाथ जोड़कर बोले बहन सदा खुश रहो।
अनसूया -भइया नाश्ता लीजिए।
बहन नाश्ता तो नहीं  करूंगा कौशिला इन्तजार कर रही होगी दर्शन बोले।
भइया कर लो दर्पण बोले।
हां भइया आप लोग नाश्ता करो,मैं चाय लाती हूं।आप भाभीजी  को फोन कर दो अनसूया बोली।
यह भी ठीक रहा कहते हुए दर्शनबाबू ने प्लेट उठा लिये।
चाय की ट्रे रखते हुए अनसूया बोली भइया कितने साल के बाद दिखे हो। कहीं बाहर गए थे क्या ?
कहां जाऊंगा।सारी इच्छाएं जैसे मर गई हैं। जीव आन मान करने के लिए हम दोनों बुद्ध यात्रा पर चले जाते हैं। साल भर में कुछ दिन के लिए बीटिया के घर चल जाता हूं। बीटिया और नाती-नातिन की मोहब्बत में जाना होता है, गैर जिम्मेदार एवं लालची दमाद की वजह से वहां भी जाने की इच्छा नहीं होती। मेरी तो दिलीख्वाहिश है कि किसी विहार में स्थायी रुप से शिफ्ट हो जाऊं दर्शनसिंह बोले।
पारिवारिक जीवन से इतनी उदासीनता क्यों भैय्या दर्पणबाबू पूछे।
पारिवारिक सुख ही तो जीवन का उद्देश्य रहा है।रात दिन मेहनत मजदूरी कर बच्चों का जीवन खुशहाल बनाने के लिए खुद के लिए नहीं बच्चों के लिए जीते रहे पर ना जाने ऐसा कौन सा गुनाह हो गया कि जीवन का चैन छीन गया दर्शन बाबू बोले।
ये क्या कह रहे हो भैया अनसूया बोली।
हां बहन बहू ने परिवार को तहस-नहस करने का मन बना लिया लिया है । बहू को किसी से कोई मतलब नहीं अपने पति से भी नहीं,पति की कमाई लूटकर मा-बाप को अमीर बना रही है , काश सूरजसिह की शादी किसी गैर बिरादरी की लड़की से कर दिया होता तो आज ये दुर्दिन नहीं देखना पड़ता   दर्शन बाबू बोले।
ओह बात समझ में आ गई। कान्हपुरी की बहू है क्या  अनसूया माथा ठोकते हुए बोली।
हां बहन कान्हपुरी मां बाप ने खुद की बेटी के ब्याह को सह और मात का खेल बना दिया है। मैंने तो बेटा का ब्याह बड़ी उम्मीद से किया था कि उच्च शिक्षित बहू आयेगी परिवार को और उपर ले जायेगी। बहनजी सब झूठ साबित हुआ। मां -बाप ठग कारोबारी हैं,बेटी यानि हमारी बहू दिमाग से पैदल है आंख से आंधी अंधी पर मां-बाप के लिए दुधारू भैंस है।कान्हपुरी पुत्रवधु क्या आयी, सपनों पर डकैती पड़ गयी। शादी से पहले बहू नौकरी कर ठग मां -बाप की तिजोरी और पेट भर रही थी और अब पति को लूटकर।बेटवा को खुद मारती है उपर से पुलिस बुला लेती है दर्शनबाबू कुछ बोलते इससे पहले अनसूया छाती कूटते हुए बोली कान्हपुरी सभी बहुयें एक जैसी होती है क्या?
काश शादी के पहले ठग कारोबारियों के बारे में जानकारी मिल जाती तो रोवन रोटी न होती।दिन रात पलंग पर पड़ी रहेगी जैसे ही कौशिला खाना बना कर हटेगी,बहू ललिता पलंग से उठेगी पूरी परात भर गाली दे देकर खाना भरेगी और गाली दे देकर खायेगी। सूरज सिंह भी कुछ नहीं कर पा रहा है। कुछ बोल दिया तो सूरज पर हाथ उठा देगी । बाहरी गेट पर खड़ी होकर भद्दी भद्दी गालियां देंगी । खुद अपने कपड़े नोंचकर पुलिस बुलायेगी और शिकायत करेगी कि पूरा घर भर मिलकर मार रहा है ।पुलिस है कि उसी की सुनती है। हमारे आंसू और दर्द पर पुलिस कभी गौर ही नहीं करती। हमने दुर्जनसिंह की बेटी से सूरज सिंह का बिना किसी दहेज लिए ब्याह इसलिए किया था कि बहू कुल की मर्यादा का पालन करते हुए परिवार की उन्नति में सहभागी बनेगी पर क्या ललिता महाठगिनी बन गई, दर्शनबाबू आंसू रुमाल से पोंछते हुए बोले ।
कान्हपुरी ठग शादी के पहले संस्कृति और संस्कार की दुहाइयां दे रहा था  पर ब्याह होते अपनी बीटिया को कैकेयी बना दिया है  दर्पणबाबू अपने दर्द पर काबू रखते हुए बोला।
दर्पणबाबू कान्हपुरी बहूओ के बापों के धोखेबाजी के किस्से सुनाने बैठ जाऊ तो रात हो जायेगी।खैर सभी एक जैसे नहीं होते दुर्जन सिंह जैसे लोग गांव हो या शहर ही बदनाम करते हैं। ठग शादी के बाद बेटी विदा करवाने आया। बहू सारे गहने लेकर मायके गई। कान्हपुर पहुंचते ही खबर की कि सारे गहने चोरी हो गये। दहेज में एक रुपए नहीं लिए  हमारी पूंजी डंकार गये, झूठी चोरी का नाटक रचकर दर्शन सिंह बोले।
अनसूया -इस मामले में हमारी बहू ईमानदार निकली शायद वह जानती थी इसलिए ज़ेवर छोड़ कर आती थी पर ये बात अलग है कि कान्हपुर पहुंच कर बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया तक का उपयोग की, अपनी अर्धनग्न फोटो शेयर की, हमारे परिवार को इज्जत पर कीचड उछाली , सम्भवतः अशिक्षा यह सब अपने मां बाप के इशारे पर यह सब निन्दनीय और घिनौनी हरकतें कर रही है।
बहन शादी के छः साल बाद भी सूरज अपनी पत्नी ललिता के साथ रात नहीं बिताया। बहू सूरज को कमरे के अन्दर जाने नहीं देती। तलाक़ भी नहीं दे रही है।पूरे जीवन की कमाई तो लूट गरीब,एलाहाबाद की कोठी बची हुई है,डर लगता है कभी उस पर भी अपने बाप का कब्जा न करवा दें दर्शनसिंह  बोले।
भैय्या बैंक के लाकर में जरुरी कागजात और मूल्यवान वस्तुएं रखी दीजिए।अगर कलयुग की कैकेई के हाथ लग गये तो सब लूट कर अपने बाप को मालामाल कर देगी अनसूया बोली।
बहनजी ललिता महाठगिनी की नियति समझ में आ गई है मैं भी होशियार हो गया हूं।यह भी जानता हूं कि यह रिश्ता चलेगा नहीं जब पूरी दौलत लूट लेगी तब तलाक़ देगी शायद हर्जाने के लिए किडनी बेचनी पड़ जायेगी । दुर्जनसिहं ने ऐसा सह और मात के खेल की ऐसी विसात विछाया है कि हम हारे और टूटे जा रहे हैं और बहू ललिता दीमक की तरह खाये जा रही है दर्शन  बोले।
ऐसी दहकती हुई दास्तान मैंने कहीं पढ़ा था, हम भी ऐसी ही हालात के शिकार हो गए दर्पणबाबू बोले।
बहू के कारनामे से कौशिला बीमार रहने लगी है,जिस दिन खाना न बनाएं रोटी ना मिले।बीमार की हालत में भी चूल्हा चौका उसे करना पड़ता है।कौशिला के हालत अच्छे नहीं हैं। जिस दिन बिस्तर पकड़ लेगी  रोटी नहीं मिलेगी। सूरज नौकरी करें या घर का काम ,डर है कभी ललिता के आतंक से सूरज कुछ कर ना बैठे। जीवन का सहारा बेटा ही तो है वह भी पत्नी पीड़ित हो गया है। अगर कौशिला की तबियत खराब हो गई खाना नहीं बना पाई तो उस दिन कंजर दुर्जन की बेटी ललिता क्या चुनचुन कर गाली देती है। दिल में छेद हो जाते हैं। हे भगवान ऐसी कंजर मां बाप की बेटी को किसी शरीफ़ इंसान की बहू नहीं बनाना कहते कहते दर्शनबाबू की आंखों से आंसू लुढ़क पड़े।
मत रोओ भैय्या हम आप जैसे दर्द के दलदल में फंसे हुए हैं। कान्हपुरी शिक्षित  बहू लाये थे कि बहू हमारी विरासत को सहेज कर अपनी औलादों को सुनहरा भविष्य देगी पर क्या वह तो महाठगिनी निकली।कनिक्षा का बाप धुर्तरतन  तो जलाद है। मेरे सीधे साधे चैतन्य को बंदूक दिखाकर, दहेज के केस में पूरे परिवार को जेल भेजवाने की धमकी दे देकर चैतन्य को मां-बाप भाई-बहन और घर-परिवार का बागी बना दिया था ।कनिक्षा की मां कुटिला जादूगरनी है,बाप ठग। बहू की मां चैतन्य को वशीभूत करने के लिए जादू टोना करती रहती है ।पांच साल के बाद चैतन्य को तनिक मां बाप,भाई-बहन की याद  आने लगी है अनसूया बोली।
हां हम कितने बेचारे हो गये है बेटा की कमाई लूटकर बहू मां बाप को मालामाल कर रही हैं। इतना ही कान्हपुरी धुर्तरतन के आधा दर्जन बच्चे और खुद बेटा के पास शहर पहुंच जाते हैं। कहने को तो कपटी धुर्त रतन बुद्धिस्ट हैं पर  गिद्धों की तरह धुर्तरतन और उसका परिवार मेरे बेटे को नोंच- नोंच कर खा रहे हैं । हमारे परिवार को बदनाम भी कर रहे हैं।ठग परिवार कहता है कि दहेज के लिए उसकी बेटी पर ज़ुल्म ढाह रहे हैं जबकि कनिक्षा के ज़ुल्म का शिकार हमारा पूरा परिवार है। चोर धुर्त रतन अपनी बेटी को दो जोड़ी कपड़े तक नहीं दिये ठग कहता है कि हमारी बेटी के जेवर छिन लिए। बेटा का ब्याह कान्हपुर   कर बहुत बड़ी मुसीबत को न्योता दे दिये हैं। बहू  परिवार के सदस्यों पर ही बेटा पर  ज़ुल्म कर रही है, बात पर पुलिस बुलाती है,चाकू से हाथ काट लेती है,फिनाइल पी लेती है ताकि डरा धमकाकर चैतन्य को लूटती रहे। ब्याह किया था यह सोच कर कि बहू आयेगी तो घर में सुख शांति होगी पर हो रहा है उल्टा हम लोग बहू के ज़ुल्म से भयभीत आंसू बहा रहे हैं दर्पणबाबू बनियाइन से आंख मसलते हुए बोले।
 कान्हपुर की बहू लाने से बेहतर था किसी अनाथालय की बेटी को बहू बना लेते दर्शन सिंह बोले।
विचारणीय बात है अनसूया बोली।
कितने घटिया मां -बाप की बेटी हमारी बहू है। दीवाली बित गयी पर पोते का मुंह नहीं दिखाई।बेटा नौकरी के सिलसिले में देश से बाहर है। पोता चार साल का हो गया है। दादा-दादी को पहचानता है, बहू है कि अपने ठग जादगर मां-बाप को खुश रखने के लिए हम लोगों की परछाईं से दूर रखती है दर्पणबाबू बोले।
कान्हपुरी बदमाश परिवार तुम्हारे हिस्से के सुख को कैद कर रहा देखना जीवन में न तो पोते का मुंह देख सकेगा और ना कोई दूसरा सुख पा सकेगा । भला डकैती का सुख कोई सुख होता है। डकैती के सुख से धुर्त रतन अपना और अपने परिवार की बर्बादी लिख है दर्शन बोले।
अनसूया -लगता है धुर्त आधा दर्जन बेटी इसलिए पैदा किया है कि दामादों को लूटकर चैन की बंशी बजाता रहे।दामाद और उसके मां -बाप आंसू में डूबे रहे। काश कनिक्षा समझदार होती तो आज न वह किराये की कोख वाली मां के खिताब पाती और न हमारा बेटा धुर्त छिन पाता दर्पण बोला।
कनिक्षा ने आते ही कह दिया था मम्मी चैतन्य तो इतने सीधे हैं कि मैं पल्लू में बांध कर रख सकती हूं। वही धुर्त की बेटी कर रही है। उसे न अपने बच्चे की फ़िक्र है,ना पति की और न खुद के गृहस्थी की,उसे फ़िक्र कोई है तो बस ये कि पति की कमाई और ससुराल की सम्पत्ति बाप की झोली में कैसे डाल दें ? ऐसी बहू-बेटी तो मैंने देखा ही नहीं था ऐसी ही विषकन्या हमारे घर में डेरा डाल दी है।हे भगवान धुर्त की बेटी को समझदारी दो कहते हुए अनसूया सिसक -सिसक रोने लगी।
दर्शन -मै खुद कोर्ट में केस दायर कर बहू से फुर्सत चाहता हूं। ललिता भले ही गाली दे या मारे ।अब सब्र करने की सीमा पार हो चुकी है।
दर्पण-ऐसा हो सकता है क्या?
दर्शन -क्यो नहीं,जब बहू सास-ससुर के घर में उन्हें बेघर करने पर तूली हो तो सास-ससुर को ही कोर्ट में गुहार लगाना चाहिए। मैं अब यही करूंगा। बेटा की जिन्दगी और अपनी बर्बादी को बचाने के लिए कोर्ट के दरवाजे खटखटाने ही पड़ेगा । दुर्जन सिंह का सह और मात का खेल हमारे परिवार के लिए मौत का खेल बन रहा है। कोर्ट से इंसाफ जरूर मिलेगा।
बर्दाश्त की भी कोई सीमा होती है। क्या यह बहू का धर्म है कि वह पलंग पर पड़ी रहे, बूढ़ी सास नौकरानी की तरह खटे,उपर से बहू की भद्दी भद्दी गालियां सुने।पति को मारना,सास-ससुर पर अत्याचार कौन से अच्छे खानदान के संस्कार है। ऐसी गुण्डी बहू से तुरंत छुटकारा ले लेना चाहिए पर कानूनी पेंच बहुत डरावने हैं खैर मरता क्या ना करता दर्पण बोले।
बहू कितनी खुशी और उम्मीद से लाये थे वहीं बहू आते ही नरक का दुःख देने लगी है अनुसूया बोली।
हां दिल के अरमान जख्म में बदल गये हैं। सचमुच ऐसी दुष्ट बाप की बेटियों से छुटकारा पाने के लिए बस तलाक़...... तलाक़... तलाक़। ध्रुत की बेटी कनिक्षा लोमड़ी की तरह चालाक है बालक के जन्म के पहले चैतन्य को मोहपाश में अपने इशारों पर नचाती और ठगती थी अब बालक को मोहरा बनाकर। नन्हें बालक से बदला ले रही है। बच्चे से भी मोह नहीं है, बच्चे का ना कभी डायपर बदली न छाती का दूध पिलायी, चैतन्य बच्चे का बाप भी है मां भी। तलाक़ से बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा रही सोच सोच कर परेशान हैं दर्पणबाबू बोलेl
खाक असर पड़ेगा? सगी मां होकर अपने ही बच्चे के साथ सौतेली मां से भी बुरा बर्ताव कर रही है,ठग बाप की पागल बेटी बच्चे से बदला ले रही है। ऐसी डायन से बच्चे को दूर रखना चाहिए दर्शन सिंह बोले।
ये बच्चा बड़ा होकर कलयुग की कैकेई यानि कनिक्षा को सबक सीखायेगा अनसूया बोली।
कैकेई नन्हें बच्चे को कब तक दूर रखेगी।एक दिन यही बच्चा बड़ा होकर अपनी मां और ठग नाना-नानी के अभिमान को रौदेगा। दादा पोते का पहला दोस्त होता है।इस अमृतमयी दोस्ती के सुख को धुर्त रतन ने कैद कर दिया है। हे भगवान धुर्त रतन सात जन्म तक पोते के सुख से वंचित रहे दर्शन सिंह बोले।
मेरे पोते-पोती दुनिया के बेहतरीन एवं सफल इंसान बने ।हम तो धुर्त रतन के सह और मात के चक्रव्यूह में फंसे दर्द भोग ही रहे हैं। मेरे अपने को कोई दुःख न हो। भगवान के घर देर हो सकती है पर अंधेरा  नहीं परमात्मा ऐसा दण्ड देगा कि कान्हपुर याद रखेगा। मुझे अपने कर्मों पर भरोसा है  सब ठीक होगा दर्पणबाबू बोले।
सब्र करो भैय्या । भगवान पर हमें भी विश्वास है तुम्हें भी पर कुछ कर्म भी करना होगा दर्शन बोले।
भाई साहब बेटा भ्रमित नहीं हुआ होता तो धुर्त रतन की  बेटी हमारे परिवार का सुख चैन नहीं छीन पाती।ठग की बेटी अब चैतन्य की भी रोवन रोटी कर रही है।यह सब चैतन्य की ना समझी का नतीजा है,जब लगाम लगाना था तब मां -बाप घर परिवार का विरोधी बन गया,आज उसी ठग की बेटी से छुटकारा चाह रहा है पर कहां,मान-मर्यादा,धन दौलत सब लूट रही है   अनसूया सिसकते हुए बोली।
ये बहुये अपार दुःख दे रही है इनसे छुटकारा पाने के बारे में कुछ ठोस क़दम उठाना पड़ेगा दर्शन सिंह बोले।
ठीक कह रहे हो भैया, इनके मां -चाहते ही नहीं कि उनकी बेटियां अपनी गृहस्थी सम्हाले। ठग अपनी बेटी की गृहस्थी में आग लगाकर मालामाल हो रहे हैं,हम बेटों के मां -बाप बेबस अपनी तबाही देख रहे हैं। अंधे कानून और उसके पहरेदारों को हमारे आंसू दिखते ही नहीं दर्पण बोले।
ठगों के सह और मात क्या मौत के खेल ने हमें लाचार कर दिया है। हम कितने लाचार हो गये हैं। पेंशन पर चलने वाली जिंदगी बहू के नित दिये जा रहे टेंशन को कब तक बर्दाश्त कर पाती है। बैंक से लोन लेकर बनाये मेरे ही मकान से बहू हम बूढा-बूढी को  बाहर फेंकने का षणयन्त्र रच रही है।ना जाने किस मुहुर्त में चुड़ैल का घर में प्रवेश हुआ दर्शन  बोले।
यही हाल तो अपना भी धुर्त रतन की बेटी ने बना रखा है। हमारे साथ अच्छा नहीं कर रही है,कम से कम अपने पति के साथ पत्नी होने का फर्ज निभाती वह भी नहीं बस पति की कमाई पर कब्जा परिवार वालों से बात करने पर पहरा।ये कैसा संस्कार ठगों ने अपनी बेटी को दिये हैं अनसूया रोते हुए बोली।
भैय्या कान्हपुर चैतन्य का ब्याह क्या हुआ आफत गले पड़ गयी है दर्पण बोले।
दर्पण भैय्या घर चलता हूं,कौशिला परेशान हो रही होगी।अब तो बहू से छुटकारा पाने का एक ही उपाय दिखाई पड़ रहा है दर्शन बोले।
वह कौन सा उपाय है भैया दर्पण पूछे।
इच्छा मृत्यु की सरकार को अर्जी। बहू के ज़ुल्म से मुक्ति के लिए कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा दर्शन बोले।
अनसूया -हमने तो एक सुलक्षणा की आस में बिना किसी दहेज के बेटे का ब्याह किया था पर ठगों ने सह और मात का खेल बनाकर हमें दर्द के दलदल में ढकेल दिया है। हे भगवान बहू तो सुभद्रा आण्टी  की बहुओं जैसी  संस्कारी  बहुएं देना जो घर को मंदिर बना दें। हे परमात्मा न तो कनिक्षा जैसी कुलक्षणा बहू किसी को नहीं  देना और ना ही धुर्त रतन और कुटिला जैसे मां-बाप किसी लड़की को देना जो अपने सुख के लिए बेटी की गृहस्थी को दलदल में ढकेल दे। 
 भैय्या हम भी आपकी सलाह पर गौर करेंगे।
सलाह के लिए धन्यवाद दर्शन भैय्या दर्पणबाबू बोले।
दर्द को ही दवा बनाना होगा,आदमियत एवं खुशहाल रिश्ते के धुर्त रतन जैसे    ठग तो सह और मात का खेल तो खेलते रहेंगे। इनसे छुटकारा पाने के लिए  न्यायालय का दरवाजा खटखटाना होगा वरना ये रिश्ते के दुश्मन   सरल सहज आदमियों पसंद लोगों को शिकार बनाते रहेंगे दर्शन सिंह 
गमछा से आंख पोछते हुए उठे और सरपट अपने आशियाने की ओर चल पड़े।
समाप्त
नन्दलाल भारती   





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