Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सुख

 
लघुकथा :सुख
नाश्ता हो गया ।
हां मम्मी कर लिया ।
इतनी जल्दी क्या थी ।कहीं जाना है क्या राजकुंवर ?
नहीं मम्मी !
बेटा आराम से खा लेते । पराठा अच्छा नहीं बन रहा है क्या ?
नहीं मम्मी अच्छा  है।
बेटा एक और खा लो !
बस मम्मी  मेरा हो गया ।मैं उसको नाश्ता दे दूं ?
पापा खा रहे है और कौन बचा है ?
मम्मी पुष्पा बची है ना ।
मैं पहले नाश्ता करके तुम लोगों को नहीं दे रही हूँ ।मुझे भी बहू की फिक्र है।सुबह चार बजे की उठी हूँ। मांंताओं को भी भूख लगती है पर मां आंचल मे  छिपा लेती है सब कुछ । दे दो बेटा बहू भूखी होगी ?बेटा मुझे भूख नहीं है बाद मे खा लूंगी ।
प्लेट चम्मच की आवाज मां के कान के परदे छेद रहे थे मां थी खुशी पराठे बेलने का सुख भोग रही थी । बेटा पत्नी को नाश्ता परोसने का सुख  ।
डां नन्द लाल भारती
15/11/2020

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