बचपन के किस्से
आज फिर वो दिन जी उठा
मन के कोने-कोने में
जी उठा बचपन रोम-रोम मे ं
बिन पंखों के उड़ने की कोशिशें
आसमान को कूद कर छूने
चंदा मामा के दूध पीने
दादी-नानी के किस्से
नाना के निर्गुण,
दुनिया के पहले दोस्त दादा के
ना होने के किस्से
खुला आसमान, खुली दुनिया
गांव की सोंधी मांटी अपने हिस्से
कभी राजा कभी महल के किस्से
माटी का घर,झुकी मड़ई
राजा के महल का आनंद
अपने हिस्से
दीवाली के दीओ का तराजू
धूल मांटी जोखते
व्यापार का अद्भुत सुख
था अपने हिस्से
वो भी क्या दिन थे
जमीन भी लगती थी
मखमली गद्दे
रुखी-सूखी रोटी,दूध-छाछ
मां के हाथ का एहसास,
रहे जैसे ताजे किस्से
याद आया एकदम से
हरीलाल मुंशी जी का डण्डा
समन मुंशीजी की रौब
याद आये वो कहानी किस्से
ना थी चिन्ता ना फिकर
ना नून-तेल का झंझट
बहुत मजा आया बचपन मे
सपना टूटा पड़े मिले बेड पर
बगल मे टेबल पर पड़ी
दवाइयों की ट्रे जैसे
कुछ कह रही हो
देखने को हर सुख-सुविधा
छूने-खाने की मनहाई
समय ने कैसा करवट बदला
सामने खेलती तन्हाई
काश वो बचपन होता
बचपन सरका,सरक गई
उमर की अंगडाई
पर हैं किस्मत वाले प्यारे
हरी-भरी अपनी दुनिया सामने
याद निश्छल बचपन के किस्से
हंसी-खुशी जीने की उम्मीदें
हैं अपने हिस्से
नई पीढ़ी के बचपन में झांक
चमक उठी अपनी आंख
नहीं बिसरे बचपन के किस्से
अपनो का असीम सुख है
अपने हिस्से...........
नन्द लाल भारती
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