Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

स्वाभिमान की भाषा है ,हिन्दी

 

देश की प्रत्येक भाषा की अपनी अस्मिता,पहचान, सम्मान और स्वाभिमान है | देश कि सभी भाषाओं को जोड़ने के लिए सेतू का काम करती है, आम आदमी कि भाषा, आज़ादी कि भाषा हिन्दी | देश कि एकता को सुनिश्चित करने वाली भाषा है हिन्दी,राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति हमारे नैतिक कर्तव्य तो  है | हमारे देश की  सभी प्रांतीय भाषाये प्रिय हैं| सभी भाषाओं से साहित्य प्रस्फुटित होता है परंतु सभी भाषाओं मे प्रमुख हिन्दी ही है क्योंकि हिन्दी जन-जन की भाषा है  | हिन्दी को सम्मान देना हमारा नैतिक दायित्व और राष्ट्रीय धर्म है |

वर्तमान समय डिजिटल युग कहा जा सकता है | इस  डिजिटल वर्ल्ड मे तीन भाषाओं अर्थात हिन्दी अङ्ग्रेज़ी और चाइनीज, का वर्जस्व होना सुनिश्चित है | गूगल के चेरमेन का भी यही मानना है | एक शोध के अनुसार विश्व की 18 प्रतिशत  प्रतिशत जनसंख्या हिन्दी भाषी है और भारत की लगभग अस्सी प्रतिशत जनसंख्या हिन्दी भाषी है इसलिए कहा जा सकता है कि हिन्दी विश्व कि सर्वाधिक बोली जाने वाली,समझने वाली और लोकप्रिय भाषा है | सोशल मीडिया,इंटरनेट और टीवी चैनल और विज्ञापनो ने हिन्दी को लोकप्रिय बनाने मे अहम भूमिका निभा रहे है |

भले ही आज़ादी के दशको बाद भी हिन्दी राष्ट्रभाषा के लिए संघर्षरत है परंतु यह आत्म प्रतिष्ठा की बात है कि हिन्दी जनभाषा तो है | हम सभी देशवासियों का नैतिक दायित्व बनता है कि हम हिन्दी को जनभाषा के रूप मे विकसित, प्रचारित एंव प्रसारित   करने का बीड़ा उठाए | विश्वास कीजिये जन –जन एंव आज़ादी की  भाषा हिन्दी  राष्ट्रभाषा अपने आप बन जाएगी परंतु हमे दृढ़ संकल्पित तो होना पड़ेगा |  हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप मे मान्यता प्रदान करने के लिए निम्न मूल हो सकते है    |

  1. हिन्दी सीखने,बोलने और व्यवहार सहज एंव सरल है |
  2. हिन्दी बोलने वालों की संख्या सर्वाधिक है |
  3. हिन्दी सांस्कृतिक गरिमा एंव राष्ट्रीय चेतना के भाव से ओतपोत है |

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भारतीय भाषाओ का तुलनात्मक अध्ययन करने पर ज्ञात  होता है कि निर्विवाद रूप से हिन्दी मे ये विशेषताएँ है | हिन्दी संपर्क कि भाषा है इसके राष्ट्रीय महत्व को आज़ादी के दीवानों ने समझा इसलिए भारत को एकसूत्र मे जोड़ने के लिए हिन्दी को अपनाया |भाषा के स्तर पर  विषमता कि बात करना अनुचित होगा |

हिन्दी के महत्व को प्रमुखता देते हुए देश की महान विभूतियों  ने कहा :

हिन्दी अपने गुणो से देश की राष्ट्रभाषा है _ लाल बहादुर शास्त्री

हिन्दी हमारे राष्ट्र की अभिव्यक्ति की सरलतम स्रोत है – सुमित्रानंदन पंत

भारत की सब प्रांतीय बोलियाँ अपने घर मे रानी बन कर रहें  और  आधुनिक भाषाओं के हार  की मध्यमणि हिन्दी, भारत- भारती होकर विराजित रहे…………. गुरुदेव्र रवीद्रनाथ ठाकुर

सुखद अनुभूति का विषय है कि सबसे पहले बंगाल राज्य ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप मे स्वीकार किया तदोपरांत  कई राष्ट्र भक्तों ने  हिन्दी को राष्ट्र बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित हुये थे| राजा मोहनरायजी  1838 मे, केशव चंद्रसेन जी ने बंकिमचन्द्र ने 1875 बाद मे रवीद्रनाथ टैगोरजी और सुभाष  चन्द्र बोसजी अन्य ने हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने के मुद्दे पर देश का ध्यान आकर्षित किया | इससे विदित होता है कि  हिन्दी भाषियों से अधिक प्रयास  अहिन्दी भाषियों ने   हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए किया है | संविधान मे हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने वाले श्री गोपाल स्वामी अयंगर मूलतः तमिल भाषी थे, इसलिए  हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने मे अहिंदीभाषियों के योगदान सदैव याद रखा जाएगा |

मारीशस, फ़िजी, सूरीनाम,ब्रिटेन, थाइलैंड, अमेरिका ,जर्मनी,आदि देशो के विश्वविद्यालयों मे हिन्दी पढ़ाई जाती है | अमेरीका के चालीस से अधिक विश्वविद्यालयों मे हिन्दी पढ़ाई जाती है | मारीशस ऐसा देश है जहां की सरकन ने कानून बनाकर हिन्दी को बढ़ावा दे रही है | आश्चर्य का विषय है कि हम सवा अरब से अधिक  भारतीय लोग हिन्दी को राष्ट्रभाषा-राजभाषा बनाने के प्रति उदासीन बने हुये है, इसी हिन्दी को सिंगपुरवासियों ने अपनाया है | सिंगापुर मे भारतीयों की जनसंख्या लगभग छः प्रतिशत है परंतु    सिंगापुर मे हिन्दी का आकर्षण बढ़ता जा रहा है | हमारे देश के युवा हिन्दी के प्रति उदासीन है जबकि सिंगापुर युवाओं का मानना है कि हिन्दी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है,अङ्ग्रेज़ी ,चीनी के बाद हिन्दी ही प्रमुख भाषा है | हिन्दी चीनी के युवाओं के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है |

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सचमुच हिन्दी मे असीम संपर्क शक्ति है| यह जीवंत और स्वाभिमान कि भाषा है | हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए  अँग्रेजी भाषा का विरोध उचित नहीं है | हिन्दी दुनिया कि महान भाषाओं मे से एक है, शायद यही वजह है कि आमजन मे ही नहीं विश्व पटल पर भी हिन्दी का महत्व बढ़ता जा रहा है | हिन्दी विश्व पटल पर भारतीय अस्मिता मे निरंतर अभिवृध्दि कर रही है,इसके बाद भी राष्ट्रभाषा का दर्जा पाने के लिए संघर्षरत है ये कैसी विडम्बना है |

हिन्दी का अपना गौरवशाली विशाल साहित्य  है | कबीर,रविदास,सूर, जायसी, प्रेमचंद जयशंकर प्रसाद आदि कि काव्य कृतियों और प्राचीन ग्रंथो पर दृष्टिपात करते हैं तो हमे हिन्दी के गौरवशाली एंव संवृध्द साहित्यिक परंपरा के  दर्शन होते है |

हिन्दी सिर्फ सम्प्रेषण की भाषा नहीं है | हिन्दी  तो  राष्ट्रीय  स्वाभिमान और एकता भाषा है | राष्ट्रीय  स्वाभिमान और राष्ट्रीय एकता भौगौलिक एंव धार्मिक उन्माद से एकदम अलग है | देश की प्राचीन संस्कृति एंव सभ्यता को एकता के सूत्र मे  बांधकर  रखने के लिए  हिन्दी जैसी  सहज,सरल, सर्वमान्य एंव लोकप्रिय भाषा की जरूरत है | हिन्दी ने  आवश्यकतानुसार  संस्कृत और अन्य भाषाओं के साथ नई प्रौद्यौगिकी शब्दों को अपना कर स्वय  को संवृध्द और जीवंत बनाया है |

हिन्दी के पास पर्याप्त शब्दावली है परंतु दुर्भाग्य  की बात है हमे अपनी ही क्षमता पर विश्वास नहीं है | संभवतः यही कारण है कि हिन्दी ज्ञान विज्ञान और सरकारी कामकाज की भाषा नहीं बन पायी है और अपने ही  देश मे उपेक्षित है | इसके बाद भी हिन्दी विश्व पटल पर कुसुमित होकर  विश्व भाषा के रूप उभर रही  है | हिन्दी सिर्फ एक भाषा ही नहीं है, भारतीय संस्कृति –सभ्यता सबल,सामर्थ्य और सशक्तिकरण की संवाहिका भी है | हिन्दी मे भी  रोजगार  सृजन की भरपूर क्षमता है, हिन्दी अपनी भूमिका निभा भी रही है | हिन्दी को रोजगार से जोड़कर देखना उचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि  हिन्दी रोजगार की भाषा से पहले राष्ट्रभाषा मातृभाषा  है या यो कहे कि हमारी माँ है तो उचित होगा   | हम गर्व के साथ कह सकते है कि हिन्दी  सवा अरब लोगों  कि आन- मान- पहचान और स्वाभिमान की भाषा तो  है|

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भारतीय जनमानस का नैतिक दायित्व बन जाता है कि हिन्दी को मातृभाषा-राष्ट्रभाषा-राजभाषा के रूप मे स्वीकार करे क्योंकि इसी मे हमारा राष्ट्रीय  स्वाभिमान और राष्ट्रीय एकता निहित है | हिन्दी से हमारा स्वाभिमान कुसुमित होता है क्योंकि हिन्दी मातृभाषा है अर्थात माँ और दूसरी भाषायें-गुजराती, मराठी, बंगाली,उड़िया, मालवी,पंजाबी,मलयालम,कन्नड आदि मौसियां है| हिन्दी के साथ हमे प्रांतीय भाषाओं का भी सम्मान करना है परंतु माँ तो माँ होती है,यह हमें याद रखना है कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है| हिन्दी विश्व पटल पर देश का प्रतिनिधित्व कर रही  है और भारतवासियों के स्वाभिमान मे अभिवृध्दि भी | हिन्दी विश्व को अपनी ओर आकर्षित कर रही है | इस आकर्षण को जीवनतता  प्रदान करना हमारा नैतिक दायित्व है |

महर्षि दयानन्द सरस्वती ने ठीक ही कहा है – हिन्दी अपनी सरलता,व्यापकता तथा क्षमता के कारण देश की भाषा है | हम भारतीय है हिन्दी हमारी मातृभाषा है ,राष्ट्रभाषा है, राजभाषा है,हिन्दी भारतीयता के अस्तित्व का प्रतीक भी है | हिन्दी से हमारा स्वाभिमान कुसुमित होता है क्योंकि हिन्दी मातृभाषा है |

नन्द लाल भारती

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