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Dr. Srimati Tara Singh
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विहसता हुआ आसमान

 
विहसता हुआ आसमान

आंसू मे भी खुशी झलकती है

अपने दूर होते है, 
आंखें रिसती, बहुत रिसती हैं
दर्द तो उठता है दिल में
पत्थर रखना पड़ता है
हाथ दुआ में उठते हैं
दर्द के दरिया से,
खुशी की लहरें उठती हैं
कल होगा खूबसूरत
सपने में रंग भरेंगे सुनहरे
सपने ही तो हैं जो
तरक्की का आसमान दिखाते हैं
अंगुलियां थामकर चले बढे वही
अंगुलियां थामने का वादा कर
उम्र बढाते हैं
जीने की राह दिखाते हैं
दूर होकर जैसे पास होते हैं
पवन का झोंका भी
अपनो का एहसास दिलाता है
मन बहकता है
आंखें खोजती है रिसती हुई
मां आंखें गारती है
बापू आंसू छिपाता है
दिल से दिमाग से शुभाशीष
झरता है
हे परमात्मा हर जरूरतो की
आपूर्ति करना
संगठित रखना, तरक्की का
हर पथ प्रसस्त करना
जीवन के हर पल मे
दैवीय सम्वृध्दि भरना
अच्छा स्वास्थ्य, हंसी खुशी भरा जीवन
भरपूर तरक्की,
सफलता का वरदान देना
मां की तपस्या बाबू के त्याग को
स्वाभिमान देना  परमात्मा
ख्वाब और श्रम के ताने-बाने को
अमिट पहचान देना
हे परमात्मा विहसता हुआ
आसमान देना।
डां नन्द लाल भारती
27/02/2022

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