Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

संकलन

 

दादाजी आज क्यों उदास लग रहे हो।
तुमको कैसे पता?
पता चल गया है दादा जी।
तुम तो जासूस निकले।
चेहरा मैं भी अब पढ़ने लगा हूं आपके नक़्शे कदम चलकर दादाजी।
मोबाईल दिखाते हुए चिन्ता प्रसाद बोले लो पढ़ लो।
ये तो उच्छी बात है। आपकी रचनाओं को संकलन में छापने करने के लिए पत्र है।
बेटा दूसरा मैसेज पढो ।
अरे ये क्या ?
चौक गए ना बेटा ।
प्रकाशक तो एक हजार रुपया मांग रहा है, ये तो लेखक का गला घोंटने जैसा है।
तुम्ही बताओ बेटा खुश होने की बात है या उदास।
दादा संकलन के नाम पर साहित्य जगत में भ्रष्ट्राचार फल फूल रहा ये तो।
हां बेटा अब प्रकाशक लेखक को कैश क्राप समझने लगे है।ऐसे में बेचारे लेखक क्या करे।
दादाजी अंतर्जाल और अंतर्जाल से सम्बंधित माध्यमो को अपनाएं, संकलन के नाम की लूट से बचे, भ्रष्ट्राचार का विरोध करे और क्या ?
तुमने तो एक झटके में समस्या का निदान कर दिया।
दादा भ्रष्ट्राचार न्यू जनरेशन को बर्दाश्त नहीं है ।
चिंता प्रसाद वंश को एकटक देखते रह गए।

 

 


डॉ नन्द लाल भारती

 

 

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