Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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विश्वास

 
विश्वास और पर क्यों ? और कब तक
धिक्कार देगें एक दिन
मतलब की अराधना होती हैं
पाद पूजा भी हो जाती है
परायी दुनिया में मतलब बस.....
ना कोई अपना है ना बेगाना
अपने भी नस्तर उतार देते हैं
स्वांग रच रहे अपने नंगे हो जाते हैं
पांव फंसते ही किसी अड़चन में
यकीन कर तो खुद पर या
वक्त पर बस....................
अपनेपन की गठरी में कई खड़े हैं
खंजर लिए कतार में
मकसद पूरा होते ही कह देगें अलविदा
गुर्दा अच्छी तरह छिलकर
रहा कर चौकन्ना कर विश्वास
खुद के आंख ठेहुना पर बस.......
नहीं होते दीदार उन औलादों के
जिनके लिए तुम सबसे बेहतर थे
वही तुम्हें ठहराते हैं  गुनाहगार
पीट जाती है ढोल उनकी जहां मेंं
तुम्हारा त्याग याद नहीं रहता
तबाह हो जाती है तुम्हारी दुनिया.....
सम्भलने का वक्त मिल जाये तो
सम्भल जाना भलेमानुस
कर लेना तैयारी  मरने तक की ऐसी
दिखा देना मतलबी दुनिया को
ताकि दुनिया बनना चाहे तुम जैसी ।
डां नन्द लाल भारती
24/07/2020


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