Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिजीविषा

 


मुकेश भाई अपनी नवविवाहिता पुत्र बधू की तारीफ खूब चहक-चहक कर रहे थे। मुकेश भाई के मुंह से बहू की तारीफ सुनकर महेशभाई जो कुछ देर पहले ही हजार किलोमीटर की यात्रा दफ्तर पहुंचे थे।महेशभाई भी गदगद हो रहे थे।

महेशभाई कालबेल पर जैसे बैठ गए। परिचर भागता हुआ आया।महेश भाई बोले बहादुर कैन्टीन से नाश्ता ला दो।

मुकेश बोले-दस बजे नाश्ता।

जी.....देख रहे हैं सीधे घर से दफ्तर आ रहा हूँ। पत्नी ने रात्रि का भोजन और नाश्ता भी दिया था पर जल्दी जल्दी में नाश्ता क्वार्टर पर छूट गया।पत्नी के हाथ का नाश्ता रात मे खा लूंगा।

मुकेशभाई बोले-मुझे फोन पर बता देते, सब्जी-रोटी घर से बनवा कर ले आता। 

नाश्ता लाया था पर जल्दी बाजी के कारण क्वार्टर पर भूल गया महेश भाई बोले।

क्या बहू खाना बनाती। जीवन मे खाने का मजा आ जाता हैं। नाश्ते में क्या ईडली,सांभर बनायी थी ? वकालत की तरह खाना भी उम्दा  बनाती है ।

हमारी भी बहू उच्च शिक्षित है, वह भी बनाती होगी महेश भाई बोले ।

बनाती होगी का क्या मतलब मुकेश भाई पूछे ।

हम पति-पत्नी उसके लिए बोझ  हैं।कहती है सास-ससूर के लिए रोटी थापने नहीं आई हूँ।बेटे का जीवन भी तबाह कर रखी है। हमारी बहू को तो बस उसके मां-बाप,भाई-बहन  और  पति की कमाई पर एकछत्र कब्जा प्यारा है।

गरीब परिवार की बेटी को बिना किसी दहेज के ब्याह कर लाया था कि कम से कम बेटे को सकूं की रोटी देगी पर क्या रोअन रोटी कर दी है महेश भाई बोले ।

अव्वल दर्जे के आप लोग किस गिरे हुए मां-बाप की बेटी ब्याह लाये । मुकेश भाई हमारी बहू ने तो जीवन
में रंग भर दी है।

किसी को क्या दोष दूं। सब अपना दोष है। पत्नी जीवन भर की कमाई से खड़े घर की चौकीदारी कर रही है मै परदेस में नौकरी । हमारी बहू भी रंग भर रही है..... अपने मां बाप के जीवन में ससुराल वालों को रक्त के आंसू रुलाकर। नौकरी भी कुछ महीने मे पूरी हो जायेगी फिर हम दोनों बूढा-बूढी मिलकर बनायेंगे खायेंगे । मुकेश भाई जीने और कुछ नया करने की जिजीविषा अभी जवां है । खैर मुकेश भाई छोड़ो इन सब बातों को जो होगा देखा जायेगा । अभी तो नाश्ता करो महेश भाई  ठहाका लगाते हुए बोले ।
मुकेश भाई माथा ठोकते हुए बोले-बड़ी जीवटता वाले इंसान हो महेश भाई जिन्दगी के दर्द को ठहाके में उड़ाते चलो।

नन्द लाल भारती

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