बिलारी के भाग से शिकहर टूट गयल-यह भोजपुरी कहावत धूरत प्रसाद जंगली पर बिल्कुल सही बैठती थी।मुर्दाखोर धूरत प्रसाद जंगली निहायत स्वार्थी किस्म का आदमी था। धूरत प्रसाद जंगली के मां बाप बड़े नेक इंसान थे । धूरत प्रसाद जंगली के मां-बाप पहाड़ी जीवन को त्याग कर मैदानी इलाके के ‘ाहर में आकर बस गये वही घिसौनी कर बेटे को स्नातक तक पढाये। बेटवा की पढाई की चिन्ता में वे अपनी बुढ़ौती के लिये कुछ नही जोड़ पाये। हां स्लम इलाके में एक झुग्गी जोड़ लिये थे जो बाद में सरकारी नीतियों के कारण भवन में बदल गयी थी यही उनकी सबसे कीमती पूंजी थी। खैर सबसे बड़ी पूंजी तो वे अपने बेटे धूरत प्रसाद जंगली को मानते थे । धूरत प्रसाद जंगली अच्छे समय में स्नातक तक की शिक्षा पा लिया था,स्नातक होते ही उसे नौकरी मिल गयी। बी.काम.पास खूबसूरत बेटवा को नौकरी मिलते ही मां-बाप ने सजातीय खूब सूरत लड़की से ब्याह कर दिया। नौकरी धूरत प्रसाद जंगली के पुश्तैनी घर-आंगन में बसन्त गमक उठा पर क्या कुछ ही महीनों मेंे मां-बाप का सपना चकनाचूर हो गया। कुछ ही दिनों में वह अपने मां-बाप को बोझ समझने लगा था। मां-बाप बेटवा धूरत प्रसाद जंगली की तरक्की अपने श्रम की सार्थकता पर भगवान को मूड़ पटकऋपटक कर धन्यवाद देते नहीं थकते थे।
मां-बाप की दुआयें असरदार रही कुछ बरसों की नौकरी में उसने ऐसी तरक्की की बड़े-पढ़े लिखे फेल हो गये। धूरत प्रसाद जंगली की भूख बढ़ती जा रही थी।साम दाम दण्ड और भेद से काम निकालना इतनी चतुराई से सीख गया था कि तरक्की की रेस में बहुत आगे निकल गया। इस जंगली मामूली सी बाबूगीरी से नौकरी ‘ाुरू किया था। चम्मचागीरी के औंजार के सहारे धूरत प्रसाद जंगली जोनल मैनजर साहब का खास बन गया था । वह साहब के कुत्ते को घूमाने की जिम्मेदारी उठा लिया। साहब भी इतने निरकुंश नही थे उन्होंने इस वफादारी का बड़ा प्रतिफल दिया। मामूली टाइपिस्ट मुख्य मैनेजर बन गया।अब क्या ‘ोर के मुंह खून लग गया,उसने छोटे कर्मचारियों का दमन और बड़े अधिकारियों का जूता सिर पर लेकर चलने लगा। धूरत प्रसाद जंगली साहब लोगों को खुश करने की कला में माहिर था । रोटी-बोटी,शबाब-कबाब के साथ खोखा अथवा कार्टून तक का इन्तजाम कर देता था। धूरत प्रसाद जंगली इस करतूत ने उसे नौकरी में सफलता के झण्डे गड़वा दिये। धूरत प्रसाद जंगली छोटे कर्मचारियों के लिये खासकर नीचले तबके के कर्मचारियों को तो अपना दुश्मन समझता था।ना जाने उसे इतनी चिढ़ क्यों थी वह कहता छोटे लोगों से दूरी बनाकर रखना चाहिये,इनकी तरफ हाथ बढ़ाया तो सिर पर चढकर मूतने लगते है। रूढ़िवादी मानसिकता के लोग धूरत प्रसाद जंगली का साथ भी देते थे। धूरत प्रसाद जंगली छोटे कर्मचारियों के साफ-सुथरे अथवा नये कपड़े जूते को इतनी बारीकी से देखता जैसे थानेदार चोर को देखता है।छोटे कर्मचारी का अच्छा कपड़ा पहनना उसे पसन्द न था वह छोटे कर्मचारी को गुलाम की तरह देखता था। धूरत प्रसाद जंगली का शिकार सेवानन्द जो उच्चशिक्षित परन्तु टाइपिस्ट क्लर्क था दुर्भाग्यवश वह नीचले तबके से भी था।
सेवानन्द की तरक्की धूरत प्रसाद जंगली को तनिक ना पसन्द थी।वह सेवानन्द के भविष्य को घुन की तरह चट करने पर तुला हुआ थी। धूरत प्रसाद जंगली ने सेवानन्द की सी.आर.इतनी खराब कर दी थी उसको कम्पनी का हर अधिकारी थानेदार की निगाह से देखता था।सेवानन्द के योग्यता जातीय तराजू पर तौले जाने की परम्परा धूरत प्रसाद जंगली ने ‘ाुरू करवा दिया था।सेवानन्द की दो बार डी.पीसी हुई दोनो बार जातीय निम्नता की तुला पर सेवानन्द श्रेष्ठ साबित नहीं हो सका ।अन्तत- उसे नौकरी करना था तो टाइपिस्ट से उपर सोचना भी अपराध बन गया था।धूरत प्रसाद जंगली स्वयं और उच्च अधिकारियों से भी कहवा चुका था कि सेवानन्द अफसर बनने की तुम्हारी इच्छा इस कम्पनी में पूरी नही हो सकती है। बस एक ही तरीका है कम्पनी की नौकरी से इस्तीफा दे दो या गले में अफसर की पट्टी बांध लो।सेवानन्द अपने भविष्य के दुश्मनों कीद शिनाख्त तो कर चुका था परन्तु नौकरी छोडने के बाद नौकरी नही मिली तो परिवार के भूखों मरने और बच्चों की पढ़ाई छूटने के डर से उसका कलेजा मुंह को आ जाता था। वह इसी उधेड़-बुन में बूढ़ा हुए जा रहा था। चिन्ता की चिता ने उसे कई बीमारियों के चक्रव्यूह में उलझा दिया।सेवानन्द सेवानन्द के रफ को टाइप कर रहा था, इसी बीच एक अजनवी आ गया। सेवानन्द से बोला हेलो सेवानन्द।
सेवानन्द -आप कौन .......?
रसूख खिलवी ।
कहां से आये हो ।
इसी कम्पनी की सिस्टर कंसर्न कम्पनी में काम करता हूं।रहीस मुझे जानता है।कहां है रहीस ।
पोस्ट आफिस गया है।
आपके विष पुरूष।
कौन...........?
अरे जनाब आपके बांस डीपीजे
क्या...........?
ठीक सुने माई डियर कहां है ।
दौरे पर गये है।
हमने इनका नाम रखा था दोगला प्रसाद जंगली एक पुरूष।तनिक बड़ा नाम है ना। चलो छोटा कर देते है दोगला एक विष पुरूष। कितने साल की नौरी हो गयी जनाब । अरे बेसिक बात तो पूछा ही नहीं आपका नाम सेवानन्द ही है ना। सोचोगे कैसे जाना सब जानता हूं ।मेरा भी दफतर पास में ही है,ये बात अलग है कि मेरी पोस्टिंगदूसरे ‘ाहर में थी। महीना भर पहले ही ज्वाइन किया हुआ । सोचा चलो दोगला एक विष पुरूष के घिनौना चेहरा देख लूं। पुराना घाव ताजा कर लूं।
सेवानन्द-कैसी बात कर रहे हो रसूख खिलवी भाई।
दिल टूटने के बाद आह ही निकलती है। मैं समझता हूं जनबा आपका दिल ही नही तोड़ा होगा।भविष्य भी इस विष पुरूष कुचल दिया होगा ।जानते हैं भविष्य कुचलने का दर्द अपने आश्रितों तक को आंसू देता रहता है।
सेवानन्द-ऐसा आपके साथ कौन सा गुनाह कर दिया बांस ने ।
रसूख खिलवी-ये गोरा काला अंग्रेज है। हमारे दादाजी कहते कहते मर गये बेटा अंग्रेज आज के इन कालें अंग्रेजो से बेहतर थे।गोरो का हौशला किसने बढाया । अपने देश के दुश्मनों ने ही ना अपनी रियासत पर कब्जा और ‘ाोषितों का खून पीने के लिये। ये देश के दुश्मन इतने गिर गये कि अपनी बहन बेटियों तक को परोसने लगे थे।आज इन काले अंग्रेजो की काली करतूतें देखकर अपना खून देकर देश को आजादी दिलाने वाले अमर ‘ाहीदों की आत्मायें विलाप कर रही होगी कि क्या सोचा था क्या हो गया। कैसी आजादी है,जातिवाद,भूमिहीनता,गरीबी,अशिक्षा,नक्सवाद अब तो भ्रष्ट्राचार का ऐसा राक्षसी दौर चल पड़ा है कि आमआदमी के जीवन तबाह होने लगा है और देश बदनाम ।क्या ये सब देखकर लगता है कि हम आजाद देश में रहते है ?इतने में रहीस अन्दर आते हुए बोला सच भाई हम आजाद देश के गुलाम हो गये है।
रसूख खिलवी-दोगला विष पुरूष साइलेण्ट किलर है।
रहीस-कहां की दुश्मनी लाकर हमारे बांस के उपर पटक दिये।
रसूख खिलवी-आज मैं भी फुर्सत में हूं । आया तो था विष पुरूष को अपना चेहरा दिखाने ताकि उसका घिनौनी कार्यवाही जीवित हो उठे उसके मन में और मेरा घाव ताजा।
रहीस-किस घाव की बात कर रहे हो रसूख खिलवी।
रसूख खिलवी-इस विष पुरूष ने पांच साल पीछे कर दिया।
सेवानन्द-कैसे .......।
रसूख खिलवी- जिस सिस्टर कम्पनी में काम कर रहा हूं। उसी कम्पनी में ये विष पुरूष जोनल मैंनेजर के पी.ए. हुआ करते थे। देखो एक विष पुरूष कुत्ता को बिस्किट खिला कर बड़ा साहब बन बैठा है जबकि इससे उच्च डिग्रीधारी इस कम्पनी में चपरासी तक है।
रहीस-दूर कहां जा रहे हो आपके सामने ही बैठे है सेवानन्द।एजुकेशन के मामले में हमारे साहब तो सेवानन्द के सामने बच्चा है पर तरक्की देखो आसमान छू रहे हैं।बेचारे सेवानन्द की सारी डिग्रियां इस विभाग में बेकार हो गयी है।
सेवानन्द-हम तो गांव के ठहरे सीधे-साधे,साफ-सुथरा ईमानदारी-वफादारी से काम करने वाले दोगली नीति का हमसे तो कोसों तक कोई रिश्ता नही रहा है।चम्मचागीरी साहब लोगों का जूता सिर पर कैसे लेकर चल सकता था।
रहीस-झूठ बोल रहे हो सेवानन्द।
कैसे मैं झूठा हो गया रहीस........ सेवानन्द बोला ।
रहीस-तुम्हारी बस्ती के कुएं का पानी जातीय श्रेष्ठ लोगों के लिये अपवित्र है तो वे उच्च जातीय लोग तुम्हारे हाथ का पानी कैसे पी सकते है।सेवा-सत्कार तो उन्हीं का स्वीकार्य होता है जो इसके योग्य होते है।आप तो जातीय अयोग्य हो। ये बात अलग है कि मैं आपको चाय-पानी पिला देता हूं। उसी कप-गिलास में जिस में ये उच्च जातीय कर्मचारी-अफसर पीते है।
रसूख खिलवी-क्या शिड्यल्ड कास्ट के हो ?
रहीस-तभी तो ये हाल है। आपके एक्स बांस ने ही नही जितने अफसर आये सब जातीय दुश्मन निकाल गये है। विष पुरूष निकाल रहे है।
रसूख खिलवी-चचाजान वो कैसे?
रहीस-सीआर खराब कर दी गयी है। प्रमोशन के सारे रास्ते बन्द कर दिये गये है। बस इतना है कि नौकरी से नही निकाले जा सके है। खैर इसके भी बहुत प्रयास हो चुके है।
रसूख खिलवी-मतलब सेवानन्द अपनी काबिलियत की वजह से टिके हुए है वरना ये मुर्दाखोर किस्म के लोग हजम कर गये होते।
रहीस-खिलवी भाई सही कह रहे हो। आपके विष पुरूष तो अपने मां-बा पके नही हुए अछूत के बेटा का क्या हांेगे।मेरा तो डायरेक्टर साहब की वजह से कोई अफसर कुछ नही बिगाड़ सका।
खिलवी-कौन डायरेक्टर साहब ?
रहीस-तुम्हारी सिस्टर कन्सर्न कम्पनी में एरिया मैनेजर थे ना डां.विषम प्रताप साहब।
खिलवी-अच्छा वो ‘ाराब,कबाब और ‘ाबाब के ‘ाौकीन।उनमें तो जमींदारी का भाव भी कूट-कूट कर भरा था।नीची जाति वालों को तो गुलाम समझते थे। अब ना जाने कोई उनमें सुधार हुआ कि नहीं।वे भी विष पुरूष ही थे।
रहीस-रहीस मरे नही है।अभी जिन्दा है,दौरे पर गये है।रही बात विष पुरूष की तो अपने विभाग में एक से बढ़कर एक विष पुरूष है। खिलवी के साथ डीपीजे साहब ने नाइंसाफी की तो वे इनके लिये विष पुरूष है।अब हमारे सेवानन्द के लिये तो विभाग में दीया लेकर खोजने पर भी कोई आदमी हितैषी नही मिलेगा। सभी अफसर विष पुरूष साबित हुए है। ये बात सभी जानते है। सभी अफसर मंदिर के घण्टा की तरह सेवानन्द को बजाये ही है। कराह निकलने की सजा भी इस उच्चशिक्षित अछूत के बेटे को मिली है।परन्तु टाइपिस्ट से साहब बने डीपीजे साहब से ऐसी उम्मीद नही थी।
खिलवी-ऐसी क्या खासियत सेवानन्द में है।
रहीस-डीपीजे साहब भी टाइपिस्ट थे और सेवानन्द भी परन्तु इस विष पुरूष ने ज्यादा घाव दिया है।
खिलवी-डीपीजे विष पुरूष अपने मां -बा पके नही हुए हैं तो ये सेवानन्द किस खेत की मूली है।
रहीस-मां-बाप कैसे नही हुए।
खिलवी-तुम तो चचाजान ऐसे पूछ रहे हो जैसे तुमको कोई खबर ही नही हो।
रहीस-वाकई खिलवी।
खिलवी-दाई से पेट छिपाने से नही छिपता। तुम सब जानते हो। क्या तुमको पता नही है। विष पुरूष की काली करतूतें। मां-बाप को बेघर कर दिये। उनके जीते जी उनका बनाया घर बेंच दिये। मां-बाप खून के आंसू बहाते रहे। ये विष पुरूष अपने पास में भी उन्हें रखने में ‘ारमाते थे,उनके आते ही दूसरे रिश्तेदारों के यहां भेजने की बन्दोबस्त में लग जाता था। चार-चार महलनुमा का मालिक है पर मां-बाप को रहने का ठिकाना नही था। मेमसाहब को बूढ़े सास-ससुर की सूरत तक पसन्द नही थी।
रहीस-सच खिलवी तुम तो बहुत जानते हो साहब के बारे में।
खिलवी-अरे अभी तो बहुत कुछ जानता हूं। ये आदमी सचमुच का विष पुरूष दो परिवारों की इज्जत तक को नीलाम कर चुका है,तरक्की के लिये।जितनी सुरत से अच्छे है उतने की दिल के काले है येे जनाब जो विष पुरूष।इनकी वजह से साल भर जूनियर हो गया इतना ही नही प्रमोशन में पांच साल पिछड़ गया। ना जाने मुझसे इस विष पुरूष को कौन सी दुश्मनी थी कि मेरा एप्वाइण्टमेण्ट लेटर दबाकर रख दिया था।इस विष पुरूष का दिया घाव हमेशा हरा रहता है।घाव को और हरा करने के लिये आया था पर विष पुरूष से मुलाकात नही हुई।मिलता तो ऐसा बोलता जैसे सगा हो। कहता और क्या हाल है भाई। ये ऐसा जहरीला इंसान है काट ले तो अगली पीढ़ी तक जहर पहुंच जाये भोपाल गैस त्रासदी जैसे।?
रहीस-यार हद कर दी तुमने भोपाल गैसे त्रासदी की तुलना विषपुरूष डीपीजे साहब से कर दिये।
खिलवी-मेरा लूटा हुआ भविष्य वापस आ सकता है। तुम ही बता रहे थे सेवानन्द के भविष्य को कब्रस्तान बनाने में विष पुरूष का हाथ है। क्या इस उच्च शिक्षित आदमी को लूटा हुआ भाग्य वापस आ सकता है,चार छ- साल में टाइपिस्ट के पद पर रिटायर हो जायेगा।इसका भविष्य क्यों तबाह किया गया क्योंकि छोटी कौम का बन्दा है।मैं तो सामान्य था पर गैरधर्मी ये मेरा कसूर तो नही, तो क्या ये तुम्हारे डीपीजे हमारे लिये विष पुरूष नहीं।
सेवानन्द-क्यों नहीं। ऐसे ही विष पुरूषों की वजह से आम-आदमी ,शोषित वंचित कमेरी दुनिया और हाशिये के लोग पिछड़ेपन के दलदल में ढ़कले जा रहे है। जातिवाद नफरत का जहरीला वातावरण निर्मित कर रहे है जो सभ्य समाज के लिये उचित तो नही कहा जा सकता । इन विष पुरूष और ऐसे लोग का ही “ाणयन्त्र ही कि वे तरक्की के शिखर पर चढते जा रहे है हाशिये के लोग भय-भूख भेद के शिकार है।
रहीस-यही देखो अपने विभाग में सेवानन्द के खिलाफ क्या-क्या नहीं किया है,प्रमोशन के रास्ते बन्द कर दिये गये,लाभ के सारे रास्ते बन्द कर दिये गये।मई से तो स्थानीय भत्ता और दौरा कार्यक्रम भी बन्द करवा दिया गया है जबकि दूसरे विष पुरूषों की राह पर चलने वालों को बिना किये दस-दस हजार रूपये से ज्यादा अतिरिक्त लाभ दिया जा रहा है।सेवानन्द के तनख्वाह के अलावा सारे फायदे के रास्ते बन्द करवा दिये है विष पुरूषों ने।इतने में सेवानन्द के चलितवार्ता की घण्टी बज गयी।
खिलवी-सेवानन्द बात कर लो हो सकता है डीपीजे का ही फोन न हो।
सेवानन्द-नया नम्बर है।
रहीस-बात तो कर लो ।
खिलवी-कौन था ?
सेवानन्द-कुलपति।
खिलवी-कुलपति मतलब यूनिवर्सिटी से।
सेवानन्द-जी ।
रहीस-देखो क्या बिडम्बना है विभाग में अछूत माने जाने वाले आदमी को कुलपति फोन कर रहे हैं। चहुओर से मान-सम्मान मिल रहा है और विभाग में दण्ड। ये कैसी है विष पुरूषों की सेवानन्द के भविष्य में मुट्ठी भर आग भरने वाली और आदमियत विरोधी नीति? बढते जा वफादारी और नेककर्म की राह मेरे यार।
खिलवी-तुम्हारे सद्कर्म को सलाम,सेवानन्द। काल के गाल पर होगा तेरा नाम,तुम्हारे भविष्य में आग भरने वाले मुर्दाखोर होगें बदनाम....... श्रमेव जयते।
। डां.नन्दलाल भारती
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