विदेश की नौकरी का परित्याग/नन्दलाल भारती
बेटा क्या सुन रहा हूं,
विदेश की नौकरी छोड़ रहे हो,
क्यों और किसलिए
मैंने औकात से ज्यादा सोच
सोच ही नहीं बैंक का लोन भी ले लिया
ना बेटा ना, ऐसा ना कर
बेटा अपने भावी परिवार के बारे में,
सोच कर तो देखो,
विदेश की नौकरी के लिए युवक तरस रहे हैं
दिन रात एक कर रहे हैं
बेटा तुमने भी तो किया है, क्यों भूल रहे हो
बेटा ऐसा कर दिये तो क्या होगा ?
तुम हम दो बूंढो के लिए ना कर
ना ऐसा तनिक भी न सोच
हम जहां से चले थे,
वहीं पहुंच जायेंगे
ना बेटा ना,
विदेश की नौकरी ना कर परित्याग
बेटा हंसी खुशी बोला
मां-बाप धरती के अपने भगवान,
कैसे मुंह मोड़ लूं, मां-बाप को कैसे छोड़ दूं
मां बाप को रिरकने के लिए
ना ये तो नहीं कर पाऊंगा
मैं मां-बाप की छांव से ना दूर पाऊंगा
अब और ना विदेश जाऊंगा
विदेश की नौकरी का,
कर दिया हूं बाबूजी, अब मैं परित्याग
मैं अपनी जमीं अपने देश में,
धंधा -व्यवसाय करूंगा,
औरों को रोजगार दूंगा
इन्तजाम हो चुका है बाबूजी
घबराओ ना बाबू जी, खुशी मनाओ बाबूजी
होगा दफ्तर अपना, अपने कर्मचारी
आपकी दुआओं से जीत होगी हमारी
बाबूजी अब तो मुस्करा दो
गले लगा लो
बेटा मां-बाप की चरणों में था
हो चुका था विजयी भव: का उदघोष
गंगाजल बूढ़े मां-बाप की पलकों पर था
हाथ बेटा के सिर पर था।
बेटा के सिर पर था........
नन्दलाल भारती
20/04/2024
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