झाँक कर आगे-पीछे ,
देखकर बेदखली बेबसी की दास्तान ,
ढो कर चोट का भार ,
पा कर तरक्की से दूर ,
लगने लगा है
गिरवी रख दिया उम्र का मधुमास।
ना मिली सोहरत ना मिली दौलत
गरीब के गहने की तरह ,
चाँद सिक्को के बदले ,
साहूकार की तिजोरी में
कैद हो गया उम्र का मधुमास।
पतझर झराझर उम्र के मधुमास
बोये सपने तालीम की उर्वरा संग
सींचे पसीने से ,अच्छे कल की आस ,
बंटवारे की बिजली गिर पड़ी
भरे मधुमास।
सपने छिन्न-भिन्न ,राहे बंद
आहे भभक रही ,
ये कैसी बंदिशे,
साँसे तड़प-तड़प कह रही
किस गुनाह की सजा निरापद को
हक़ लूट गए भरे मधुमास।
तालीम की शवयात्रा, श्रेष्ठता का मान
दबंगता की बौझार,श्रम का अपमान
गुहार बनता गुनाह ,
सपनों का क़त्ल,
आज गिरवी कल से भी ना पक्की आस ,
डूबत खाते का हो गया
शोषित का मधुमास।
लहलहाता आग का तांडव
शोषित गरीब की नसीब होती नित कैद
उड़ान पर पहरे,संभावना पर बस आस
मन तड़प-तड़प कहता
ना मान ना पहचान ,
कहाँ गिरवी रख दिया ,
उम्र का मधुमास।
दीन शोषितो की पूरी हो जाती आस
नसीब के भ्रम से परदा हट जाता ,
मिलता जल-जमीन पर हक़ बराबर
तरक्की का अवसर सामान
ना जाति -धर्म-क्षेत्रवाद की धधकती आग
मृत शैय्या पर ना तड़पता मधुमास ,
ना तड़प-तड़प कर कहता
कहाँ गिरवी रख दिया ,
उम्र का मधुमास।
डॉ नन्द लाल भारती
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