ये मृत्युलोक है प्यारे ,
माटी के ये पुतले ,
अमर नहीं हमारे।
हमसे पीछे बिछुड़े ,
हम भी बिछुड़ जायेंगे ,
एक दिन सब ,
पञ्च-तत्व में खो जायेगे।
यादे ना बिसर पाएगी,
अच्छी या बुरी ,
यही रह जायेगी।
बिछुड़ने का गम खाया करेगा ,
दिल मौके-बेमौके रुलाया करेगा।
जो यहाँ आये बिछुड़ते गए ,
सगे या पराये छोड़ गए यादे।
यहाँ कोइ नहीं रहा है अमर
आदमियत ना कभी मरी
ना पाएगी मर।
रहेगा ना अमर ,
औरो की काम आये
छोड़ना है जहां ,
नाम अमर कर जाए।
जीया जो दीन शोषितों के लिए ,
नए नर से नारायण ,
हो जाएगा
मर कर भी अमर हो जायेगा।
डॉ नन्द लाल भारती
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