कविता :-थके पांव लोग
युग बदला है या लोग
बहुत भ्रम है दोस्त
लगता है ना समय का
नाहिं युग का दोष है
दोष है तो
नियति का दोष है दोस्त.....
भूमिका बदलते ही
नियति बदल जाती है
बहू भी कभी बेटी थी
भूल जाती है
कुछ बहूयें तो
पहला कदम रखते ही
कैकेयी की भूमिका मे
आ जाती हैं.........
सास-ससुर के मौत की
मन्नत
खुद के मां-बाप के
अथाह प्यार मे विह्वल
गोदना भी गुदवा लेती हैं
आई लव माई मदर
पति के मां-बाप को
कूड़ा-करकट समझ लेती हैं........
पति के दिलों दिमाग पर
कब्जे के साथ
कमाई का पाई-पाई भी
छिन लेती हैं
दहेज़ के केस मे अन्दर
करवाने की धमकी देती हैं........
मां-बाप के प्यार में
कुछ बेटियां
भूल जाती हैं अपने
गृहस्थ जीवन के दायित्व को
पति के प्रति, सास-ससुर
देवर-ननद, ससुराल के
परिवारजनों के प्रति
अपने धर्म को कुछ बहूयें,
सरेआम खारिज कर देती हैं.......
बहू को बेटी मान कर
सपने सजोने वाले
आंसुओं मे डूबने लगते हैं
खुली आंखों सजाये सपने
चटकने लगते हैं
श्रम-पसीने से खड़ी इमारत पर
काले बवण्डर मंड़राने लगते हैं.......
बागी व्यवहार, जहरीली आवाज
सास-ससुर को रोटी थापने
नहीं आयी हूँ कहने लगती हैं
कुछ बहूयें
अपने ही गृहस्थ जीवन की
दुश्मन कुछ मां-बाप की
परियाँ बन जाती हैं.........
दादा-दादी की परछाईं से
पोते-पोती को
दूर रखने लगती हैं
कुछ कैकेयियां.......
बहू भी बेटी है
ऐसी उन्नत सोच वाले
आ़सू पीकर जीने लगते हैं
बेटी दो परिवार जोड़ती है
झूठा साबित करने लगी है
कुछ ठग प्रवृत्ति मा-बाप की
बेटियां.....
कहते हैं ब्याह के पहले
बाप की या यों कहे
मायके की खुशहाली के लिए
पूजा व्रत करती हैं बेटियां
ब्याह के बाद पति, ससुराल
अब ये क्या गजब है गया
पति के लिए नहीं,
ससुराल की खुशहाली के लिए नहीं
सास-ससुर की मौत के लिए
पूजा-व्रत करने लगी हैं
कुछ मां-बाप की बेटियां.....
बहूयें ससुराल की,खा़नदान की
आन-मान, सम्मान
कुटुम्ब परिवार की इज्ज़त
होती हैं
कंधे से कंधा पति के साथ
सास-ससुर की लाठी
देवर ननद के लिए
भाभीमां बन जाती थी
हाय रे स्वार्थी लोग
ये कैसा संस्कार दे दिया
वह आंचल जिससे
उपजती थी छांव
उठता अपनापन
वही बगावत और आग
उगलने लगे हैं
बहू-बेटियों करो सम्मान
सास-ससुर देवता सम्मान
खा़नदान की बनो रक्षक
ना बनो भक्षक
कैकेयी को क्या मिला ?
सुखमय जीवन जीओ
चैन की सांस लो
मां बाप को प्यार दो
सास-ससूर का सम्मान करो
अपनी गृहस्थी सम्भाल लो
सास-ससुर की अंगुली थाम लो
सच दोस्त ऐसा हो जाता
थके पांव बूढा-बूढी लोग बे-आसरा
और
रोज-रोज की मौत से बच जाते ।
नन्द लाल भारती
26/06/2022
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