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शिक्षाक्रान्ति के अग्रदूत-कर्मवीर भाऊराव पाटिल

 

शिक्षाक्रान्ति  के अग्रदूत-कर्मवीर भाऊराव  पाटिल।


शिक्षा जगत मे क्रांति लाने वाले हजारों किलोमीटर नंगे पैर यात्रा करने वाले कर्मवीर भाऊरावजी पाटिल की,जिनका जन्म परिवार जैन परिवार मे 22 सितंबर 1887 मे कोल्हापुर(महाराष्ट्र) में हुआ था। दलित उत्पीड़न को देखते हुए जैन संस्कृति एवं संस्कार को एक तरफ रख दलित-पिछड़ो के हितार्थ शिक्षा एवं समता क्रांति का शंखनाद कर दिया।हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान महाराज छत्रपति साहू  के दलितों पिछड़ों की शिक्षा के लिए अलग से खोले गए स्कूल एवं छात्रावास क्योंकि सामान्य स्कूलों में दलित पिछ़डो के प्रवेश पर प्रतिबंध था,स्कूलों से दलित बच्चों को खदेड़ दिया जाता था। आज हम इक्कीसवीं शताब्दी मे जी रहे हैं, इस विज्ञान के युग मे भी धर्म के ठेकेदारों के उलूल-जलूल मंदिर प्रवेश पर आये दिन बयान आते रहते हैं तो 1887 और उसके पहले क्या अमानुषता का ताण्डव होता होगा, किस्से ही सुनकर रुह काप जाती है।ऐसे वक्त मे कोल्हापुर नरेश महाराजा छत्रपति साहू जी दलितों के लिए परमात्मा से कम ना थे। महाराजा के दलितों के उत्थान के लिए पृथक से स्कूल और छात्रावास खोलना महान क्रांतिकारी कदम था। छत्रपति साहू जी को इस सामाजिक उत्थान के कार्य से भयंकर विरोध भी झेलना पड़ा था।छत्रपति साहूजी महाराज का दलितों के लिए किये जा रहे  शैक्षणिक कार्य भाउराव पाटिल के मानस पटल पर क्रांति कारी प्रभाव छोड़ा  और वे समता क्रांति के अग्रदूत बन गए।
समता के दीवाने कुछ ऐसे होते हैं
क्या अपना क्या पराया भेद नहीं
गैरों के उत्थान के लिए
जीवन का वैभव न्यौछावर कर देते हैं
भाउराव पाटिल एक महामानव,
भारतीय मूलनिवासी मसीहा कहते हैं।
मुझे लगता है कि भाउराव पाटिल जीओ और जीने दो के साथ समानता के साथ जीने दो के ध्वजावाहक थे तभी गांव के जिस कुये पर लगी राड और पुली से दलितों को पानी लेने से मना किया जाता था। इस मुद्दे पर टकराव भी होता था दलितों के साथ बुरा सलूक होता था,उस राड और पुली को महामना भाउराव जी ने उखाड़ फेंका था।
महामना भाउरावजी के राड और पुली तोड़ फेंकते वक्त सम्भवतः  उनके मन मे विचार जरूर आयेगा।
सुन लो कान खोलकर
मानवता के दुश्मनों
जिनके लहू पसीने से
वजूद खड़ा है तुम्हारा
जिनकी चल-अचल थाती के
तुम मालिक बन बैठे हो
साथ उन्हीं के तुम पशुता का
व्यवहार करते हो
अत्याचारियों तुम्हारा
सूरज अस्त होने वाला है
दलित सूर्य जैसे चमकेगे
जमी  आसमां उनका होगा
देखता हूं 
तुम्हारे अत्याचार की ताकत
आओ दलित  बढ़ाओ हाथ
मत घबराओ,
भाउराव पाटिल है तुम्हारे साथ ।

भाउरावजी के पिताजी तहसील मे सेवारत् थे। वे भाउरावजी को कोल्हापुर पढाई के लिए भेज दिए। भाउराव के रहने की व्यवस्था जैन छात्रावास मे हो गई। भाउराव का लगाव अनुसूचित जाति के लोगों से लगाव था। भाउरावजी अनुसूचित के लिए बने छात्रावास के उद्घाटन समारोह मे क्या चले गए वार्डन ने इस गुस्ताखी की सजा के तौर पर जैन छात्रावास से निष्कासित कर दिया गया। खैर भाउराव जी के रहने की व्यवस्था साहूजी महाराज के एक रिश्तेदार के यहां हो गई थी ।कहा जाता है कि वार्डन के इस आचरण से वार्डन के लोग दुश्मन बन बैठे।इन्हीं लोगों ने 1914 में महारानी विक्टोरिया की मूर्ति पर कालिख पोतकर वार्डन को फंसाने की कोशिश की और गवाह के तौर पर भाउराव को खड़ा करने लगे पर भाउराव ने ऐसा नहीं किया मूर्ति पर कालिख पोतने वाले ने भाउराव को ही फंसा दिया। पुलिस ने भाउराव बहुत पीटा, छत्रपति साहूजी महाराज के हस्तक्षेप से भाउराव पुलिस की कैद से छूट गये।यह त्रासदी उनके लिए और बुरी साबित हुई उनकी पढाई छूट गई। इसके बाद वे सेल्समैन की नौकरी करने लगे। नौकरी के दौरान उन्होंने दलित उत्पीड़न, शोषण, अत्याचार, गरीबी, अशिक्षा को नजदीक से देखा। इन बुराइयों की गहराई से पड़ताल करने पर वे इस नतीजे पर पहुंचे कि सारी बुराइयों की जड़ अशिक्षा है फिर क्या वे इस अभिशाप से मुक्ति के लिए कमर कस लिए और स्कूल, कालेज और छात्रावास खोलने का दृढ़ निश्चय कर लिया।
भाउराव जी ने शिक्षा को उत्थान का प्रमुख कारण मानते हुए दलित पिछड़ा, कमेरी दुनिया के लोगों को नारा दिया;
कमाओ और शिक्षा प्राप्त करो।
बाबा साहब डां अम्बेडकर ने भी कहा है, शिक्षा शेरनी के दूध के सम्मान है। बाबा साहब का यह कथन शिक्षा को और खास कर दलित पिछ़डो के लिए और महत्वपूर्ण बना दिया ।
भाउराव पाटिल का नारा
कमाओ और शिक्षा प्राप्त करो
कमाल कर गया,
शिक्षा के गुण क्या हैं
लूटी नसीब दलितों के लिए
तरक्की मूलमंत्र मिल गया
सोई कौम का नसीब जाग गया
शिक्षा का है खेल निराला
भाउराव पाटिल ने कर
स्कूल, कालेज छात्रावास कर निर्माण
छांट दिया कमजोर वर्ग की
अशिक्षा का हाला ।
दलितों के मसीहा डां भीमराव अम्बेडकर से भी भाउराव पाटिल बहुत प्रभावित थे।फुले दम्पति,महर्षि विट्ठल रामजी शिन्दे, डां भीमराव अम्बेडकर एवं समाज सुधारकों के कार्यों का भाउराव जी के दिल-दिमाग पर गहरा प्रभाव पड़ा था।

भाउराव पाटिल जी का मानना था कि गरीब, दलित और पिछड़े समाज की अवन्नति का मूलकारण अशिक्षा है। बिना शिक्षा के तरक्की सम्भव नहीं है।शिक्षा को उन्नति एवं दमित समाज के विकास के लिए उन्होंने कई स्कूल कालेजों की स्थापना किये। 1947 में भाउराव जी ने सतारा मे छत्रपति शिवाजी कालेज की स्थापना किये और 1954 मे सदगुरू गाडगे बाबा की स्थापना भी जो उत्पीड़ितों के उत्थान हेतु  किसी चमत्कार से कम नहीं कहा जा सकता ।अक्टूबर 1919 मे भाउराव जी ने सतारा मे रयत अर्थात बहुजन शिक्षण संस्थान किये।वर्तमान मे रयत शिक्षण संस्थान के पास 700 छात्रावास हैं, जिनमें लाखों छात्र शिक्षा प्राप्त करते हैं।रयत शिक्षण संस्थान की लगभग एक हजार शाखाएं हैं।

भाऊराव जी का ध्यान सिर्फ शोषितों की शिक्षा पर ही नहीं था,वे शिक्षकों की कमी पर ध्यान दे रहे थे। शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए सन् 1955 में आजाद कालेज आफ एजुकेशन की स्थापना भी किये  ।
भाऊराव जी महात्मा गांधी के अनुयायी थे। भाउराव ने आजादी के आन्दोलन मे भी बढचढकर हिस्सा लिया था। गांधीजी भाउराव जी के कार्यों से प्रसन्न थे। भाऊराव जी अपने द्वारा खोले गये सौ से अधिक स्कूलों के नाम गांधी जी के नाम पर रखे थे।
क्या थे इंसान अनोखे
क्या थी सुनहरी
अशिक्षित हर हो शिक्षित
दबे कुचलो को सम्मान मिले
सबको अपने हिस्से का
आसमान मिले
ये भाऊराव पाटिल का
ख्वाब सुनहरा
नर के रुप मे नारायण
महान कर्त्तव्य परायण
संकल्प तो देखो
स्कूल खोलूंगा उतने
दाढी मे बाल जितने
हे महामानव कृतज्ञ रयत
करें तुम्हें सलाम..........
भाऊराव जी की शिक्षा क्रांति मे उनकी पत्नी का बड़ा योगदान रहा, खैर बिना पत्नी के सहयोग से संकल्प कैसे पूरा हो पाता। कहा जाता है कि भाऊराव जी कहीं बाहर गए हुए थे,बोर्डिंग मे खाद्य सामग्री नहीं थी,महान पति की महान त्यागी पत्नी ने अपना मंगलसूत्र बेंचकर छात्रों के भोजन का इंतजाम की थी।भाऊराव जी की सोच को देखिए छात्र स्कूल की पढाई के साथ खेतीबारी का काम भी करते थे,जिससे छात्रों की पढाई के खर्च के व्यय का भार उनके पालकों पर न पडे़,इतनी दूरीदृष्टि पक्के इरादे के थे भाऊराव जी पाटिल ताकि आर्थिक तंगी की वजह से छात्र पढाई ने छोड़ दें।महाराष्ट्र प्रांत मे शैक्षणिक क्रांति के जनक भाऊराव जी पाटिल ने पढाई के साथ कमाई का अनुकरणीय सिद्धांत लागू किया था।
भाऊराव जी पाटिल के सम्मान मे भारत सरकार ने 1988 मे साठ पैसे का डाक टिकट जारी किया था। महाराष्ट्र सरकार ने कर्मवीर की मानद उपाधि से सम्मानित किया।1959 मे पूना विश्व विद्यालय ने डी.लिट की उपाधि से नवाजा था वर्ष 1959 मे ही भारत सरकार ने राष्ट्रीय सम्मान पद्यम भूषण से अलंकृत किया था। 9 मई 1959 को दलित पिछ़डो की शिक्षा क्रांति के ऋषि भाऊराव जी परलोक सिधार गए ।भाऊराव जी के दलितोत्थान की दृष्टि से शिक्षा के क्षेत्र मे किये कार्य को दलित पिछड़े वर्ग के प्रति सदैव कृतज्ञ रहेगे।भाऊराव जी की महाराष्ट्र  शिक्षा क्रांति को इतिहास नहीं भूला पायेगा। काश जिस लगन,मेहनत के साथ शिक्षा की अमरज्योति महाराष्ट्र की धरती पर जलाये,वैसी परमार्थ की भावना से देश के दूसरे प्रान्तों मे ऐसे मानवतावादी महापुरुषों ने दलित आदिवासियों और पिछड़ों को  शिक्षादान दिये होते सच आज बुलंद भारत की और ही बुलंद तस्वीर दुनिया के सामने होती । फिलहाल मै कर्मवीर, पद्यम भूषण महामहिम भाऊराव पाटिल जैन की स्मृति को करबद्ध प्रणाम करते हुए कहना चाहूंगा;
हे धरती के तारे भाऊराव
शिक्षा की ज्योति जला
आसमां मे छा गए
तुम्हारी विरासत शिक्षा क्रांति,
डोर थाम शोषण वंचित
अपने हिस्से का आसमां पा रहे
धन्य हो तमहामना
आपकी जलाई शिक्षाज्योति की,
रोशनी मे सब एक साथ बढ रहे
खुद का सम्मान समझ रहे
हे शिक्षा क्रांति के अग्रदूत
महामना भाऊरावजी पाटिल की
जय.. जय...जयकार कर रहे।

नन्द लाल भारती
लेखक एवं प्रशिक्षक

दिनांक 19/07/2022







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