Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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समाचार

 

साल भर की कमरतोड़,आंखफोड़ पढाई का फल छात्रों नतीजे के रूप में मिलता है । यदि इन भश्यि के वैज्ञानिकों,विद्वानों,उद्योगपतियों,राजनेताओं, सैनिकों एंव समाज सुधारकों के भविश्य के साथ खिलवाड़ लाभबस होता है तो यह खिलवाड़ भविश्य में सामाजिक,आर्थिक, एवं राश्ट्रीय हित पर सुनामी के कहर से कम न होगा । सुबह परीक्षा थी, रामू पूरी रात तैयारी में जुटा रहा । किषन के र्मािर्नगवाक बाहर निकलते ही किरायेदार प्रकाषबाबू का बेटा रामू बाहर आ गया । रामू को देखकर किषन बोले रामू अखबार का इन्तजार कर रहे हो क्या ?
रामू-नही अंकल । कल पेपर है । अखबार पढने का समय का है । परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं ।
किषन-तैयारी अच्छी चल रही है ना ।
रामू-हां अंकल । अव्वल आना है तभी ना पापा साइकिल दिलवायेगे ।
किषन-जरूर अव्वल आओगे । पढाई करो ।नतीजा अच्छा आयेगा बेटा ।
रामू-अंकल पूरे साल से कर रहा हूं ।
किषन-केन्द्र कहां है ।
रामू- अपनी ही कालोनी में । आने जाने मे परेषानी नही होगी ।
किषन-ये भी अच्छी बात है । तुमको ज्यादा देर तक पढने का समय मिल जायेगा । बेटा तुम पढोे । मैं मार्निंग वाक् कर लूं ।
रामू-जी अंकल ।
किषन- बेस्ट आफ लक बेटा ।
रामू- थैंक यू अंकल।
रामू मार्निंग वाक् से जल्दी लौट आये और वे भी अपनी बीटिया को परीक्षा केन्द्र छोडने चले गये जो दूर था ।बीटिया उशा दसवीं की छात्रा थी । उशा को परीक्षा केन्द्र छोड़कर किषन घर भी नही पहुंच पाये । कालोनी पुलिस छावनी बन चुकी थी । पत्थरबाजी देखकर दिल दहल गया । बचते बचाते किषन घर तक तो पहुंचा पर पुलिस की ललकार सुनकर आगे बढ गया । किषन का बेटा कुमार बाट जोह रहा था । पापा को घर के सामने से जाता हुआ देखकर पापा.....पापा... चिल्लाते पीछे पीछे दौड़ लगा दिया । आगे बढकर पुलिस के एक जवान ने किषन को रोका ।
पुलिस के रोकने पर किषन रूक गया । वह हिम्मत करके बोला क्या हंगामा है ये । अपने घर में भी नही घुसने दिया जा रहा है । क्या आफत है । क्या हो गया कालोनी में आधा घण्टा पहले तो ऐसा कुछ नही था ।
पुलिस जवान-देख नही रहे हो दंगा हो गया है ।
किषन-दंगा क्यो हो गया ?
जवान- ऐन वक्त पर परीक्षा केन्द्र बदल गया है । इसलिये.....
तब तक हांफते हुए कुमार पहुंच गया और किषन से बोला पापा घर चलों मम्मी परेषान हो रहा है । कुमार डरा सहमा थर-थर कांप रहा था ।दंगे का खौफ उसकी नजरों के सामने घूम रहा था । वह नन्हा सब कुछ अपनी अंाखों से देख चुका था । उसे डर था कि कहीं कोई पत्थर उसके सिर न फोड़ दे । वह किषन का हाथ पकड़कर घर चलने की जिद पर अड़ गया ।
किषन-बेटा स्कूटर पर बैठो । अंकल से बात कर लूं । घर ही चलूंगा ।
कुमार-पापा कोई पत्थर मार देगा।
किषन-नही बेटा ये अंकल है ना । पत्थर मारने वालों को पकडने के लिये ।
कुमार- अंकल जैसे तो बहुत लोग थे । देखो न बस को कूंच डाले।
किषन- कुछ नही होगा अब । पुलिस अंकल लोग आ गये है ना ।
इतने में तेज धमाका हुआ । कुमार रोते हुए बोला पापा अब घर चलो । देखो बस पर पत्थरबाजी षुरू हो गयी । सभी लोग अपने अपने घरो के अन्दर है । कुमार की जिद के आगे किषन को झुकना पड़ा । वे अपने घर वापस आ गये । स्कूटर धड़ा कर दंगास्थल ओर जाने लगी । इतने में उनकी धर्मपत्नी गीता डपटकर बोली कहां जा रहे हो जी । देख रहे हो चारो ओर से पत्थरबाजी हो रही है । क्यो सिर फोड़वाने जा रहे हो । इतने में कुछ लड़कियां दीवार की ओट में रोती हुई दिखाई पड़ गयी। किषन लड़कियों के पास गये पूछे बेटी क्या हुआ ।
एक लड़की आसू पोछते हुए बोली परीक्षा केन्द्र बदल गया हम तो परीक्षा देने आये थे । यहां तो सिर फूट गया । कई लड़के लड़किया अस्पताल जा चुकी है । परीक्षा केन्द्र कहां है ।
किषन-परीक्षा केन्द्र बदलने की सूचना तो पहले मिल गया होगी ।
लड़की - नही अंकल अभी पता चला है । कोई कह रहा है नन्दाकालोनी में है तो कोई कहीं और बता रहा है ।
कुछ सरकारी अफसर भी आ गये । कुछ परीक्षार्थी जा चुके थे । कुछ अधिकारियों को उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे ताकि परीक्षा टल जाये । दस मिनट के बाद षिक्षा अधिकारी भी आ गये । पालक और परीक्षार्थी प्रष्नों की झड़ी लगा दिये । एक आदमी स्पश्ट षब्दों में बोला साहब क्या यह भ्रश्टाचार का केस नही है । ले दे कर परीक्षा केन्द्र बदला गया हो ।
षिक्षा अधिकारी महोदय अनुत्तर हो गये ।इतने में अपर कलेक्टर साहब आ गये । स्कूल के संचालक को बुलवाये । आपस में कुछ बातचीत किये । थाने चलो कह कर अपर कलेक्टर साहब आग बढे फिर क्या गाड़ियों का काफिल चल पड़ा अपर कलेक्टर साहब के पीछे पीछे । बच गये कुछ घायल परीक्षार्थी और टूटी बसें । किषन भीड़ के छंटते ही बस के पास सिसकती लड़कियों से बात करने लगे ।इतने में पड़ोस वाला ओमजी आ गये बोले भाई साहब क्या एकटक निहार रहे है ।
किषन-कराहता हुआ भविश्य ।
ओमजी-भाई साहब जब तक भ्रश्टाचार है तब तक सारी कराहे जवां रहेगी । आओ घर चले । इनते में एक पत्रकार महोदय आ गये । पत्रकार महोदय आक्रोष का षिकार हुई बस का फोटो कई ऐंगल से खीचने लगे । कुछ देर में पत्रकार महोदय भी अपनी जिम्मेदारी पूरी कर चले गये । स्कूल के पास कुछ पुलिस जवानों के साथ कोई नहा था । कुछ घण्टे पहले जहां दंगा हो रहा था । लोगों का तांता लगा हुआ था । अब वहां पूरी षान्ति थी । किषन अपने काम पर चले गये । कुछ ही देर में किषन के परिचितों ने ने फोन लगाना ऐस षुरू किया की फोन की घंटी बन्द होने का नाम ही नही ले रही थी । गीता जबाब दे देकर परेषान हो गयी । सब एक ही बात कहते भाई साहब को फोटो अखबार में देखा है इसलिये फोन किया है । भाई साहब आये तो जरूर बताना हमारा फोन आया था । श्रीमती गीता फोन की घण्टी से परेषान तो थी पर मन में खुषी भी थी पतिदेव का बड़ा फोटो अखबार में जो छपा था । वे उधेड़बुन में थी कि कहीं बड़े साहब तो नही हो गये पर दूसरे पल उनकी खुषी पर वज्रपात हो जाता सोचती उनकी किस्मत में कहां । यदि किस्मत में होती तो कब के बड़े अधिकारी हो गये होते पर कुछ लोगों की कागदुश्टि उन पर ऐसी पड़ी की बड़ी-बड़ी डिग्री के बाद भी क्लर्क की नौकरी भी चैन से नही कर पा रहे है । भेद की दीवार खड़ी करने वाले रिसते जख्म खुरचते रहते है । भला अधिकारी कैसे बनने देगे । अपने पास कोई बड़ी पहुंच भी तो नही है ।दूसरे पल कोई अनहोनी का डर सताने लगता । काफी माथा पच्ची के बाद दफतर में फोन लगा दी । संयोगबस किषन ने ही फोन उठाया श्रीमती गीता आवाज पहचन कर बोली क्यों जी तरक्की हो गयी क्या ?
किषन-कहां से समाचार मिला ।
श्रीमतीगीता-सच आप साहब बन गये आप । आज मैं बहुत खुष हूं ।
किषन-कहां से समाचार आप तक पहुंच गया । मुझे तो कुछ पता नहीं ।
श्रीमतीगीता-दुनिया जान गयी । आपको पता नही ।आपके जाते ही सभी जानने वालों के फोन आने का सिलसिला अभी तक जारी है ।
किषन-क्या ?
श्रीमतीगीता-हां । सभी आपकी फोटो छपने का समाचार बता रहे थे ।
किषन-सुबह वाले अखबार में तो कुछ नही छपा है ।
श्रीमतीगीता-अरे दोपहर का कोई बड़ा अखबार है । देखो अखबार घर लेकर आना और कम से कम पाव भर रसमलाई जरूर लाना ।
किषन-ठीक है । अब फोन रखो । बिल बढ रहा है ।
श्रीमतीगीता-चहकते हुए बोली बाय बड़े साहब ।
किषन किसी अनहोनी के डर में भयभीत होने लगा । बड़ी मुष्किल से दफतर से सूरज डूबने के बाद निकल पाया । अखबार की दुकान पर पहुंचा । सभी लोग किषन को घूर-घूर कर देख रहे थे । वह समझ ही नही पा रहा था कि असल माजरा क्या है ?
दुकान वाला मोड़कर अखबार किषन की ओर बढाते हुए बोला लो साहब आप इसे खोज रहे है ना । कितनी बड़ी फोटो छापी है अखबार वाले ने आपकी । साहब दीजिये एक रूपया ।
किषन पाकेट से एक रूपया निकाला अखबार वाले के हाथ पर रखा । अखबार लिया अखबार का पहला पन्ना खोलते ही होष उड़़ गये। खड़े किषन और और जाते हुए ओमजी की फोटो अखबार नवीस ने बड़ी बारीकी से खींची थी । फोटो देखने पर ऐसा लग रहा था कि असली दंगाई किषन ही हो और ओमजी कुछ दूर भागते नजर आ रहे थे । जिम्मेदार पत्रकार असली बुराई से कोसों दूर थे । तस्वीर के नीचे छपा था क्रुध्द भीड़ और स्कूल की क्षतिग्रस्त बस । उखड़े पांव किषन घर पहुंचे । श्रीमतीगीता होठों पर मुस्कान लिये दरवाजे पर खड़ी मिली । किषन बिना कुछ बोले अखबार हाथ पर रख दिये ।
श्रीमतीगीता-बाप रे समाचार ने तो मेरी खुषी पर मुट्ठी भर आग डाल दी ।

 

 


डां.नन्दलाल भारती

 

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