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Dr. Srimati Tara Singh
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स्वार्थी जमाने की सोच

 
स्वार्थी जमाने की सोच

पिताजी कई बरसों से बिस्तर पर पड़े हुए हैं, पूरा परिवार पिताजी की खातिरदारी में लगा रहता है। सप्ताह भर पहले पिताजी की हालत नाजुक हो गई थी,खैर पिताजी के हालत मे कुछ सुधार तो है पर उन्हें अन्न जल चम्मच से खिलाया पिलाया जाता है,पिताजी की यादाश्त भी काफी खत्म हो चुकी है ।   पिताजी हमारे परिवार के लिए परमात्मा हैं।

पिताजी की हालत नाजुक है कि खबर सुनकर परिवार के सभी लोग जो परदेश थे,वे पिताजी के दर्शनार्थ गाँव की ओर रेल-जहाज जो भी साधन मिला उससे रवाना हो गये मैं भी कई सारी दिक्कतों के बाद भी पहुंच गया ।
दैवीय करिश्मा या दुआओं का प्रतिफल कहा जाये पिताजी मौत के मुंह से बाहर आ गए। 
सुबह मैं मुख्य सड़क से मार्निंग वाक् कर  घर वापस आ रहा था । गांव के ही दूसरे पूरा के पढे लिखे सज्जन मिल गए, मैं उन्हें देखकर कर ठिठक गया वे भी रुके हालचाल हुआ।
वे बोले कब आये।
शनिवार को ।
कुछ है क्या वे पूछे ।
पिताजी सीरियस हैं मैंने बताया ।
रिश्ते के दुश्मन  बोले  मारने का प्रबंध करो ।
मन मे तो आया बीच सड़क पर दस जूते जड़ दूं पर खुद पर काबू कर बोला हमारे पिताजी हमारे लिए धरती के जीवित भगवान हैं और मैं बैरंग चल दिया, उनके साथ चल रहे वृद्ध सज्जन सिर खुजलाते हुए बोले बात तो सही कह गया परदेसी ।
नन्द लाल भारती
10/02/2021

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