Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

वेरी लेजी

 

 

भारतीय परिवेष में जातिवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद, साामाजिक विद्रूपदा और रूढिवादी एवं विनाषकारी तत्वों के बीच पीसता हाषिये के आज भी संघर्शरत् है। असली आजादी आज भी उससे कोसों दूर है। कुछ पढ़े-लिखे लोग तरक्की की राह पर तो है परन्तु अधिकांष जनसंख्या अल्पषिक्षित अथवा अषिक्षित है। आरक्षण की हड़िया तो रोज चैराहे पर फोड़ी जा रही है। आरक्षण उंट के मुंह में जीरा जैसा है। आज हाषिये का आदमी आरक्षण नही चाहता वह चाहता है तो समानता अर्थात आर्थिक समानता,मानवीय-सामाजिक समानता,जमीन एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर समान अधिकार,है किसी में दम जो दे सके नहीं पक्षपाती और मानसिक बीमार दमन के लिये कमर कसे हुए है। दुर्भाग्यवष समानता तो मिल नहीं रही, जीवन दिन पर दिन संघर्शरत् होता जा रहा है। दंबग किस्म के लोग हर जगह हाषिये के आदमी के विरूद्ध गिद्ध नजर गड़ाये हुए है मौका पाते है डंस ले रहे है। क्यों इतना नाराज हो नगेन्द्र।,घुरहूं बाबू बोले
प्रभुता पाहिं काहिं मद नाहिं खुलेआम प्रदर्षन होने लगा है नगेन्द्र बोला।
कौन है ऐसा अमानुश जो वैभव और ऐष्वर्य पाकर अहंकारी हो गया है,तुम्हे डंस रहा है। ससुरा गरीब को तबाह कर क्या पायेगा घुरहूं बाबू बोले।
खाल उठाये सिंह की सियार सिंह नहीं होय पर कुछ आदमियत विरोधी तरक्की क्या पा गये कि धोबी के पात्र में गिरे सियार सिंह की नकल करने लगे है।
फिक्र ना करो नगेन्द्र, कूद कूद मछली बगुले को खाय कहावत चरितार्थ करने वालों के जीवन में एक दिन ऐसा भी आएगा कि कण्डा से आसूं पोछना पड़ेगा घुरहू बाबू बोले।
काका अंधे के आगे रोये अपनी दीदा खोये वाली हाल अपनी हो गयी है।
जाको राखो साईंया मार सकै ना कोय फिक्र ना कर यार तेरा कोई बाल भी बांका नही कर सकता। उतावला सो बावला धीरा सो गम्भीरा घुरहूबाबू बोले।
काका गम्भीर बने रहने का दण्ड तो मुझे मिल रहा है।
क्या हो गया नगेन्द्र बाबू ?
वेरी लेजी आफीसर का दण्ड मिल गया। चरित्रावली खराब कर दी गयी है,बड़ी उम्मीद से आया था पर जातिवादी पक्षपाती पूरी ईमानदारी,लगन और समयबद्धता के साथ काम करने के बदले दण्डित किया जा रहा है।
ऐसे कैसे लोग है,छुद्र नदी भरि चली इतराई वाली कहावत को सिद्ध कर रहे है,अदने और सुषिक्षित इंसान को तंग कर रहे हैं घुरहू बाबू बोले।
तीन की तिकड़ी है एक तो ऐेसे परदेस से है,जहां हाथी मर जाये तो लोग घण्टोे में चट कर जाये।
इतनी भूखमरी है घुरहू बाबू बोले।
हां बाबू मि.नन्हकू हलाल जैन्टलमैन हो गये है,साहब हो गये है।मुझ अदने के आंसू से उसे जैसे कुत्ते को सूखी हड्डी से खेलने में मजा आता है,वैसे ही हलाल को मेरे जज्बातों से,मेरे हकोे से,मेरे आज से मेरे कल से खेलने में मजा आने लगा है।
कैसे अमानुशों के बीच फंस गये नगेन्द्र बाबू। ये तो वो हाल हो गयी चैबे गये छब्बे बनने दूबे बनकर लौटे। तुम तो बहुत ख्वाब लेकर स्थानान्तरण को स्वीकार किये पर क्या ये तो मुर्दाखोरों की नजर लगे। तिकड़ी की दो और कौन सी जलाद कड़ियां है घुरहू बाबू पूछ बैठे।
काका दो तो ऐसे परदेस है जिनके लिये पैसा ही सब कुछ है,पैसे के लिये कुछ भी कर सकते है।दूसरे साहब तो मिलावट के माहिर है,झूठ फरेब,साजिष इनकी आदत है । ये किसी विद्वान को मूर्ख बनवा सकते है,ईमानदार को बेईमान बनवा सकते है,कर्मठ और फर्ज पर फना होने वाले को वेरी वेरी लेजी अफसर का घिनौना दण्ड दिला सकते है,इन्हें मि.हिकमत हराम के नाम से जाना जाता है, तीसरे है चुप छिनार मि.देखू उत्पाती,इन सब के बाप है मि.नन्हकू हलाल।
अरे ये नाम से तो कसाई लगते है।
काका सही पकड़े कमजोर के लिये कसाई ही है।मि.हलाल को अपनी प्रषंसा के अलावा कुछ नही भाता। मि.हराम और मि.उत्पाती मि.हलाल के लिये दरबारी मसखरे जैसे है चापलूसी के बदले बख्षीष भी मिलती है। ये दोनों लोग मि.हलाल का कान भर कर मुझ जैसे का जनाजा निकलवा सकते है,नौकरी खा सकते है,गोपनीय चरित्रावली खराब करवा सकते है,कड़ी से कड़ी सजा दिलवा सकते है,काम में जी जान लगा देने वाले को वेरी लेजी अफसर का सुलगता काटों का ताज भी दिलवा सकते हैं। मि.हलाल को कमजोर और निर्दोश को दण्डित करने में वैसे मजा आता है जैसे बीमारी हिरन का षिकार करने में बब्बर षेर को आता है।
बीमार हिरन के षिकार में बब्बर षेर को,कुछ बात समझ में नहीं आई।
काका हम और हमारे समाज को आदमियत विरोधी जातिवादी व्यवस्था ने तो पंगु बना कर रख दिया है। इसी के सहारे निषान साधे जा रहे है। छोटी कौम का आदमी सर्वाधिक क्यों ना पढ़ा-लिखा हो पर तथाकथित समानता की घडिय़ाली आंसू बहाने वाले डंसते है। यह ऐसा मुद्दा है कि पिछड़े से लेकर अगड़े तक दोशी कमजोर को मानते है,जबकि कमजोर की कोई भी गलती नहीं पर दण्ड कमजोर को मिलता है।
घुरहूं दादा बोले बेटा तू षोशण,उत्पीड़न का षिकार है।
हां काका बिल्कुल सही समझे मि.हलाल हमारे खिलाफ पूरी ताकत का इस्तेमाल कर रहे है,मेरी मां मृत षैय्या पर पड़ी है।मां के बीामरी के वजह से स्थानान्तरण चाहा तो मेरी अवन्नति करवा दिया।इतना ही नही मेरी चरित्रावली खराब कर दी गया है। चरित्रावली में टिप्पणी लिखा है वेरी लेजी आफिसर।
सत्यानाष हो मुर्दाखोरों का एक ईमानदार,कर्मठ के चरित्रावली में ऐसी टिप्पणी।दुनिया 21वीं सदी में पहुंच गयी है,हमारा रूढिवादी समाज पन्द्रहवीं सदी में जी रहा है।आदमियत के माथे के कलंक जातिवाद को पोशित कर रहा है।जाति के नाम पर उत्पीड़न,षोशण दमन कर रहा है।
काका खुद तो कर रहे है दूसरों को उकसा रहे है ताकि घबराकर नौकरी छोड़ दे या आत्महत्या कर ले ताकि खाली जगह पर किसी अपने वाले को बिठा दे।
ऐसी भी साजिषें होती है क्या ?
काका मेर साथ हो रही है। मेरे ससुर के साथ हुई है। उन्हें तो नौकरी से निकाल तक दिया गया था,हाईकोर्ट में केस लगाये थे। आखिरकार उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया गया,जितने साल नौकरी से बाहर रहे सब हर्जाना मिला था।
ये तो बहुम नाइंसाफी हो रही है,पढे़-लिखे उंचे पद पर बैठकर ऐसा कर रहे है,ये तो षर्म की बात है।इन्हें तो समानता के लिये आगे चाहिये,अन्र्तजातीय विवाह करवाना चाहिये,दबे -कुचले हाषिये के लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिये पर क्या ये आदमियत,देष और विभागों के दुष्मन फर्ज पर फना होने वालों को वेरी लेजी का ठप्पा लग रहे है।जबरा मारे रोवै ना दे,ऐसी हरकत कर रहे है,तुम जैसे कर्मठ के साथ।कैसे मुर्दाखोर किस्म के लोग है। षराफत की खोलराई ओढ़कर,हाषिये के आदमी को बेमौत मारने की साजिष रच रहे है।चोट्टी कुतिया जलेबी को रखाती है, के चरित्र का नंगापर्दषन कर रहे है।
काका मैं तंग आ गया हूं,मुर्दाखोरों की करतूतों से। घर परिवार से दूरी बर्दाष्त नही होती,परिवार कहीं और मैं कही और बस नौकरी के लिये,पर मि.हलाल और उनके चमचे नौकरी और जीवन भी खाना चाहते है।
धीरज धरिये तो उतरिये पारू बेटा नगेन्द्र,मुर्दाखोरों से घबरा कर मत नौकरी छोड़ना ना अपने जीवन से खिलवाड़ करना । मैं समझ गया मि.हलाल और उनके चमचों के इरादे को वे गुलाम बनाकर नौकरी करवाना चाहते है।बेटा अल्ला मियंा की गाय नही बनना,ईमानदारी और कर्मठता के साथ देष और जनहित में नौकरी करो।
काका गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। मि.हराम तो मि.हलाल के घोर विरोधी थे,विभाग सुप्रीमों से मि.हलाल की लिखित में षिकायत भी किये थे।आखिर में मि.हराम मि.हलाल का जूता उठाने लगे और खास हो गये। मि.उत्पाती की वैसे तो कोई हैषियत नही है,बस मि.हलाल के सामने वैसे हाथ बांधे खड़े रहते है,इस इन्तजार में मि. हलाल थूके तो हाथ फैला दे।काका सच किसी ने कहा है जादू वह जो सिर चढ़कर बोले। मि.हलाल का जादू मि.हराम और मि.उत्पाती के सिर चढकर बोल रहा है। अच्छे को बुरा,ईमानदार को बेईमान,कर्मठ को कामचोर,फर्ज पर फना होने वाले को और समयबद्ध तरीके से और बिना अतिरिक्त लाभ के डयूटी से अत्यधिक काम करने वाले को वेरी लेजी अफसर का घिनौना दाग दे रहे है।इतना ही नहीं सर्विस बुक में लिख दिये है।काका सिर्फ जातीय भेदभाव की वजह से।
बेटा नगेन्द्र तुम तो जानते हो उच्च कुल से हूं उंचे ओहदे से रिटायर हूं पर जातिवाद को हमने पूरी तरह त्याग दिया है,खुद छोटी बिरादरी की लड़की से ब्याह किया हूं,बच्चों की ब्याह भी अपने जैसे करूंगा।इससे रिष्ता अच्छा मिलेगा,दहेज के नरपिषाच से पाला नहीं पड़ेगा,और समाजिक समानता के महायज्ञ में मेरी आहुति होगी,मेरे लिये तो गर्व की बात है।
काका काष सब आप जैसे सोचने लगते तो जातिवाद के नाम पर छोटी जाति के होनहार आत्महत्या नहीं करते,ना उन्हें कम आंका जााता और ना मुझ जैसे निरापद को नौकरी छोड़ने या आत्महत्या की तरफ ढकेला जाता।
बेटा नगेन्द्र फिक्र ना कर बस फर्ज पर खरा उतरते रहो,बुरा मत सोचो बुरा मत करो, तुम जैसे निरापद के साथ बुरा करने वालों चाहे मि.हलाल हो,मि.हराम हो या मि.उत्पाती ऐसे लोगों का सर्वनाष निष्चित होता है। सच परेषान हो सकता है पराजित नही ।बेटा तुम्हारे सिर पर ज्ञान की देवी का हाथ है। तुम्हारी दुष्मनी तो अंधेरोे से है,दीया की तरह अंधेरे के खिलाफ जलते रहो।
हां काका फर्ज पर ही फना हो रहा हूं चाहे लहू के प्यासे मुर्दाखोर भले वेरी लेजी अफसर लिखते और कहते रहे।
तुम जैसे प्रतिभावान को वेरी लेजी कहने वाले एक दिन माफी मांगेगे। बेटा धीरज रखो,ऐसे मुर्दाखोरों का जब नाष होने को होते है ना तब प्रतिभावान,सच्चे,ईमानदार,कर्मठ लोगों पर हमला बोलते है जैसे फतींगे की मौत आती है तो वह दीपक को छूता है। बेटा तुम अंधेरे के खिलाफ उजाले की ललकार करते रहो कहते हुए घुरहू काका उठे और खंखारते हुए अपने आाषियाने की ओर बढ़ चले।

 

 

डां.नन्दलाल भारती

 

 

 

भारतीय परिवेष में जातिवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद, साामाजिक विद्रूपदा और रूढिवादी एवं विनाषकारी तत्वों के बीच पीसता हाषिये के आज भी संघर्शरत् है। असली आजादी आज भी उससे कोसों दूर है। कुछ पढ़े-लिखे लोग तरक्की की राह पर तो है परन्तु अधिकांष जनसंख्या अल्पषिक्षित अथवा अषिक्षित है। आरक्षण की हड़िया तो रोज चैराहे पर फोड़ी जा रही है। आरक्षण उंट के मुंह में जीरा जैसा है। आज हाषिये का आदमी आरक्षण नही चाहता वह चाहता है तो समानता अर्थात आर्थिक समानता,मानवीय-सामाजिक समानता,जमीन एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर समान अधिकार,है किसी में दम जो दे सके नहीं पक्षपाती और मानसिक बीमार दमन के लिये कमर कसे हुए है। दुर्भाग्यवष समानता तो मिल नहीं रही, जीवन दिन पर दिन संघर्शरत् होता जा रहा है। दंबग किस्म के लोग हर जगह हाषिये के आदमी के विरूद्ध गिद्ध नजर गड़ाये हुए है मौका पाते है डंस ले रहे है। क्यों इतना नाराज हो नगेन्द्र।,घुरहूं बाबू बोले
प्रभुता पाहिं काहिं मद नाहिं खुलेआम प्रदर्षन होने लगा है नगेन्द्र बोला।
कौन है ऐसा अमानुश जो वैभव और ऐष्वर्य पाकर अहंकारी हो गया है,तुम्हे डंस रहा है। ससुरा गरीब को तबाह कर क्या पायेगा घुरहूं बाबू बोले।
खाल उठाये सिंह की सियार सिंह नहीं होय पर कुछ आदमियत विरोधी तरक्की क्या पा गये कि धोबी के पात्र में गिरे सियार सिंह की नकल करने लगे है।
फिक्र ना करो नगेन्द्र, कूद कूद मछली बगुले को खाय कहावत चरितार्थ करने वालों के जीवन में एक दिन ऐसा भी आएगा कि कण्डा से आसूं पोछना पड़ेगा घुरहू बाबू बोले।
काका अंधे के आगे रोये अपनी दीदा खोये वाली हाल अपनी हो गयी है।
जाको राखो साईंया मार सकै ना कोय फिक्र ना कर यार तेरा कोई बाल भी बांका नही कर सकता। उतावला सो बावला धीरा सो गम्भीरा घुरहूबाबू बोले।
काका गम्भीर बने रहने का दण्ड तो मुझे मिल रहा है।
क्या हो गया नगेन्द्र बाबू ?
वेरी लेजी आफीसर का दण्ड मिल गया। चरित्रावली खराब कर दी गयी है,बड़ी उम्मीद से आया था पर जातिवादी पक्षपाती पूरी ईमानदारी,लगन और समयबद्धता के साथ काम करने के बदले दण्डित किया जा रहा है।
ऐसे कैसे लोग है,छुद्र नदी भरि चली इतराई वाली कहावत को सिद्ध कर रहे है,अदने और सुषिक्षित इंसान को तंग कर रहे हैं घुरहू बाबू बोले।
तीन की तिकड़ी है एक तो ऐेसे परदेस से है,जहां हाथी मर जाये तो लोग घण्टोे में चट कर जाये।
इतनी भूखमरी है घुरहू बाबू बोले।
हां बाबू मि.नन्हकू हलाल जैन्टलमैन हो गये है,साहब हो गये है।मुझ अदने के आंसू से उसे जैसे कुत्ते को सूखी हड्डी से खेलने में मजा आता है,वैसे ही हलाल को मेरे जज्बातों से,मेरे हकोे से,मेरे आज से मेरे कल से खेलने में मजा आने लगा है।
कैसे अमानुशों के बीच फंस गये नगेन्द्र बाबू। ये तो वो हाल हो गयी चैबे गये छब्बे बनने दूबे बनकर लौटे। तुम तो बहुत ख्वाब लेकर स्थानान्तरण को स्वीकार किये पर क्या ये तो मुर्दाखोरों की नजर लगे। तिकड़ी की दो और कौन सी जलाद कड़ियां है घुरहू बाबू पूछ बैठे।
काका दो तो ऐसे परदेस है जिनके लिये पैसा ही सब कुछ है,पैसे के लिये कुछ भी कर सकते है।दूसरे साहब तो मिलावट के माहिर है,झूठ फरेब,साजिष इनकी आदत है । ये किसी विद्वान को मूर्ख बनवा सकते है,ईमानदार को बेईमान बनवा सकते है,कर्मठ और फर्ज पर फना होने वाले को वेरी वेरी लेजी अफसर का घिनौना दण्ड दिला सकते है,इन्हें मि.हिकमत हराम के नाम से जाना जाता है, तीसरे है चुप छिनार मि.देखू उत्पाती,इन सब के बाप है मि.नन्हकू हलाल।
अरे ये नाम से तो कसाई लगते है।
काका सही पकड़े कमजोर के लिये कसाई ही है।मि.हलाल को अपनी प्रषंसा के अलावा कुछ नही भाता। मि.हराम और मि.उत्पाती मि.हलाल के लिये दरबारी मसखरे जैसे है चापलूसी के बदले बख्षीष भी मिलती है। ये दोनों लोग मि.हलाल का कान भर कर मुझ जैसे का जनाजा निकलवा सकते है,नौकरी खा सकते है,गोपनीय चरित्रावली खराब करवा सकते है,कड़ी से कड़ी सजा दिलवा सकते है,काम में जी जान लगा देने वाले को वेरी लेजी अफसर का सुलगता काटों का ताज भी दिलवा सकते हैं। मि.हलाल को कमजोर और निर्दोश को दण्डित करने में वैसे मजा आता है जैसे बीमारी हिरन का षिकार करने में बब्बर षेर को आता है।
बीमार हिरन के षिकार में बब्बर षेर को,कुछ बात समझ में नहीं आई।
काका हम और हमारे समाज को आदमियत विरोधी जातिवादी व्यवस्था ने तो पंगु बना कर रख दिया है। इसी के सहारे निषान साधे जा रहे है। छोटी कौम का आदमी सर्वाधिक क्यों ना पढ़ा-लिखा हो पर तथाकथित समानता की घडिय़ाली आंसू बहाने वाले डंसते है। यह ऐसा मुद्दा है कि पिछड़े से लेकर अगड़े तक दोशी कमजोर को मानते है,जबकि कमजोर की कोई भी गलती नहीं पर दण्ड कमजोर को मिलता है।
घुरहूं दादा बोले बेटा तू षोशण,उत्पीड़न का षिकार है।
हां काका बिल्कुल सही समझे मि.हलाल हमारे खिलाफ पूरी ताकत का इस्तेमाल कर रहे है,मेरी मां मृत षैय्या पर पड़ी है।मां के बीामरी के वजह से स्थानान्तरण चाहा तो मेरी अवन्नति करवा दिया।इतना ही नही मेरी चरित्रावली खराब कर दी गया है। चरित्रावली में टिप्पणी लिखा है वेरी लेजी आफिसर।
सत्यानाष हो मुर्दाखोरों का एक ईमानदार,कर्मठ के चरित्रावली में ऐसी टिप्पणी।दुनिया 21वीं सदी में पहुंच गयी है,हमारा रूढिवादी समाज पन्द्रहवीं सदी में जी रहा है।आदमियत के माथे के कलंक जातिवाद को पोशित कर रहा है।जाति के नाम पर उत्पीड़न,षोशण दमन कर रहा है।
काका खुद तो कर रहे है दूसरों को उकसा रहे है ताकि घबराकर नौकरी छोड़ दे या आत्महत्या कर ले ताकि खाली जगह पर किसी अपने वाले को बिठा दे।
ऐसी भी साजिषें होती है क्या ?
काका मेर साथ हो रही है। मेरे ससुर के साथ हुई है। उन्हें तो नौकरी से निकाल तक दिया गया था,हाईकोर्ट में केस लगाये थे। आखिरकार उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया गया,जितने साल नौकरी से बाहर रहे सब हर्जाना मिला था।
ये तो बहुम नाइंसाफी हो रही है,पढे़-लिखे उंचे पद पर बैठकर ऐसा कर रहे है,ये तो षर्म की बात है।इन्हें तो समानता के लिये आगे चाहिये,अन्र्तजातीय विवाह करवाना चाहिये,दबे -कुचले हाषिये के लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिये पर क्या ये आदमियत,देष और विभागों के दुष्मन फर्ज पर फना होने वालों को वेरी लेजी का ठप्पा लग रहे है।जबरा मारे रोवै ना दे,ऐसी हरकत कर रहे है,तुम जैसे कर्मठ के साथ।कैसे मुर्दाखोर किस्म के लोग है। षराफत की खोलराई ओढ़कर,हाषिये के आदमी को बेमौत मारने की साजिष रच रहे है।चोट्टी कुतिया जलेबी को रखाती है, के चरित्र का नंगापर्दषन कर रहे है।
काका मैं तंग आ गया हूं,मुर्दाखोरों की करतूतों से। घर परिवार से दूरी बर्दाष्त नही होती,परिवार कहीं और मैं कही और बस नौकरी के लिये,पर मि.हलाल और उनके चमचे नौकरी और जीवन भी खाना चाहते है।
धीरज धरिये तो उतरिये पारू बेटा नगेन्द्र,मुर्दाखोरों से घबरा कर मत नौकरी छोड़ना ना अपने जीवन से खिलवाड़ करना । मैं समझ गया मि.हलाल और उनके चमचों के इरादे को वे गुलाम बनाकर नौकरी करवाना चाहते है।बेटा अल्ला मियंा की गाय नही बनना,ईमानदारी और कर्मठता के साथ देष और जनहित में नौकरी करो।
काका गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। मि.हराम तो मि.हलाल के घोर विरोधी थे,विभाग सुप्रीमों से मि.हलाल की लिखित में षिकायत भी किये थे।आखिर में मि.हराम मि.हलाल का जूता उठाने लगे और खास हो गये। मि.उत्पाती की वैसे तो कोई हैषियत नही है,बस मि.हलाल के सामने वैसे हाथ बांधे खड़े रहते है,इस इन्तजार में मि. हलाल थूके तो हाथ फैला दे।काका सच किसी ने कहा है जादू वह जो सिर चढ़कर बोले। मि.हलाल का जादू मि.हराम और मि.उत्पाती के सिर चढकर बोल रहा है। अच्छे को बुरा,ईमानदार को बेईमान,कर्मठ को कामचोर,फर्ज पर फना होने वाले को और समयबद्ध तरीके से और बिना अतिरिक्त लाभ के डयूटी से अत्यधिक काम करने वाले को वेरी लेजी अफसर का घिनौना दाग दे रहे है।इतना ही नहीं सर्विस बुक में लिख दिये है।काका सिर्फ जातीय भेदभाव की वजह से।
बेटा नगेन्द्र तुम तो जानते हो उच्च कुल से हूं उंचे ओहदे से रिटायर हूं पर जातिवाद को हमने पूरी तरह त्याग दिया है,खुद छोटी बिरादरी की लड़की से ब्याह किया हूं,बच्चों की ब्याह भी अपने जैसे करूंगा।इससे रिष्ता अच्छा मिलेगा,दहेज के नरपिषाच से पाला नहीं पड़ेगा,और समाजिक समानता के महायज्ञ में मेरी आहुति होगी,मेरे लिये तो गर्व की बात है।
काका काष सब आप जैसे सोचने लगते तो जातिवाद के नाम पर छोटी जाति के होनहार आत्महत्या नहीं करते,ना उन्हें कम आंका जााता और ना मुझ जैसे निरापद को नौकरी छोड़ने या आत्महत्या की तरफ ढकेला जाता।
बेटा नगेन्द्र फिक्र ना कर बस फर्ज पर खरा उतरते रहो,बुरा मत सोचो बुरा मत करो, तुम जैसे निरापद के साथ बुरा करने वालों चाहे मि.हलाल हो,मि.हराम हो या मि.उत्पाती ऐसे लोगों का सर्वनाष निष्चित होता है। सच परेषान हो सकता है पराजित नही ।बेटा तुम्हारे सिर पर ज्ञान की देवी का हाथ है। तुम्हारी दुष्मनी तो अंधेरोे से है,दीया की तरह अंधेरे के खिलाफ जलते रहो।
हां काका फर्ज पर ही फना हो रहा हूं चाहे लहू के प्यासे मुर्दाखोर भले वेरी लेजी अफसर लिखते और कहते रहे।
तुम जैसे प्रतिभावान को वेरी लेजी कहने वाले एक दिन माफी मांगेगे। बेटा धीरज रखो,ऐसे मुर्दाखोरों का जब नाष होने को होते है ना तब प्रतिभावान,सच्चे,ईमानदार,कर्मठ लोगों पर हमला बोलते है जैसे फतींगे की मौत आती है तो वह दीपक को छूता है। बेटा तुम अंधेरे के खिलाफ उजाले की ललकार करते रहो कहते हुए घुरहू काका उठे और खंखारते हुए अपने आाषियाने की ओर बढ़ चले।

 

 

डां.नन्दलाल भारती

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ