Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कामयाब

 
कविता : कामयाब
प्रकृति जब तुम्हें झुकाना चाहती है
यकीन मानो
कुछ खास बनाना चाहती है।
देने से पहले तुम्हें
खूब तरासना चाहती है
लेकर अग्नि परीक्षा 
तैयार करना चाहती है
तुम्हारी मुरादों को यकीन मे
बदलना चाहती है
हार को तुम्हारी
जीत मे बदलना चाहती है
तुम अपनी जिद पर डंटे रहो
करते रहो कोशिश बार-बार
मत मानो हार
प्रकृति की प्रवृत्ति  ही ऐसी है
कामयाबी, यश-सोहरत और
सफलता के सिंहासन पर
बिठाने से पहले
तपाना चाहती है
तुम्हें बनाना चाहती है
सोना या हीरा
गिरे हो तो उठो,और दौड़ पड़ो
मुराद की ओर
प्रकृति तुम्हें कामयाब
बनाना चाहती है ।
डां नन्द लाल भारती
17/02/2021

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