एक हमारे भी खास रिश्तेदार थे जोखनबाबू।
क्या अब नहीं हैं ?
बिल्कुल है ।
थे क्यो ?
दिखावा पसंद थे, आदेश दो भाई साहब कहते नहीं थकते थे।जब स्वार्थ की असलियत जमाने के सामने आ गई और मेरी बेनूरी हो गयी। मैंने रिश्तेदार को त्याग दिया। रिश्तेदारी को कसकर पकड़ लिया।रिश्तेदारी अपनेपन पर टिकती है झूठ, फरेब, दिखावा और स्वार्थ पर नहीं।
तुम भी कमाल के हो यार उपदेश बाबू, रिश्तेदार का त्याग करते हो रिश्तेदारी को कसकर पकड़ते हो।
रिश्तेदारी की वजह पाक है जो हमारे कुल की मर्यादा बन चुकी है जोखानबाबू।
डॉ नंदलाल भारती
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