Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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संविधान

 

 

पुष्पवर्षा,हृदयहर्षा
आज़ादी का कर अमृतपान
अपनी जहां अपना संविधान .........
हरे हुए मुरझाये सपने
अपनी-अपनी आज़ादी,
अपने- अपने सपने ................
अपनी जहां अपना लोकतंत्र ख़ास
हर मन विह्वल,पूरी होगी आस ...........
आज़ादी का एहसास सुखद
दिल को घेरे जैसे बसंत ................
अपनी धरती अपना आसमान
समता -सदभावना,विकास हो पहचान .......
जातिववाद -सामंतवाद का अभिशाप ]
नहीं ख़त्म हो रहा
बहुजाहिताय-बहुजन सुखाय का
सपना दूर रहा ................
अपनी जहां वालो आओ करे
लोकतंत्र का आगाज़
देश में हो सर्वधर्म -समभाव
संविधान हो साज ................

 


डॉ नन्द लाल भारती

 

 

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