फ्रेंच दाढी शरीफों जैसी पहनावा में संवरे कर्मचारी नेता कागज के पुलिन्दें को हवा में लहराते हुए बोले अरे नया साहब किधर बैठता है।सहकर्मी बोले बुद्धनाथ साहब सामने बैठे है।नेताजी ललकारते हुए सामने आ धमके उनके व्यवहार से लग रहा था चे दफतर में नही युद्ध स्थल में हो।नेताजी कागज का पुलिन्दा बुद्धनाथ साहब की मेज पर फेंकते हुए बोले क्यों वापस किया ये बिल।
शालीनतापूर्वक बुद्धनाथ बोले त्रुटि है।
नेताजी -मुझे क्या करना है।
अनुरोध पत्र लिखना होगा बुद्धनाथ बोले ।
नेताजी विफर पडे और बोले मैं नही लिखता क्या कर लेगा ।
कुछ नहीं पर आप जैसे लोगो ने किया है और करेंगे हमारे जैसे लोग तो अंगूठा कटाने का काम करते है।
मतलब नेताजी उत्सुकताबस बोले।
मसलन धौंसबाजी,गैरकानूनी काम,तालाबन्दी,हड़ताल और बहुत कुछ बुद्धनाथ बोले।
नेताजी बोले- तुम इल्जाम लगा रहे हो।जानते हो क्या कर सकता हूं ।
जी नौकरी ले सकते है।मुंह पर कालिख पोत सकते है और भी कुछ कर सकते है परन्तु मैं अपने फर्ज से नही मुकर सकता।
क्या बोलो जो आपने सुना। नेताजी फ्रेंच दाढी रख लेने से आदमी महान नहीं होता,सहूर के साथ काम महान बनाता है।नेतााजी मौन थे और परिचर को दफतर बन्द करने की जल्दी।
डां नन्दलाल भारती
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