Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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विकलांग

 

विजया का एक हाथ पोलियो लील चुकी थी । उसके माता -पिता उसके भविष्य को लेकर बहुत दुखी रहते थे । विजया पढाई के मामले अव्वल थी । एक दिन उसके माँ -बाप घर आये मेहमानों से विजया के भविष्य को लेकर चिंता जाहिर कर रहे थे । इसी बीच विजया आ गयी । उसके आते ही सन्नाटा छा गया । वह सन्नाटे को चीरते हुए बोली मम्मी पापा बोलो ना मैं विकलांग हूँ तो मै अपने पाँव नहीं जमा सकती । आप लोग मुझे लेकर बिलकुल चिंता ना करे।
मम्मी उषा बोली - नहीं बिटिया ............
विजया -झूठ ।
पापा दर्शन- सच बेटी । तू तो हमारे लिए वरदान है ।
विजया -चिंता का कारण भी ।
दर्शन -विजया को छाती से लगा लिए उनकी पलकें गीली हो गयी ।
विजया बोली पापा तन से भले जमाना विकलांग कह दे पर मन से विकलांग नहीं हूँ । एक दिन साबित कर दूंगी । माँ -बाप का भरपूर सहयोग से ।
वक्त ने करवट बदला विजया डाक्टर बन गयी । वह जटिल आपरेशन भी बड़ी आसानी से कर लेती जिसे करने में दोनों हाथ वाले डाक्टरो के हाथ काँप जाते । विजया की कामयाबी को लोग देखकर कहते सच आदमी तन से भले विकलांग हो पर मन से नहीं होना चाहिए तभी तरक्की के पहाड़ चढ़ सकता है विजया की तरह .....

 

 

 

....डॉ नन्द लाल भारती

 

 

 

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