माँ कहती थी
अरमानों की चिता
नहीं बुझती
माँ मेरी कहती थी
मैं भी अम्ल करता हूँ
माँ बाप के कहने पर
चूल्हे की उठती
लौ जीवन के अरमानों को
सीचती है
भले आग जलाने का
काम करती है
मेरी माँ कहती थी
आशा की किरनें
चमकती है
आज नहीं तो कल
वट बृक्ष बनती हैं
अरमानों की दुनियां
कितनी सुन्दर है
धूप में छांव
अंधियारे मे भी
उजियारा ढूंढ लेती है
जर्जर नैय्या किनारे
लगा देती है
माँ मेरी कहती थी
मत हार मान
भले ही भयंकर हो बवण्डर
सांस थाम कर सोच विचार
चल अरमानों की राह
पूरी होगी चाह
माँ की चिता तो जल गई
पिता की भी
मां के अरमानों की बस्ती
आज भी हरी है
हौशले रख अरमानों में जी
बना लो ओढना बिछौना
कर्म से न मुंह मोड़
जलाये रख अरमानों की
मशाल
वह वक्त जरूर आयेगा
पिता सूर मिलाते
चमकेगी अरमानों की बगिया
माँ कहती थी............
डां नन्द लाल भारती
22/07/2021
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