ये लड़कियां
चाहे पराने जमाने की
रही हों आज के जमाने
लड़कियां तब भी अच्छी थी
आज भी अच्छी लगती हैं।
वाकई बहुत अच्छी
वे लड़ती हैं जब-जब
अत्याचार के खिलाफ
शोषण-दोहन के खिलाफ
गैर बराबरी के खिलाफ
उठाती है ये लड़कियां
सच ये लड़कियां
इस आधुनिक जहां
कि लक्ष्मीबाई लगती हैं
ऐसी लड़कियां बहुत अच्छी लगती हैं ।
ये लड़कियां शिक्षा की मशाल बनती
अशिक्षा को दूर,
भगाने के लिए लड़ती हैं ।
मन की बात कहूं तो
फातिमा, सावित्रीबाई फूले लगती हैं
ये लड़कियां सुरक्षा मे
हथियार उठा लेती हैं जब
फूलनदेवी लगने लगती है ।
असमानता के खिलाफ
गूजती है दहाड़ इनकी
तब ये लड़कियां
डां अम्बेडकर,नेल्सन मंडेला
जैसी लगती हैं ।
कुछ लड़कियां तब भी रही होगी
कलंक जैसी आज भी हैं
सास-ससुर से
छुटकारा पाने के लिए पति का
शोषण करती हैं,
देवर,ननद सगे सम्बन्धियों को
दुश्मन समझती हैं ।
परिवार को तोड़ने लगती हैं
मर्यादा को ताख पर रखने लगती हैं
ऐसी लड़कियां तब डायन थी
वैसी लड़कियां आज भी
डराती धमकाती डायन लगती है।
कुसंस्कारों का त्याग कर जब
गृहस्थी जीवन को उत्सव
पति का सम्मान करती हैं
सास-ससुर को मां-बाप
समझने लगती हैं
तब वहीं लड़कियां दयावन्ती
लगने लगती हैं
सच ये लड़कियां
मां,बहन,बेटी, बहू केरुप मे
अच्छी लगती हैं
मर्यादा की जहाज पर
आसमान छूती लड़कियां अच्छी लगती हैं ।
आसमान छूने की ललक लिए
दिन रात जब-जब एक करती हैं
ये लड़कियां अच्छी लगती
होशले की उड़ान को,
जहां सलाम करती है
समता-ममता, दया की प्रतिमूर्ति
जीवन हैं लड़कियां
जीवन देने वाली लड़कियां
हमेशा अच्छी लगती हैं।
डां नन्द लाल भारती
25/01/2022
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