लघुकथा : उद्देश्य
राकेश साहब और हेमराजजी आप दोनों जनता की दीर्घ कालीन सेवा कर आज रिटायर हो रहे हैं ।आपका शेष जीवन सुखकारी हो।कल से आपके जीवन का दूसरा पक्ष शुरू होगा।आप रिटायरमेण्ट लाइफ कैसे जीना चाहेगे।पहले राकेश साहब बताये चेतन जी बोले ।
चेतन तुम जानते हो मैं जातीय श्रेष्ठ हूँ।मैं टीका लगाकर भी गल्ले पर बैठ सकता हूँ । चना चिरौंजी के दाने से मेरे हजार दो हजार आ सकते हैं।चेतन मैं यह सब नहीं करूंगा ज्योतिष कार्यालय खोलूंगा और जिन्दगी के आखिरी दिन तक पुश्तैनी ज्ञान से भाग्य बताता और कमाता रहूं, यही अब मेरा उद्देश्य है।
भाग्य यानि पोथी,झूठ-भ्रम,कर्मकाण्ड के सहारे अभी राकेश साहब का उद्देश्य समाज से लेना है,कमाई करना है चेतन बोले ।
हां चेतन,हमारे लोग अनपढ़ भी भरपूर कमाई करते है लोग पांव भी छूते हैं। हम तो पढे लिखे हैं। हम ना कभी बेरोजगार हो सकते ना रिटायर्ड राकेश साहब बोले।
राकेश साहब तो अपने पुश्तैनी धंधे से समाज को दुहना चाह रहे हैं रिटायरमेंट के बाद भी । हेमराज जी आप समाज को क्या देना चाहेंगे चेतन बोले ?
हम सदियों से धार्मिक-सामाजिक और आर्थिक रुप से उत्पीड़ित हैं।कोई ऐसा विषमतावादी समाज तो नहीं चाहेगा ।मेरी दृढ़ इच्छा है कि मैं अपने जीवन के जो अनमोल वर्ष नौकरी में तपायें हैं उस अनुभव को कौशल को,दमित,शोषित और जरूरतमंदो के बीच साझा करूँ और उनका सहयोगी बनूं ताकि वे भी विकास कर सकें। यही मेरा सपना है,यही जीवन का उद्देश्य भी । चेतन बाबू आदमी न रिटायर हो सकता है न जिम्मेदारियों से मुक्त हो सकता है। रिटायरमेंट तो नम्बर का खेल है। रिटायरमेंट का एक सकारात्मक पहलू भी है-नवयुवाओं को सेवा का अवसर.... हेमराजजी और कुछ बोलते इससे पहले
तालियों की गड़गड़ाहट से सभाकक्ष संगीतमय हो गया ।
नन्द लाल भारती
12/06/2022
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY