ठगों की दुनिया
ठगों की दुनिया
शरीफों सम्मान के
कत्ल का ठीहा ही तो होती है
ये बहुरुपिये अंधेरे मे मिले
या मिले उजियारे मे
दोस्ती करें या
रिश्तेदारी अपने ठगी की
कसम का करते हैं
पालन........
मौका पाते ही
उतार देते हैं खंजर
बहुरुपिओं का दिल होता है
पथरीला बंजर
दूध पीलाओ तो उगल देते हैं
विष ये विषधर.....
ठग अपने पेशे के साथ
नहीं करते दगा
हां रिश्ते तो ये करते हैं
आंखों मे धूल झोंककर
फंस गए जाल मे इनके
जकड़ लेते हैं
ये बहुरुपिए नाग पनाग
उरग की तरह
छोड़ते हैं धीरे-धीरे विष
और
जकड़ लेते हैं
छोड़ने का नाम नहीं लेते
आह निकल नहीं पाती
जुबान खुल नहीं पाती
ठगा आदमी ना जी पाता हैं
ना चैन से मर
ये ठग ऐसे होते हैं
काटा इनका पानी मांग पाता
ऐसे होते हैं ये विषधर
दमाद को भी नहीं बख्शते
ये ठग लोग
बेटी की गृहस्थी के सपने
बेटी की ही आंखों मे
धूल झोंक कर
अपने हिस्से मे कर लेते हैं
ठगों की दुनिया के बादशाह
बड़े जालिम होते हैं
बेटी-दमाद तक को
ठगते हैं जो
बेटी का घर नहीं बसने देते जो
वो इंसान, इंसान नहीं
हैवान ही तो होगा
परमात्मा ऐसे ठगो से बचाना
सरल-सहज-शरीफ के
सम्मान की रक्षा
और सुरक्षा प्रदान करना
मानवीय रिश्तों को
कुसुमित रखने के लिए
हे परमात्मा ठगो की दुनिया को तुम्हें ही
नेस्तनाबूद करना होगा ।
डां नन्द लाल भारती
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY