Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सांसे मत छिनो

 
कविता: सांसे मत छिनो
हे कुलबहू,परिवार की आन
क्या तुम्हारा सम्मान कम था ?
तुम्हें सम्मान देना
गुस्ताखी हो गई..........
या
तुम्हारे पिताश्री को
बेटे के बाप से
श्रेष्ठता के सिंहासन पर
अलंकृत करना
या
बिना दहेज का ब्याह कर
तुम्हारे माथे पर
कुलबहू का ताज रखना
क्या यही गुस्ताखी है ?........
अपनी जहां ने सोचा था
परिवार को गति दोगी
हाय रे तुम्हारी बुध्दि 
तुमने तो,
अपने मां बाप के लिए
ईमानदार, सरल-सहज
सच्चे दहेज दानव के खिलाफ
शंखनाद करने वाले परिवार की
उम्मीदें छिनकर 
मां बाप की झोली मे डाल दी
कैकेयी बनकर..........
तुम्हें बूढी उम्मीदो पर भी
तरस नहीं आया
तुमने बूढों की लाठी छिन ली
हंसते-खेलते परिवार का
पहिया छिन्न भिन्न कर दिया....
बहू धर्म को तार कर दिया
निरापद परिवार की
उम्मीदें लूटकर
दहेज लेने के जघन्यतम अपराध मे
जेल भेजवाने की धमकी
वाह रे कलयुग की बहू
बाप तो और आगे निकल गया
बेटे के बाप का ,
कुछ करवाने का इंतजाम
यानि कत्ल की धमकी....
बहू मैं जानता हूँ
तुम यह सब अपने
मां बाप के लिए कर रही हो
अपने ही सास ससुर का
हक छिनकर
तुमने तो सारी हदें पार कर दी
अपने ही पति पर अत्याचार कर
शोषण, प्रताड़ित कर
लूट ठगी कर..........
बहू समझ नहीं रही हो
अपनीऔर अपने परिवार की 
खुशियों से
बाप का घर सजा रही हो
चेत जाओ 
अपने परिवार के लिए जीओ
अपने गृहस्थ जीवन को
आबाद करो बहू
अपनी जहां जानती है
तुम्हारा अपराध अक्षम्य है
हे बहू 
तुम अपने अपराधों का प्रायश्चित करो
ठगों की दुनिया छोडकर 
अपनी गृहस्थी मे रम जाओ
बहू की मर्यादा का पालन तो करो
तुम्हें वही दर्जा मिलेगा
जो तुम तिरष्कृत कर गई हो
यानि कुलबहू........
हे कुलबहू 
तुम एक परिवार की बेटी ही
एक और परिवार की
कुलबहू भी हो......
बहू तुम ना ससुरैतीन बन सकी
ना पतिव्रता
तुम सौ फीसदी बन गई
पिताव्रता
क्या यही एक बेटी
अथवा
बहू का धर्म होता है
तुम्ही बताओ बहू........
याद रखो और
मर्यादा का पालन करो
खुद सकूं से जीओ
और 
अपनी गृहस्थी को
आसमान छूने दो
बूढ़े सास ससुर की
सांसे मत छिनो बहू.......
डां नन्द लाल भारती
29/09/2021

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