Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वेदना के फूल

 

 

वेदना के फूल ,
श्रध्दा की थाली में भर लाया हूँ।
संवेदना गंगाजल,
पलकों पर उतार लाया हूँ .
कल की आशा में,
चोट बहुत खाया हूँ .
संवर जाए कल ,
ऐसा गुण खोजने आया हूँ ,
सुख की आशा में ,
छलकते आंसू पाया हूँ।
ठगा गया जीवन ,
शांति के द्वार आया हूँ।
ना रिसे घाव अब ,
ऐसा मरहम खोजने आया हूँ ,
लोग खींचे -खींचे ,
मैं सद्भावना का भाव ,
खोजने आया हूँ।
ना जाति धर्म का विष बोने ,
मैं तो मानवता की,
बात करने आया हूँ.
पलकें नाम दिल रोता ,
जख्म गहरा पाया हूँ.
तकदीर कैद ,
मैं तो फ़रियाद करने आया हूँ।
लकीरो ने किया फ़कीर ,
मैं तो एकता का,
सन्देश लाया हूँ।
फले-फुले कायनात ,
मैं तो तरक्की का,
वरदान लेने आया हूँ .
वेदना की फूल ,
श्रध्दा की थाली में भर लाया हूँ।

 

 


डॉ नन्द लाल भारती

 

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