Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पौत्र के नाम खत

 
पौत्र के नाम खत
ये जिगर की धड़कन, खानदान के चिराग
दादा के सच्चे दोस्त
खुदनसीब हूँ या 
बदनसीब
यह तो जमाना 
आंक रहा होगा
बड़ा होकर और 
बड़ा बनकर
तुम भी जान जाओगे 
दादा-दादी के 
संघर्ष की दास्तान
और पापा का उत्थान ।
स्कूल जाने लगे हो
कल्ह तुम्हारे स्कूल जाने का
पहला दिन था
तुम्हारे पापा की भेजी
एक फोटो  देखकर ज्ञात हुआ है
आंखों से मोती झलक पडे़ बेटा
यकीनन ये खुशी के मोती थे
दादी तो आंखें गारती रहती है
कभी तुम्हारे पापा की कमी डंसती 
कभी तुम्हारी
वह भी मां है
तुम्हारे पापा की और 
मैं  तुम्हारे   पापा का पापा ।
तुम्हारी मम्मी और
तुम्हारे पापा की मां मे 
और तुम्हारी मम्मी मे 
बहुत बड़ा   अन्तर है
जमीन आसमान इतना।
तुम्हारे पापा, चाचा और
इकलौती बुआ 
अपने दादा-दादी की गोद मे
खूब खेले भरपूर प्यार मिला
वे अपने दादा-दादी और
पैतृक गांव जाते
खूब मौज करते ।
तुम्हारी मम्मी ने तो
तुम्हारे पैदा होने की
दादा दादी के हिस्से की खुशी
तक छिन ली
तुम्हें स्पर्श करने का
अवसर तक नहीं दिया
तुम्हारे दादा-दादी ही नहीं
तुम्हारे पूरे परिवार की 
खुशी तुम्हारी मम्मी ने
अपने मां-बाप के हिस्से कर दी ।
तुम्हारे पैदा होने की
शातिर ठगों ने मोटी कीमत 
तुम्हारे पापा से छिन ली
छिना-झपटी बेखौफ जारी है
हमारे हिस्से  के सुख पर
ठगों ने पहले ही कब्जा कर लिया है
तुम्हारे पापा की सांसो पर भी
ठगों का कब्जा  है
तुम्हारे दादा-दादी को
तुम्हारी मम्मी ने निराश्रित
बना दिया है
चाचा-बुआ और पूरे परिवार की
खुशी तेरी मम्मी ने कैद कर ली है
अपयश थोपकर गाली देकर
जबकि खुद विषकन्या 
विषधर की हाफमाइण्ड-हाफब्लाइण्ड
बेटी है ।
हे पौत्र आंखों के तारे
तुम्हारी उम्र स्कूल जाने की हो गई
हम भरपूर मिल ना
तुम्हारी चोर मन की मम्मी 
हमारी परछाईं से डरती
कहीं उसके बाप की ठगी पर
विराम न लग जाये
हम पांच दिन भी साथ नहीं रह पाये
तुम्हारी जीवन यात्रा सफल हो बेटा
तुम्हारा जीवन खुशियों से
भरा रहे
तुम तरक्की के आसमां छूओ
काश तुम्हारी मम्मी कानमैन की बेटी
तुम्हारे दादा-दादी,चाचा, बुआ की
अंगुली पकड़ने का अधिकार
तुम से ना छिनी होती 
एक सभ्य विवाहिता की तरह होती
तुम्हारे जन्मदिन के जश्न के हिस्से होते
तुम्हें स्कूल जाता हुआ
देखकर हम और जी जाते
तुम्हारे स्कूल जाने का दिन
हमारे लिए जश्न होता ।
तुम्हारी मम्मी ने तो जैसे
हमारी मौत की मन्नत
मान बैठी है,
कैकेयी बन बैठी है,
बेटा ध्यान लगाकर पढ़ना
खूब आगे बढ़ना
हमारे आशीर्वाद का खजाना
तुम्हारे लिए खुला है
अंकवार फैली रहेगी सदा
इंतजार मे प्रिय पौत्र तुम्हारे ।
अपने पापा का और
परिवार का नाम रोशन करना
यह दादा का खत 
खा़नदान के चिराग के नाम 
 शायद जब तक तुम्हारे पास पहुंचे
तब तक तुम्हारे दादा-दादी
शायद रहे या
तुम्हारी मम्मी की मन्नत पूरी हो जाये
हमारे सपने तो छिन गए हैं
शायद सम्पत्ति पर कब्जा कर ले
यह तो परमशक्ति जाने
मैं तो इतना जरूर जानता हूँ
तुम कंस की कैद जरूर तोड़ दोगे
ठगों को आईना दिखा दोगे
तुम हमारे पौत्र हो
धरती के पहले और सच्चे दोस्त
ये दोस्त तुम्हें और तुम्हारी कायनात को
जमाने भर की हर खुशी मिले
यही मेरा आशीर्वाद है
अराधना है और कामना
ये दोस्त तुम्हें अनन्त बधाई और 
शुभकामना ।

नन्द लाल भारती


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