विजय बेटा शहर में सब ठीक है ?
हाँ दादू पांव छूते हुये विजय बोला ।
आंखे लाल, आवाज़ में बेचैनी ,तुम्हारा दर्द बयां कर रही हैं, तुम कह रहे हो सब ठीक है।
तुम्हारी नव विवाहिता बहूरानी कहाँ है?
मायके गयी है, बेटा नौकरी पर है।
मना किया था अभी मायके मत भेजना।
दादू मैंने नहीं भेजा।बहू के बाप ने तो मुझसे बात तक नहीं किया।
बहू मायके चली गयी ?
हाँ दादू ।
अब क्या कहती है ?
सास ससुर माँ बाप नहीं हो सकते।ठूस ठूस कर खिलाते है।इस घर मे मरने का मन करता है।सास ससुर को रोटी थापने नहीं आई हूँ ।मैं इस घर की नौकरानी नहीं हूँ।बहू को ना मैं अच्छा लगता हूँ, ना मेरी पत्नी, ना बेटी और ना छोटा बेटा।अल्पदृष्टि है, उसके माँ बाप ने छिपाया ।अब तो पागल भी लगती है। मैं तो अपनी बेटी समझता हूँ पर बहू दुश्मन ना जाने क्यों ? बहुत बुरे फंस गया दादू।
तुम तो बहुत खुश थे, कह रहे थे अच्छे सम्पन्न,शिक्षित परिवार की लड़की है।मुझे तो परिवार में खोट लगती है, तभी तो कुलक्षणा साबित हो रही है।इतनी दूर और बिना दहेज़ की शादी करने पर भी तुमको इतना दर्द।दहेज में एक गिलास नहीं मिला रक़म तो कोसों दूर की बात।ऐसे दरिद्र घर की लड़की परिवार के गले में फांसी का फंदा बन गई। दूसरे लड़की वाले लाखों बिना मांगे दे रहे थे,तुम उनसे कहते रहे मेरा बेटा बिकाऊ नहीं है।बहुत सिध्दांतवादी बन रहे थे।काश लोगो की बात मान लेते।
दादू बिना दहेज की शादी कर गुनाह तो नही किया पर हो गया ?
दस लाख तुमने खर्च कर दिए ।तुमको मिला था कुल मिलाकर इक्कीस हजार एक सौ एक यही ना । बहू तुमको पानी देने में नौकरानी बन रही है।ये बहू के अच्छे संस्कार तो नहीं कहे जा सकते । देखो हमारी सुलक्षणा बहुओं को पूरे गाँव के लिए उदाहरण है,घर- परिवार ,नात -हित सबको साथ लेकर चल रहीं हैं।मुझ अपाहिज का भरपूर ख्याल रखती है बेटी जैसे ।काश तुम्हारी पुत्र बधु भी हमारी बहुओं जैसी होती।
डॉ नन्दलाल भारती
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