Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कहाँ हो केवट

 
कहाँ हो केवट
तुम कहाँ हो केवट
नैया के खेवनहार
थक रहा हूं मैं
मेरे केवट 
मेरी खुद की पतवार मे
जोर वो नहीं रहा अब
सांस कभी रुधने लगती है
कभी घुठना चकमा दिखाने लगता है
कश्ती भी मेरी पुरानी हो चली है
साठ साल के करीब की
हो चुकी है
मेरी नैया के खेवनहार
तुम्हीं तो  केवट अब
आंख खोलते ही
हाथ मे पतवार आ गई थी
हौशले और उम्मीद के साथ
ठेलता रहा नैया
ताकि तुम अपनी जहां के सूर्य
तुम्हारी केवटी चन्दा जैसी हो
हमारी जहां बेहतरीन जहां
उधेडबुन और जीवन संघर्ष के
जंग मे  नैया पुरानी
और 
पतवार बिल्कुल थक चुकी है
तुम केवट सम्भाल लो
पुरानी नैया
बन जाओ नये पतवार केवट
जानता हूँ, तुम्हारी केवटी कागा है
वह बागी भी है
तुम्हारी और हमारी भी
यह भी जानता हूँ
तुम्हारी केवटी  नहीं चाहती
तुम अपनी स्वर्णिम नैया मे
वापस जाओ
यह भी जान चुका हूँ
तुम्हारी केवटी तुम्हारे जज्बातों से
खेल रही है
अपनी कीमत पर
तुम ही नहीं हम भी लूटे गए हैं
डर डरा रहा है केवट
थके पतवार की वजह से
कहीं अटक ना जाये
केवट हिम्मत दिखाओ
सम्भाल लो अपनी नैया
देखना तुम्हारी हिम्मत देखकर
तुम्हारी केवटी पीछे हो लेगी
तुम हिम्मत तो दिखाओ केवट
देखना सारे गिले-शिकवे
अपनी जहां के गंगा मे धूल जायेंगे
भले ही तुम्हें तुम्हारी केवटी ने
कुनबे का कंस बनवा दिया है
तुम पहले भी श्रवण थे
आज भी हो केवट
हिम्मत कर लिया तुमने तो
देखना बागी केवटी भी
कर लेगी प्रायश्चित और
बन जायेगी चांदनी जैसी रोशनी
हिम्मत करो  केवट हिम्मत
लौट आओ कुनबे मे 
धुंधली रोशनी चमक उठे
थकी पतवार मे आ जाये जान
अकेलेपन का डर भारी
होता जा रहा है केवट
कभी तुम्हारे लिए पहाड़ था
खिस्से मे छेदों के बाद भी अमीर
तुम्हारे जीवन के पुराने पुल को
सहारे की बहुत जरूरत है
केवट थाम लो फर्ज की पतवार
कहाँ हो आंखों की रोशनी
तुम लौट आओ केवट 
लौट आओ।
नन्द लाल भारती

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