Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

यार जिन्दगी बेमुरव्वती की भेंट

 

यार जिन्दगी बेमुरव्वती की भेंट चढ़ रही है
बहुरुपिये मुखौटे चढाकर आते हैं
छाती पर सुलगता भार छोड़ जाते हैं
आंखों मे धूल झोकना उन्हें आता हैं
कायनात अपनी घायल तड़प रही है
जिन्दगी बेमुरव्वती की भेंट चढ रही है......
रिश्ते लहूलुहान,आदमियत कराह रही है
खून के रिश्ते भी बेमुरव्वती की चपेट मे
पुत्र मां के बलिदान पर सवाल कर रहे
बाप को सौतेला ससुर को सगा मान रहे
सास ससुर के सपनों मे बहू आग झोंक रही
जिन्दगी बेमुरव्वती की भेंट चढ रही......
मां की ममता पिता के त्याग तडप रहे
सास-ससुर के त्याग के बखान हो रहे
हाफमाइण्ड-हाफब्लाइण्ड बहू के तेवर तीखे हो रहे
साजिश के शिकार बूढ़े आसरा तलाश रहे
बेटा की कमाई से ससुराल की जहां सज रही
क्या कहे यार जिन्दगी बेमुरव्वती की भेंट चढ रही....
हार नहीं बूढी हड्डियां जवां दास्तान गढ़ रही
बेमुरव्वती के दौर मे जीने लायक बन रहे
भूला दिया जो त्याग को शिकायत कैसी
बूढी हड्डियों को सम्भलने लायक बना रहे
वृध्दाश्रमों की तादात बहूओं के बेमुरव्वत की
कहानी कह रही....
हौसले की उड़ान पर बूढी उम्र गुजर रही
अफसोस, जिन्दगी बेमुरव्वती की भेंट चढ़ रही .....
डां नन्द लाल भारती
30/01/2020

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ