पिताजी चलितवार्ता पर चर्चारत् थे ।आठ-नौ साल के पुत्र को जल्दी थी शायद।वह पिता को अपने कंधे पर बैठाकर घर ले जाने की जिद कर रहा था।सच कहा गया है पूत के पांव पालने मे दिख जाते है।ऐसे ही बच्चे मां बाप का सहारा बनते है, नाम रोशन करते हैं।
कुछ दूर बैठे वृध्दो की टोली बच्चे को निहार रही थी शायद वे लोग यही सोच रहे थे काश औलादें दुल्हन आते ही दिग्भ्रमित नहीं होते तो वृध्दाश्रमों की जरूरत न पड़़ती।
बच्चा कह रहा था बैठो ना पापा मेरे कंधे पर अब मैं बड़ा हो गया हूं।
शाबाश अनजान बच्चे।तुम जैसे बच्चे ही तो जीवन हैं....... शुभकामनाएं।
डॉ नन्दलाल भारती
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY