नेकी पर कहर बरस गया है ,
सगा आज बैरी हो गया है।
हक़ पर जोर
आजमाइश होने लगा है ,
लहू से खुद का ,
आज संवारने लगा है।
कभी कहता दे दो ,
नहीं तो छीन लूँगा ,
कहता कभी सपने मत देखो
वरना आँखे फोड़ दूंगा।
मय की हाला में डूबा ,
कहाँ उसको पता ,
बिन आँखों के भी
मन के तरुवर पर,
सपनों के भी पर लगते हैं।
हुआ बैरी अपना
जिसको लेकर बोया था
सपना।
धन के ढेर बौराया ,
मद चढ़ा अब माथ ,
सकुनी का यौवन ,
कंस का अभिमान हुआ साथ।
बिसर गयी नेकी ,
दौलत का भारी दम्भ ,
स्वार्थ के दाव नेकी घायल ,
छाती पर गम।
नेकी की गंगा में ना
घोलो जहर ,
ना करो रिश्ते संग हादसे ,
देवता भी तरसे ,
मानव जीवन को
मतलब बस ना करो ,
विष की खेती
डरा करो खुदा से ……।
डॉ नन्द लाल भारती
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