एक पुत्र की डायरी के पन्ने
पिता अपनी औलाद के,सुखद कल के लिए,
दृढ़ संकल्पित होता है उतना
समन्दर में पानी, वातावरण में,
आक्सीजन जितना,
पिता भूल जाता है,
स्वयं की जरूरी जरूरतों को भी
कटे -फटे वस्त्रों से ढंके अपने तन की
परवाह नहीं करता पिता,
बनियाइन में छेद हजार हो
या
जूते से पांव तक रहें हों बाहर
तनिक परवाह नहीं होती पिता को,
पिता को परवाह होती है
खुद की नहीं बस औलाद की होती है
भले ही पिता कर्ज की जंजीरों में जकड़ जाये
हाड़ फोड़ श्रम से अकड़ जाये
पिता ज़िद पर खरा होता है
जेब में ढेर छेद के बाद भी
औलाद के लिए अमीर होता है
वहीं औलाद जीवन में सफल होकर
जीवन संगिनी का साथ पाते ही,
फेर लेता है मुंह आजकल,
ठग की बेटी महाठगिनी ख़ोज लेती है
पति की डायरी,
डायरी में जिक्र होता है
पिता की बचपन की डांट फटकार का
ठग की बेटी महाठगिनी बन जाती है कैकेई
हाफ माइण्ड -हाफ ब्लाइंड कलयुग की कैकेई
परछाई तक से परहेज़ करवा देती है,
बदनाम हो जाता है औलाद के सुख के लिए
दर्द के दरिया में कूदने वाला पिता
रिश्ते विरोधी मां-बाप और परिवार से
पति की अक्ल पर लगवा देती है ताले
ठग बाप, जादूगरनी मां से मिलकर
महाठगिनी का बाप आ जाता है,
समन्दरी डाकू के रुप में,
शुरू हो जाता है लूट का खेल
लाखों कमाने वाला उसूल पसंद बाप का बेटा,
हो जाता है फटेहाल,
सास -ससुर और महाठगिनी होते है मालामाल,
खाने की थाली खाली होने लगी
महाठगिनी कलयुग की कैकेई हो जाती है हावी
मुसीबत के भंवर में उलझे साहब को होश आता है तब
क्या हो सकता था अब ?
महाठगिनी ने औरत होने का फायदा उठाया
पुलिस थाने में घड़ियाली आंसू निचोड़ी
किस्त बंध गई महीने की ,
दोनों, दोनों हाथों से दूह रहे ना कोई डर
ना कहीं कोई सुनवाई
मां बाप के खिलाफ जंग की असलियत
विषधर पत्नी का राक्षसी रुप
सालों बाद समझ में आया जब
रिश्तों के धागे तार तार हो गये जब
तन -मन-धन लूटे
दोष नसीब के माथे मढ़ रहे अब
पुत्र की तबाही और दुख की खबर से
मां -बाप जीते जी मर रहे रोज -रोज
सुनने वाले महाठगिनी के मां बाप के नाश की
कामना कर रहे।
कुछ पुत्र की डायरी के पन्नों पर अफसोस कर रहे
बूढ़े माता-पिता पुत्र की गलतियों की बिसार
पुत्र के सफल-सुखद जीवन की मन्नत मांग रहे।
नन्द लाल भारती
०५/११/२०२३
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