Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

उखड़े पांव

 

 

ukhre paon

 

लघुकथाकार नंदलाल भारत और दलित चेतना

डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह
सहायक प्रोफेसर (हिंदी)
राजकीय स्नाेतकोत्तहर महाविद्यालय
जलेसर, एटा, उत्तहर प्रदेश
मोबाइल – 7500573935
Email – vickysingh4675@gmail.com


दलित संवेदना को उकेरने कार्य लगभग साहित्यm की हर विधा में किया जा रहा है। लघुकथाओं के संदर्भ में बात करें तो राजेंद्र यादव की ‘दो दिवंगत’ तथा रजनी गुप्तं की ‘गठरी’ महत्वापूर्ण प्रारंभिक दलित संवेदना की लघुकथाएं हैं। इसके बाद ‘जूठन’ आत्म कथा संग्रह ने भी दलित चेतना को बहुत ही गंभीरता के साथ उठाया। हाल में कड़ी में एक ओर नाम जुड़ा और वह है ‘उखड़े पांव’ (डॉ.नंदलाल भारती) लघुकथा संग्रह का। प्रस्तुात संग्रह में 143 लघुकथाएं हैं।
लघुकथा को श्रेष्ठा एवं कलात्मजक रूप देने के लिए आवश्य(क तत्वोंं के निर्वहन, अर्थात् 1.शीर्षक,2.रूप-कौशल,3.कथा-कौशल,4.पात्र-योजना, 5. लक्ष्य-कौशल तथा 6.समाप्ति-कौशल, आदि की दृष्टि से नंदलाल भारती का यह लघुकथा संग्रह बहुत अच्छाव है।
शीर्षक के तहत समाज में प्रचलित संसाधनात्मरक नामों का उपयोग करते हुए उन्होंलने ईमान, कमाई, सवाला, सरकारी टेंकर, एड्स, परिभाषा, ये इंडिया है, अस्पृलश्य ता, उपभोग, दीमक, नंगापन, परछाई, जाति, मंहगाई, बंटवारा, हवस, छुरी, दहेज की कार, अगुवाई, ब्यायह की बेदी, भूखी उम्मीमदें आदि के माध्यपम से शीर्षक से ही स्पतष्ट कर दिया है कि ये कथाएं आधुनिक समाज में दलितों की जीवन शैली को उकेरने वाली लघुकथाएं हैं।
रूप्‍ा कौशल तथा कथा कौशल की दृष्टि से भी इस संग्रह की रचनाएं अच्छीं श्रेणी की हैं क्योंहकि अधिकांश लघुकथाैएं संक्षिप्त सारगर्भित एवं किसी न किसी समसामयिक विषय को छूती हैं। ‘ईमान’ कहानी के कथ्यक को देखे तो ‘सुबह गदराई हुई थी लोग खुश थे क्योंवकि उनके सूखते धान के खेत लहलहा उठे थे, बरसात का पानी पाकर। इसी बीच राजा बदमाश आ धमका अपने कई साथियों के साथ।’’(ईमान, पृष्ठे सं.15) अच्छी लघुकथा में विस्ता‍र से बचाव अत्याबवश्यअक तत्वो है और इसका निर्वाह कथाकार ने सम्पूठर्ण संग्रह में किया है।
पात्र योजना की दृष्टि से कहानी ‘आराधना’, ‘कमाई’, ‘सवाल’, ‘जनून’, ‘गुमान’, ‘काली’, ‘राखी’, ‘ये इंडिया है’ एवं अन्य सभी में एक बहुत ही अच्छीा बात है कि किसी भी कहानी में दो से तीन पात्रों रखे गए हैं। संवाद भी बहुत ही संक्षिप्तव एवं सारगर्भित हैं- ‘जगदेव- बाबा दगाबाज लोग पूरी कायनात के लिए अपशकुन हो गए हैं। बाबा ये दगाबाज बेईमान मुखौटाधारी आदमियत के विरोधी लोग समाज और देश की तरक्कीब की राह में एड्स हो गए हैं।’’( एड्स, पृष्ठा सं.20)
नंदलाल भारती ने लघुकथाओं में तीखे व्यंोग्य का भी भरपूर सहारा लिया है। ‘ मैडम रोहिनी- आज की मजदूरी तो गयी।.....बाई- मैडम जी गयी तो जाने दो। मैं तो संतोष के धन में खुश रहती हूं। अधिक रूपया से घमंड आता है, कहते हुए बाई अपनी झोपड़ी में चली गयी। मैडम रोहिनी माथे पर भारी सिकन लिए कुत्तेी के साथ आगे बढ़ गई।’’(घमंड, पृष्ठड सं; 24)
समाज में अस्पृेश्यहता दलित वर्ग के जीवन के साथ प्रारंभ होती है और अंतिम सांस तक चलती रहती है। यहां तक सरकारी जलसों, सार्वजनिक कार्यक्रमों तक में दलितों का प्रवेश वर्जित होता है। इसी भावना को प्रस्तु त करती है लघुकथा ‘अस्पृृश्यजता’। ‘नंगापन’ कहानी सवर्णों के आंतरिक नंगेपन को उघाड़ती है-‘दीनानाथ- रामू काका मध्य म कद काठी, ऊंची योग्युता, नन्हाम ओहदा, उत्पीहड़न शोषण का शिकार, इल्जाैमों का बोझ, पग पग पर परीक्षा देते विजय का कर्मपथ पर आगे बढ़ना। दंभी मानसिक नंगे, लोगों की आंखों का सकून छिन रहा था। विजय की कराह पर ताली बज उठतीं। मुड़कर देखने पर आचरणहीनता, दुर्व्यखवहार तैयार हो जाता।’’ (नंगापन, पृष्ठत सं. 46)
‘जाति’ लघुकथा सवर्णों का दलितों को देख भी न पाने की मानसिकता को उजागर करती है-‘शहर में शिफ्ट हो चुके जमींदार साहब के बेटे के ब्यााह की रिशेप्सान पार्टी का न्यौरता पाकर व्योीम भी हाजिर हुआ। व्यो‍म को देखकर जमींदार यादवेंद्र के चचेरे भाई दरिदेंद्र का खून खौल गया। वह व्योसम को एक ओर ले जाकर गाली देते हुए बोला –अरे तू छोटी जाति का है। हमारी बिरादरी के लोगों के साथ खाना खा रहा है। कुछ तो शरम करता।’’ (जाति, पृष्ठर सं.51) इस लघुकथा में नंदलाल भारती ने ‘तू मेरा हुक्का पानी बंद करवाएगा क्या(? तुम्हो रा छुआ खाना कौन खाएगा ? तुम्होषरा छुआ पानी कौन पीएगा? अरे जितनी भी बड़ी डिग्री ले ले तू , रहेगा छोटी जाति का ही ना? आदि सवालों को एक सवर्ण के मुंह से कहलवा कर प्राचीन काल से चली आ रही दकियानूसी सोच का प्रस्तुरत करते हुए एक दलित द्वारा उसके प्रत्युहत्त र से स्पचष्टक किया है कि अब दलित पहले जैसे गाली सुनकर चुपचाप चले जाने वाले नहीं रहे उनमें भी स्वा भिमान आ चुका है। ‘व्यो‍म’ बोला दरिदेंद्र वक्तै बदल चुका है। छोटी जाति के लोग बड़े बड़े मान सम्माौन पा रहे हैं, पूजे तक जा रहे हैं। तुम अमानुषता की लकीर पीट रहे हो। जातिवाद की दीवारें ढह चुकी हैं।’’ (जाति, पृष्ठड सं.51)
शैली, संवेदनीयता और उसका कला-पक्ष के हिसाब से भी रचनाएं अच्छी‍ बन पड़ी हैं। साथ ही प्रस्तु़तीकरण जो कि लघुकथा में प्राणों की भूमिका का निवर्हन करता है के विचार से भी प्रस्तुनत संग्रह की लघुकथाएं बहुत ही श्रेष्ठस हैं और प्रत्येथक कथा अपने समापन पर कोई न कोई तीखा संदेश देते हुए ही समाप्तर की गई ताकि उसकी चुभन पाठक के दिलोदिमाग को झंकझोरती रहे। प्रस्तु तीकरण की शैली भावात्म क अधिक है । वर्णनात्मककता से बचते हुए भावों की चित्रात्म कता पर अधिक बल दिया गया है।
लधुकथा की प्रस्तुति में उत्तम पुरुष,मध्यम पुरुष और प्रथम पुरुष की शैली का उपयोग किया जाता है। नंदलाल भारती ने भी इन सभी माध्य मों का प्रयोग करते हुए लघुकथा लेखन पर अच्छीु पकड़ होने का परिचय दिया।

वैसे तो यह लघुकथा संग्रह दलित विमर्श की रचनाओं को अपने आप में समेटे हुए है परंतु इसमें एक विशिष्ट ता यह भी है कि इसमें सामाजिक बुराईयों, जातीय भेदभाव, राजनीतिक पैतरेबाजी, सरकारी भ्रष्टााचार आदि के साथ-साथ दलितों के प्रति सवर्णों मानसिकता को प्रस्तुमत करते हुए दलितों के मनोविज्ञान को भी बहुत अच्छीस तरह प्रस्तु त किया है।

.........................................................................................................................................................
समीक्षित कृति – उखड़े पांव
लेखक - डॉ. नंदलाल भारती
आईएसबीएन- 978-93-83237-40-1
मूल्यी – 295/-
प्रकाशक – यश पब्लिकेशंस, नवीन शाहदरा, दिल्ली.-110032

 

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ