Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मैं अपने ही वादे के धागे मेंं

 
मैं अपने ही वादे के धागे मेंं
घिरा हूँ कसकर बंधा हूँ
तोड़ना नहीं चाहता 
खुद से खुद पर लगायी 
पाबन्दियाँ
कई तूफान भी आये
नहीं टूटे तो नहीं
जालिमों की दुनिया में
कहांं तवज्जो,
वे मरते हैं अभिमान पर
और हम स्वाभिमान पर ।
डां नन्द लाल भारती
25/11/2020

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ