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Dr. Srimati Tara Singh
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ताना

 
ताना
नीरज साहब ने क्या सटीक कहा है -तारीफें दिन बनाती है और तानें जिन्दगी। भाई गोबर्धन यह  सत्य  मेरी जिन्दगी पर भी सटीक बैठता है।
वह कैसे धरमेश दोस्त ।
बात पुरानी है जब मै पहली बार दिल्ली नौकरी की तलाश में पहुंचा तो गांव की गरीबी मुझे से पहले ही  पहुंच गई थी। ट्रेन का किराया मां ने कर्ज लेकर दिया था,पत्नी अपनी मां के दिये खर्चे के पैसे मेरी जब मे डाल दिये थे। दिल्ली मे ना खास जान ना पहचान होने के बाद भी हरियाणा मे नहर पर काम करने वाले बाबू राम फूफा के माध्यम से दूर की पहचान वाले भाई के यहां खाने की व्यवस्था हो गई थी और सोने की व्यवस्था एक लावारिस सी झुग्गी मे जहां दारू बाज,तम्बाकू, गुटखा, पान खाकर सोये-सोये थूकने वालों की कमी भी न थी।
क्या कह रहे हैं धरमेश दिल्ली की झुग्गी मे रहे हो गोबर्धन बोला ।
हां भाई,सही कह रहा हूँ।सेब मण्डी मे पेटी,कारखाने मे कोयला ढोया और  मजदूरी भी नहीं मिली।खुराकी के पैसे नहीं होते थे, बहुत छिछलेदर होती थी। पन्द्रह रुपया रोजहाई पर काम किया मुश्किल के दिन थे रात बैचेनी की। भाई साहब की पत्नी के ताने  बार-बार सुनने पड़ते थे। वह कहती कही रुककर काम करता नहीं।आया है साहब बनने। मै था कि काम को पूजा समझकर करता था,किसी कम्पनी से जाति के नाम पर भगा दिया जाता था तो किसी कम्पनी से बी.ए.पास होने के कारण। सरकारी नौकरी खरीदने की अपनी औकात तो थी नहीं। वक्त करवट बदला भाभी का ताना सही साबित हो गया ।
यह भी सच कहा है किसी ने ठोकरें खाने के बाद ही मंजिल मिलती है गोबर्धन बोला ।
जीवन मे बहुत बार अग्नि परीक्षा से गुजरा हूँ, आज जो साथ हैं और तारीफ कर रहे हैं, वही लोग परहेज़ करते थे धरमेश बोला।
आग मे तपकर ही लोहा सोना बनता है दोस्त।भाभी को धन्यवाद दो जिसके ताने ने जीवन मे रंग भर दिया और तुम दूसरों की गोबर्धन बोला।
धन्यवाद उन सभी का जो लोग मेरे मुश्किल भरे दिनों मे मेरी मुश्किलें और बढ़ा रहे थे धरमेश ठहाका लगते हुए बोला।
अरे वाह दोस्त तुमने ताने को आशीर्वाद बना लिया ।
                                  नन्द लाल भारती

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