Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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विधवा

 

काकी मुझे हाथ जोड़कर नमस्कार करता देख-देखकर खुद अब हाथ जोडकर हर किसी से नमस्ते करने लगी थी । कई लोग कहते उर्मिला काकी कुछ सीखी या नहीं पर देवबाबू जैसे हाथ जोड़कर नमस्ते करना तो सीख गयी। उर्मिला काकी साहब भारतीय परम्परा से नमस्कार करते है,सबकी आवभगत करते है,वे तो साहब है, हम तो मामूली सी दफतर में काम वाली बाई है। साहब के इसी संस्कार ने उन्हें सबका चहेता बना दिया है।साहब कितने सभ्य और सज्जन है,जब भी बोलते है उर्मिलाजी कह कर बोलते है,बाबू अच्छे आदमी है,उनके आचरण है,हर किसी की मदद के लिये तैयार रहते है। साहब की मदद के लिये कोई आगे नही आता। पिता खटिया पर पड़े हैं मैडम बीमार है,इस षहर की आहो हवा उनके स्वास्थ्य के लिये नुकषानदायक है,मैडम दूसरे षहर में पड़ी है साहब बेचारे तीसरे षहर में। साहब की अर्जी पर कोई सुनवाई नही हो रही है।
देवबाबू कोई बड़े अफसर थोडे ही है उर्मिलाबाई परिचर बोला।
भले ही तुम परिचर हो पर अपने लिये तो तुम भी अफसर नरायन। देवबाबू तो अफसर है,इतना तो मैं भी समझती हूं, उपर तक पहंुच होती तो बडे अफसर होते और तो औा कब का ट्रान्स्फर हो गया होता। ये नये साहब बहुत पढे लिखे है,सबका दर्द समझे है,तुम्हारे साथ बैठते है कभी किसी बाबू ने तुमको अपने पास बैठाया था। मुझसे भी कभी किसी साहब ने मेरी खैरियत नही पूछी थी पर ए साहब मुझसे भी हाथ जोड़कर नमस्कार करते है। साहब नसीब के कंगाल है हमारे जैसे साहब के भी बलराम है।
इसका क्या मतलब हुआ उर्मिला बाई नरायन पूछ बैठा।
कितना बुद्धू है नरायन इतनी सी बात नही समझा। निर्बल व्यक्ति कसाई के खूटे पर पर बंधा षिकार जैसा होता है। उसे हर ओर से जख्म और दर्द मिलता है। निर्बल व्यक्ति जीवन को अश्रु से सींचे रखता है। उसकी सांसे कल पर टिकी होती है। उसकी उम्मीदे भगवान भरोसे ्िरजन्दा रहती है। यकीनन इसीलिये कहा जाता है निर्बल के भगवान जिसका कोई नही उसका भगवान। नये साहब की मदद भगवान जरूर करेगे। वैसे नये साहब का नाम तो बहुत है पर ओहदा बहुत छोटा है।
नरायन बोला तुम देवसाहब के बारे में इतना सब कुछ कैसे जान गये।
बउरहा अच्छे लोगों की चर्चा हर जगह होती है। देवसाहब अत्यधिक पढे लिखे है सुना है दफतर के बाहर साहब का बहुत नाम है।साीब के दिल में सबके लिये दया करूणा भाव होता है। ऐसा आदमी जीवन में सफल होता है,साहब भी अपने मकसद में जरूर सफल होगे। लो देव साहब आ गये।
नमस्कार उर्मिलाबाई,नरायन भाई देवसाहब बोले।
उर्मिलाबाई हाथ जोड़ ली।
देवसाहब बोले उर्मिला बाई मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहता हूं।
उर्मिला बोली क्या करोगे जानकर साब, गरीबी तेरे तीन नाम झूठा पाजी बेइमान।
उर्मिलाबाई तुम हमारे लिये अधिक सम्मानित हो, मेहनत करती हो,इज्ज्त की रोटी खाती है। अपमानति तो वे होते है जो भ्रश्ट्राचार की रोटी खाते है। मैं तुम्हारे जज्बे को सलाम करता हूं देवबाबू बोले।
साहब क्या बताउ उसके आंखों से आंसू छलक पड़े।
आसूं ना बहाओ उर्मिलाबाई। तूझे रूलाने के लिये मैने नही पूछा है। देवबाबू बोले।
मैं रो नही रही हूं साहब ये मेरे खुषी के आंसू है किसी साहब ने मुझ अभागिन हाल जानना चाहा है पूछो साहब क्या पूछना चाहते हो।
कितने बच्चे है और क्या करते है।
साहब बच्चे नही है उर्मिला बोली।
षादी नही की।
गरीब मां बाप की बेटी थी । षादी भी गरीब परिवार में हुई थी। षादी के तुरन्त बाद मैं भी जोखन के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने लगी। तनिक कमाई बढी पर क्या जोखन का हाल हो गया छुद्र नदी भरि चली इतराई। षराब और कबाब में रूपये लूटाने लगा। कामधाम सब छोड़कर मेरी कमाई पर ऐष करता,मेरे तन के जोड़ जोड़ दारू के नषे में तोड़ डालता,जरा भी आनाकानी की तो पिटाई पर उतर आता,लहूलुहान कर देता। मेरा जीवन नरक हो गया था साहब। दिहाड़ी मजदूरन की क्या कमाई, भगवान विभाग का भला करे संविदा पर नौकरी चल रही है। तनख्वाह भी प्राइवेट कम्पनी से ज्यादा यहां मिलती है पेटपर्दा बहुत बढिया से चल रहा है अभी बाद कि तो वही निर्बल के बलराम है।
बहन अभी तुम्हारे पति क्या करते है,उनसे मुझे मिला सकती हो।
साहब मुझे बहन बोल रहे हो । जानते हो मैं आपके दफतर में झाडू पोंछा का काम करती हूं।
हां उर्मिला बहन। तुम हमारी उम्र की हो,काम कोई छोटा बड़ा नही होता। तुम तो बहुत बड़ा काम कर रही हो,तुम दूसरों की गंन्दगी साफ करती है। बहुत नेक काम है। गन्दगी से ही तो हैजा,प्लेग,और ना जाने कितनी जान लेवा बीमारिया होता है।तुम दफतर को साफ और लोगो को स्वस्थ बना रही हो। फिलहाल तुम्हारे पतिदेव जोखनजी से मुझे मिलना है।
वे दुनिया में नही रहे।
हे भगवान,क्या हो गया था जोखन।
दारू बीडी सिगरेट की लत ने तपेदिक रोग उपहार में दे दिया। पहले भी काम धंधा कुछ नही करता था । अब तो दिन भर खटिया पर लेटे-लेटे खांसता रहता। इसी बीच लकवा ने धर दबोचा साल भर के लम्बे इलाज के बाद चल बसे तब मै सिर्फ पच्चीस साल की थी। ब्याह तो पन्द्रह साल की उम्र में हो गया था।जोखन मां-बाप का इकलौता बेटा था। मैं एकदम कंगाल हो गयी। अकेले घर में विलाप करती रहती,आसपास पड़ोस वाले कब तक देखते,उनका भी अपना परिवार था। जोखन के मां-बा पके हाथों बना कच्ची बस्ती में दो कमरे का घर था, बस यही घर जमा पूंजी था। कुछ बदमाष किस्म के लोग घर बेंचने के जोर देने लगे। मैं मकान कैसे बेच सकती थी,मेरे जीने का तो बस घर ही सहारा था। जब जब पांव भारी हुआ जोखन जर्बदस्ती सफईया करवा देता था। कई गिद्ध निगाहें मेरे उपर टिकने लगी थी। पच्चीस साल की कोई उम्र कोई अधिक तो थी नहीं। कई गिद्ध तरह के बदमाष अपनी हवष का षिकार बनाने की फिराक में लगे थे। काम पर आती तो साथ साथ आते। विक्की जोखन के साथ कभी कभी जाम टकराता था वह तो षादी करने को तैयार था। साहब जोखन के पषुता के व्यवहार से ऐसी डरी कि फिर षादी करने की हिम्मतनही हुई अकेली विधवा का जीवन रास आने लगा । गिद्धों से बचाव के कमर में कटार बांध कर रखती थी। फूलनदेवी की तरह मैंने भी प्रतिज्ञा कर लिया जिस दिन किसी मनचले ने मेरे साथ कुकर्म करने की कोषिष पहले उसकी छाती में कटार भोंक मार डालूंगी फिर खुद कटार अपनी छाती में उतार लगंी।
देवबाबू-उर्मिला तुम्हारी कहानी तो बहुत दुखभरी है।
उर्मिला-साहब जो बीता है मेरे साथ किसी लड़ं़की के साथ ऐसा न हो। अगर मैं कमजोर पड़ गयी होती तो कोई ठग मुझे कोठेवाली को बेंच देता या कोई बदमाष मेरे साथ ऐसा कुछ कर देता कि जीते जी मर जाती ।एक दिन तो ऐसा आया कि गली के गुण्डे मुझसे खौफ खाने लगे थे। उचके किस्म के कहते देखो अपनी बस्ती की फूलनदेवी जा रही है।
देवबाबू- तुम तो तो उन लोगों के प्रेरणास्रोत हो छोटी -छोटी मुसीबतो से घबराकर आत्महत्या कर लेते है।
उर्मिला-मेरे मन भी यह विचार आया था पर त्याग दिया था । इतना ही नही हमने खुद से यह वादा किया कि विधवा और तलाकषुदा औरतों की मदद करूंगी, इन्ही ऐसी औरता को इक्टठा नषाखोरी के खिलाफ धरना प्रदर्षन करूंगी,वही किया। साहब मैं क्षत्री कुल से हूं पर डां.अम्बेडकर को भगवान मानती हूं। उनके द्वारा संविधान में दिये गये महिला अधिकार की वजह से मैं अपना पैर जमा पाई। दूसरी मेरी आदर्ष है,फूलनदेवी । साहब फूलनदेवी दे अपने साथ हुए बलात्कार के बदले के लिये हथियार उठायी थी। मैंने मेरे साथ ऐसा कुछ ना हो इसके लिये कमर में कटार बांध लिया था। हरामी किस्म के लोगों की बोलती बन्द कर दी थी ।
देवाबाबू-तुमको सलांम उर्मिला बहन। तुमने अपने जीवन की विपत्तियों से घबराने की बजाय डंटकर मुकाबला किया। युवा पीढी के लिये तुम्हारा जीवन नसीहत है।
उर्मिला-मक्कार किस्म के लोगों से डरो तो जीवन नरक बना देते है। मुकाबला के लिये तैयार हो जाओ तो दुम दबाकर भाग जाते है। मेरी कमर में बंधी कटार में रात रंगीन करने वाले की ख्वाहिष रखने वालो को खुद की मौत दिखने लगी थी तब जाकर वे हरामप गली के गुण्डे मेरा पीछा करना छोडे थे। साहब पति के नहीं के बाद जवान औरत के लिये जीना बहुत मुष्किल होता है,मेरा नाक नक्ष तोबहुुत अच्छा था,मेरी राह में कई मनचले फूल बिछा देते थे। जबसे मैंने फूलनदेवी को आदर्ष माना गिद्ध निगाहेां में हया आने लगी। सती होनेे, नदी में कूदने,जहर खाकर मरने जैसे विचार दूर भाग गये। मैं फूलनदेवी की वजह से पूरी मर्यादा के साथ विधवा जीवन यापन कर रही हूं। मेरे दामन में कोई दाग नही लगा। महिला अधिकार के लिये मुखौटाधरियों से लड़ी,नषा के व्यापार के विरूद्ध लड़ी,भू्रण हत्या के खिलाफ लड़ी। बाल विवाह के खिलाफ लड़ी। एक अनाथ लड़का एक लड़की गोद लेकर उनकी पढा लिखा रही हूं। करने की तो बहुत इच्छा है पर नही होता, अब दोनो बच्चों का जीवन सफल बनाना अपने षेश जीवन की मकसद रह गया है साहब।
देवबाबू- उर्मिला बहन तुमने गरीब निराश्रित होकर इतना कुछ किया,तुम्हें हिम्मत कहां से मिली।
उर्मिला-साहब बतायी तो थी अत्याचार के खिलाफ खड़ा होने की हिम्म्त फूलनदेवी से और अधिकार की बात देष के संविधान से जिसके रचयिता डांक्टर अम्बेडकर है। एक बात बोलूं साहब विधवा जीवन है तो नारकीय।
देवबाबू सच उर्मिला बहन विधवा जीवन है तो तपती रेत पर चलने जैसे जहां पल -पल परीक्षा देना पड़ता है,छांव की तनिक गुंजाईष नहीं होती है,खासकर तुम्हारे जैसे मामले में। ऐसी भंयकर त्रासदी भरे जीवन को जीते हुए भी तुमने दूसरों के लिये सुखकारी बना दिया,तुम अलौकिक षक्ति की मालकिन हो। तुम्हारे जज्बे को सलाम उर्मिला बहन।
साहब इतना मान देने के लिये धन्यवाद । आग की दरिया को सिर पर तेजाब रखकर पार करने जैसा है -विधवा जीवन परन्तु मुकाबला करने की हिम्मत आ जाये तो पार हो जाता है विधवा जीवन भी।

 

 

 

डां.नन्दलाल भारती

 

 

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