कविता : ये अंगूलियां
जानता हूँ अंगूली पकड़ने का मतलब
अंगूली पकड़ कर ही तो चलना सीखा
ये अंगूलियां मेरी मां की थी
बाप की थी घठेदार
त्याग की कभी ना खत्म होने वाली
दादा की छत्रछाया अपने हिस्से
नहीं थी आयी
दादी-नानाजी-नानी जी की
अंगूलियां पकड़ना आया था
अपने भी हिस्से
और उनके अमृतमयी
आशीर्वाद भी
आज वही आशीर्वाद तो
दिखा रहे हैं रास्ता
मां-बाप श्रम और त्याग
गढ़ता जा रहा है निरन्तर
मखमली रास्ता
सच दादा-दादी और मां-बाप की
अंगूलियों का एहसास
आसमान छूने को ललकारता है
इन पवित्र अंगूलियों का उपकार
कौन उतार पाता है ?
डां नन्द लाल भारती
27/02/2021
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