Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तपती रेत

 

प्रभु का अवतरण हुआ ,
कई बार जहा ,
द्वेष की तपन बढ़ रही वहा।
मुकमल खुशियां नहीं ,
खैर कब थी ,
कि अब होगी
शोषित के जीवन में ,
तपती रेत का
जीवन जी रहा दुत्कारा ,
उम्मीद है सूर्य के उगने से ,
होगी सुबह,
चमकेगा किस्मत का तार।
धोखा राग-द्वेष उत्पीडन ,
कब तक बना रहेगा ,
तपती रेत का जीवन,
कब तक झरता रहेगा ,
लूटी किस्मत का पेवन।
उत्पीडित भी चाहता है ,
खुशिया ,
कब तक जीएगा ,
तपती रेत का जीवन ,
बीते कईयों युग,
करते-करते आंसुओ का सेवन।
अब तो सपने पूरे हो जाने दो ,
तपती रेत के जीवन से ,
उबार जाने दो।

 

 

……… डॉ नन्द लाल भारती

 

 

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