लघुकथा :शकुनि और मंथरा
नरेशभाई देख रहा हूँ कई सालों से बहुत परेशान हो,कुछ बताते नहीं, कब तक घूंट घूंट कर मरते रहोगे ?
सरोजभाई मरने का इरादा तो नहीं है।
मर-मर कर कब तक जीओगे सरोजभाई पुनः पूछे ?
एक ठग पति-पत्नी ने अर्श से फर्श पर पटक दिया है,मेरे सपनों पर अतिक्रमण कर लिया है नरेश बोले ।
ये कौन पति-पत्नी है ? क्या तुम बहू और उसके मां बाप द्वारा सताये जा रहे हो ?
जी सही समझे वही शकुनि और मंथरा नरेश भाई बोले ।
मतलब शकुनि और मंथरा अपनी ही बेटी को मोहरा बनाकर उसकी दुनिया उजाड़ रहे है, और तुम तुम बूढ़े पति-पत्नी को निराश्रित कर रहे है।तुमने तो बिना किसी दहेज के बेटे का ब्याह भी किया है। ये कैसे जल्लाद लोग है ? शरीफ इंसान को मौत के करीब ढकेल रहे शकुनि और मंथरा ।
यही तो दुख है सरोजभाई,बेटे मे तनिक बदलाव आ रहा है,ठगों का शिकंजा और कसने लगा,बहू को बरगला कर ये ठग मां-बाप,बहू को परिवार से दूर कर रहे हैं। बेटे के उपर अपने जम्बो परिवार के भरण-पोषण,शिक्षा-दीक्षा, ब्याह गौने के पूरे खर्च का भार जबर्दस्ती डाल रहे है।पागल बहू आई लव माई पैरेंट्स गुदवाकर शान से नवजात शिशु को मोहरा बनाकर पति के साथ दगा कर रही है नरेश भाई बोले ।
नरेश भाई तुम सच्चे हो तुम्हारी मदद परमात्मा करेगा, अब बेटा को समझ आ रहा है, तुम्हारा बेटा तुम्हारा सहारा बनेगा। पढी लिखा बहू को अपने परिवार की याद सतायेगी और वही बहू एक दिन शकुनि और मंथन की दुनिया में आग लगाकर अपने गुनाह का हिसाब पूरा करेगी ।ठगों का अन्त नजदीक है, थोड़ा और सब्र करो सरोजभाई बोले ।
वही कर रहा हूँ, कहते हैं ना सब्र की जड़ पाताल तक जाती है ।भले ही शकुनि जान से मारने की धमकी दें या दहेज के केस में जेल भेजवाने की धमकी।
डां नन्द लाल भारती
14/03/2021
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY