Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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युग निर्माता

 

संविधान में रमे हमारे दिल में
असली आज़ादी के
ख्वाब बसते है
हम अपनी माटी के दीवाने
संविधान को
भाग्य विधाता कहते है
पल्हना हो या इंदौर या
महानगरो के बिग बाज़ार
हम तो गाँव की
खुशिया ढूढते है
खेत की सोंधी माटी से
उठे हवा के झोंके
हमें तो चन्दन की
खूशबू लगते है
पर वाह रे अपनी जहां
यहाँ जाति -धर्म के सौदागर
लोकतंत्र के युग में भी
इंसानी फ़िज़ा दूषित करते है
गाव के जीवन में बसा भेदभाव
शोषितो की कराह गूंजती है
भूमिहीन शोषितो के श्रम से
खेतो में जीवन ज्योति
उपजती है
लोकतंत्र के युग में भी
शोषित मज़दूर तंगहाल
गरीबी के ओढ़ना -बिछौना में
मरते -जीते हैं
आएंगे अच्छे दिन अपने भी
ख्वाब में जीते है
काश हो जाते सपने पूरे
लोकतंत्र के युग में
असली आज़ादी की
जय जयकार वे भी करते
भारतीय संविधान को जो
भाग्य विधाता युग निर्माता कहते हैं …………।

 

 

 


डॉ नन्द लाल भारती

 

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