कब तक दबाओगे आवाज़ ,
अब तो शंखनाद करने दो।
कब तक डंसेगा ,पुराना जख्म ,
अब तो पूज जाने दो।
अबला जीवन स्वीकार नहीं,
अब तो सबला बन जाने दो।
घर-गृहस्ती का मान
अमान्य नहीं
अब तो नभ नाप लेने दो।
आरक्षण,
ना कर पायेगा भला
खुद के पाँव खड़ी हो जान दो।
अधिकार हमें भी
आज़ादी का
अब तो थोंथी बाते ,
बदल जाने दो।
क्या आंसू पीकर ,
जीना ही नसीब है ,
अब तो मुक्ति पा जाने दो।
सीता-सावित्री का मुकुट भार नहीं
अब तो वक्त के साथ ,
चल जाने दो।
बहुत हुई अग्नि-परीक्षायें ,
और अब ना ,
बस अब तो पाँव टिकाने दो………
डॉ नन्द लाल भारती
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