मैं अपने ही वादे के धागे मेंं
घिरा हूँ कसकर बंधा हूँ
तोड़ना नहीं चाहता
खुद से खुद पर लगायी
पाबन्दियाँ
कई तूफान भी आये
नहीं टूटे तो नहीं
जालिमों की दुनिया में
कहांं तवज्जो,
वे मरते हैं अभिमान पर
और हम स्वाभिमान पर ।
डां नन्द लाल भारती
25/11/2020
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